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आठ बार नौ त्योहार
सुख-सुविधा और आराम का शौक़ या लगन ऐसा बढ़ा हुआ है कि युग और समय उसको अल्प व्यय नहीं करने देता
चमनिस्तान
ऐसा बाग़ जहाँ फूल ही फूल हों, ऐसी जगह जहाँ दूर तक फूल ही फूल और हरा भरा नज़र आए, वाटिका, चमन, बाग़
दादरा
संगीत में एक प्रकार का चलता गाना (पक्के या शास्त्रीय गानों से भिन्न), एक प्रकार का गान, एक ताल
मज़दूर
शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका कमाने वाला कोई व्यक्ति, जैसे: इमारत बनाने, कल-कारख़ानों में काम करने वाला, श्रमिक, कर्मकार, भृतक, मजूर
दूध-शरीक बहन
ऐसी बालिका जो किसी ऐसी स्त्री का दूध पीकर पली हो जिसका दूध पीकर और कोई बालिका या बालक भी पला हो, धाय संतान, दूधबहिन, दूधबहन
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"व्याकरण" से संबंधित उर्दू शब्द, परिभाषाओं, विवरणों, व्याख्याओं और वर्गीकरणों की सूची
'अत्फ़-ए-बयान
(क़वाइद) जब दो इस्म कलाम में इस तरह बोले जाएं कि दूसरा इस्म पहले की मज़ीद तौज़ीह करे तो इस को अतफ़ बयान कहते हैं
'अलामत-ए-इज़ाफ़त
(व्याकरण) का, की, के, रा, रे, री और ने, नी आदि जो वृद्धि स्वरूप प्रयोग होते हैं तथा ज़ेर (---) जो फ़ारसी मिश्रण या परिच्छेद में प्रयोग में होते हैंं
इज़ाफ़त-ए-इस्ति'आरा
(क़वाइद) मुशब्बेह बह के करीने की इज़ाफ़त मुशब्बेह की तरफ़, जैसे : पिए फ़िक्र. (लुफ्त, फ़िक्र, इस बात का क़रीना है कि उसे क़ाइल ने अपने ज़हन में एक इंसान से तशबीया दी है, यानी इंसान मुशब्बेह बह है), इस तरह अक़ल के नाख़ुन, मौत के पंजे
इज़ाफ़त-ए-ज़र्फ़ी
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक ज़र्फ़ हो और दूसरा मज़रूफ़, जैसे: शर्बत का गिलास, दवात की स्याही
इज़ाफ़त-ए-तख़्सीसी
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह की वजह से मुज़ाफ़ में ख़ुसूसीयत पैदा होजाए, लेकिन ये ख़ुसूसीयत मिल्कियत और ज़रफ़ीत से मुताल्लिक़ ना हो, जैसे : आरिफ़ का हाथ, रेल का इंजन
इज़ाफ़त-ए-तम्लीकी
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक मालिक हो दूसरा मालूक जैसे : अनवर की कियाब, गान ओ- का ज़मींदार वग़ैरा
इज़ाफ़त-ए-तश्बीही
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह मुशब्बेह हो और मुज़ाफ़ मुशब्बेह बह, जैसे : ताने का नेज़ा, नेज़ों का मीना वग़ैरा
इज़ाफ़त-ए-तौज़ीही
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह, मुज़ाफ़ की वज़ाहत करे, (दूसरे लफ़्ज़ों में) मुज़ाफ़ आ हो और मुजाफ़ इलैह ख़ास, जैसे : मार्च का महीना, कराची का शहर वग़ैरा
इज़ाफ़त-ए-तौसीफ़ी
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक सिफ़त हो और दूसरा मौसूफ़, जैसे : बे दूध की चाय, दिल का तंग, रोज़ रोशन, शब तारीक
इज़ाफ़त-ए-बयानी
(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुज़ाफ़, मुजाफ़ इलैह से बना हो, जैसे : लोहे की मेख़, दीवार-ए-गली वग़ैरा
इस्म-ए-ज़ात
(क़वाइद) जिस नाम से एक तरह की बहुत सी चीज़ों की हक़ीक़त दूसरी तरह की चीज़ों से अलग समझी जाये और वो सिफ़त ना हो, जैसे: ऊंट, हाथी, घोड़ा, आग, पानी वग़ैरा
कलिमा-ए-ईजाब
(व्याकरण) वो शब्द जो स्वीकारोक्ति में या किसी के संबोधन और प्रश्न के उत्तर में बोला जाए
खड़ा-ज़बर
(इमला-ओ-क़वाइद) फ़तहा, वो छटा अलिफ़ जो अरबी रस्म उलख़त में बाअज़ हर्फ़ के ऊपर ज़बर की जगह लिखा जाता है, जैसे रहमान, यहया वग़ैहर में
खड़ा-ज़ेर
(इमला-ओ-क़वाइद) खींच कर पढ़ा जाने वाला कसरा या ज़बर, वो ज़ेर जो खड़ी लकीर की तरह किसी हर्फ़ के नीचे बनाते हैं और बॉय मारूफ़ की तरह पढ़ा जाता है और याय मारूफ़ किया वाज़ देता है जैसे : बिज़ाता, बईना में, अलिफ़ तहती
ख़त्त-ए-फ़ासिल
विभाजन रेखा, दो वाक्यों में अंतराल के तौर पर लगाया जाने वाला निशान, डैश, वो लकीर जो दो चीज़ों के बीच में आकर एक दूसरे को जुदा करे
गिराना
किसी आधार पर खड़ी वस्तु को आधात आदि पहुंचा कर जमीन पर लाना। जैसे-(क) किसी को चबूतरे या कुरसी से नीचे गिराना (ख) रेल की लाइन तोड़ कर गाड़ी गिराना।
ज़ू-जिंसैन
(व्याकरण) ऐसा शब्द जो पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों रूप में अलग-अलग अर्थों में प्रयोग किया जाता है
ज़माइर-ए-शख़्सी
(क़वाइद) ज़मीर (रुक) की जमा, ज़मीर की एक क़िस्म, किसी शख़्स के नाम के बदले इस्तिमाल होने वाले अलफ़ाज़ (वो, में, हम, तो, तुम वग़ैरा)
ज़मीर फिरना
(व्याकरण) लौटना, वापस होना, इसकी ओर सर्वनाम से संकेत करना, किसी वर्णित संज्ञा के स्थान पर सर्वनाम का प्रयोग होना
जमीर-ए-मुख़ातब
(व्याकरण) वह सर्वमान जो संबोधित व्यक्ति के लिए प्रयोग हुआ हो, जैसे तु, तुम, आप, मध्यम पुरुष का सर्वनाम, 'तुम'
ज़मीर-ए-मुतकल्लिम
(व्याकरण) वो सर्वनाम जो बात करने वाला अपने लिए प्रयोग करता है, जैसे: मैं, हम इत्यादि
तकबीर
‘अल्लाहो अक्बर' (ईश्वर सबसे बड़ा है) कहना, नमाज़ में झुकने, खड़े होने अथवा बैठने के लिए ‘अल्लाहो अक्बर' कहना
तख़फ़ीफ़
न्यूनीकरण, कमी करना, हलकापन, कमी, किसी का बोझ हल्का करना, कम करना, आराम, सखती में कमी आना, कमी, बचत, ख़र्च घटाना, ख़रच में कमी
तफ़ज़ील-ए-कुल
(लफ़ज़न) तमाम पर फ़ज़लेत देना, (क़वाइद) सिफ़त का वो दर्जा जिस के ज़रीये एक मौसूफ़ की तमाम पर तर्जीह ज़ाहिर की जाये (फ़ारसी में सिफ़त के बाद ' तरीन ' लगा कर ज़ाहिर करते हैं, जैसे : बुज़ुर्ग तरीन = सब से बर्ज़ग, बद रैन सब से बुरा
तफ़ज़ील-ए-नफ़सी
(लफ़ज़न) ज़ाती सिफ़त , (क़वाइद) सिफ़त का वो दर्जा जिस में मौसूफ़ को किसी और पर तर्जीह और फ़ज़लेत ना दी जाये
तफ़्ज़ील-ए-बा'ज़
शाब्दिक: कुछ को प्राथमिकता देना, व्याकरण: तुलनात्मक डिग्री (विशेषण की), विशेषण का वो दर्जा जिसके द्वारा एक वर्णित की कुछ पर प्राथमिकता प्रकट की जाये
तरकीब-ए-इज़ाफ़ी
(क़वाइद) दो इस्मों को इज़ाफ़त के ज़रीये मिलाना, मसलन जै़द की किताब या किताब जै़द, इस मजमूआ को मुरक्कब इज़ाफ़ी कहेंगे, इस में जै़द मुजाफ़ इलैह है और किताब मुज़ाफ़
तरकीब-ए-इत्तिसाली
(क़वाइद) दो अफ़आल को इस तरह मिलाना कि मुरक्कब हो जाने के बावजूद दोनों के मफ़हूम अलग अलग रहें, जैसे देख आना यानी देख कर आना
तस्कीन
(सूफ़ीवाद) उस विनम्र दिल का नाम है, जो बहुत परेशानी और चिंता के बाद मालिक पर ईश्वर की ओर से प्रकट होती है और सुकून प्रदान करती है
तस्ग़ीर
(व्याकरण) वह संज्ञा जिस में छोटे के अर्थ पाए जाएँ या अवमानना या मुहब्बत का पहलू निकलता हो, जैसे बन्नू (प्यारी दुल्हन) वग़ैरा
ता-ए-क़रिशत
व्याकरण: ते, वो 'ते' जो वर्णमाला के क्रम में करशत के संग्रह में शामिल है और जिसकी संख्या की गणना ४०० होती है, ‘अवजद' के हिसाब से 'क़रशत'वाली ते (७.)
ता'दिया
(अर्थशास्त्र) टैक्स चुकाने वाले से टैक्स का दूसरों की ओर स्थानांतरण, टैक्स का स्थानांतरण अथवा परिवर्तन
तानीस-ए-मा'नवी
व्याकरण: एक संज्ञा जिसमें कोई स्त्रीलिंग चिन्ह नहीं होता है लेकिन भाषाविद् इसे स्त्रीलिंग कहते हैं
ता'लील
(क़वाइद) हर्फ़-ए-इल्लत को ज़ाइल करना या बदल देना या किसी लफ़्ज़ के हर्फ़-ए-इल्लत को साकन या हज़फ़ करके इस में तख़फ़ीफ़ करना और तबदीली की वजह बयान करना
नून-ए-ख़फ़ीफ़ा
(क़वाइद) वो नून जो हल्की आवाज़ के साथ पढ़ा जाये (वो नून जो क़ुरआन शरीफ़ में दो जगह सूरा-ए-यूसुफ़ और सूरा-ए-इक़रा में आया है
नून-ए-हालिया
(क़वाइद) नून ग़ुन्ना जो फ़ारसी अलफ़ाज़ के आख़िर में किसी काम के जारी होने का पता देता है , जैसे : रवा (चलने वाला) से रवां (चलता हुआ) (उमूमन अलिफ़ के साथ , जैसे : रक़्स से रक़्सां, गिरिया से गिरियां
नपुंसक
वह व्यक्ति जिसमें काम-वासना या स्त्री-संभोग की शक्ति बिलकुल न हो अथवा बहुत ही कम हो, ऐसा मनुष्य जिसमें न तो पूर्ण पुरुषों के चिह्न हों न स्त्रियों के ही, विशेष-वैद्यक के अनुसार जब पुरुष का वीर्य और माता का रज समान होता है तब नपुंसक संतान उत्पन्न होती है, विशेष-वैद्यक में, नपुंसक पाँच प्रकार के माने गये हैं: आसेव्य, सुगंधी, कुंभीक, ईर्ण्यक और षंड
नाफ़िया
रुक : नाफ़ी , (क़वाइद) हर्फ़-ए-नफ़ी, वो हर्फ़ जो लफ़्ज़ के शुरू में आकर नफ़ी के मानी देता है , जैसे : ए, नून, इन वग़ैरा
फ़े'ल-ए-मुरक्कब
(व्याकरण) वो क्रिया जो किसी दूसरी क्रिया, संज्ञा या विशेषण के साथ मिल कर एक सामूहिक भाव को लक्षित, जैसे: काम करना, रोशन करना आदि
फ़े'ल-ए-सहीह
(क़वाइद) वो फे़अल जिस के हरूफ़-ए-असली में गर्दान के वक़्त कुछ तबदीली या हज़फ़ या ज़्यादती हुरूफ़ ना हो, जैसे : समझना
फ़ा'इल-ओ-मफ़्'ऊल
(संकेतात्मक) बुरा काम करने और कराने वाला, गुदा मैथुन करने और कराने वाला, गुदा-मैथुनकारी, पुस्र्षमैथुन करनेवाला, लौंडाबाजी
मुक़द्दर
(व्याकरण) वह वाक्य जो 'इबारत में न हो मगर उसके मानी यानी अर्थ लिए जाएँ, कलिमा-ए-महज़ूफ़, वह कलिमा अर्थात वाक्य या कलाम जो 'इबारत न हो लेकिन उसके अर्थ वहाँ लिए जाएँ
मुज़ाफ़
(क़वाइद) वो इस्म जिसे इज़ाफ़त या निसबत दी जाये, मुताल्लिक़ या मंसूब किया जाये , वो इस्म जो दूसरे इस्म के साथ लगाया जाये
मुज़ाफ़-इलैह
जिससे जोड़ा या मिलाया गया, जिसकी ओर निस्बत की जाय, जैसे-रमेश का घोड़ा, इसमें घोड़े की निस्बत रमेश की ओर है, इसलिए रमेश 'मुजाफ़ इलैह' है, और घोड़ा ‘मुज़ाफ़' है
मुज़ारे'
(उरूज़) एक बहर का नाम जो बहर-ए-मुंसरेह और बहर हज़ज से मुशाबेह है, मनसरह से इस लिए मुशाबेह है कि दोनों बहरों में जुज़ु दोम वतद मफ़रूक़ पर मुश्तमिल है और हज़ज से इस लिए मुशाबेह है कि इन दोनों बहरों के अरकान में औताद अस्बाब पर मुक़द्दम हैं, वज़न, मुफ़ाईल फाइलातुन मुफ़ाईलन फाइलातुन
मुझ
'मैं' का वह रूप जो उसे कर्ता और संबंध कारक की विभक्तियों के अतिरिक्त अन्य शेष कारकों की विभक्तियाँ लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- मुझको, मुझसे, मुझ पर आदि
मुतकल्लिम
धर्मशास्त्र का विशेषज्ञ, मीमांसक, आलोचक, समीक्षक, जो तर्कसंगत तर्कों के साथ धार्मिक मामलों को प्रमाणित करता है और गैर-इस्लामी मान्यताओं को काटने वाला
मुत्लक़ा
(क़वाइद) उस्ता रे की एक क़िस्म जिस में मस्ता रुला' और मुस्तआर मुँह' किसी के भी मुनासिबात मज़कूर ना हूँ
मनक़ूल
उल्लेखित, उद्धृत, हवाला देना, उद्धरण करना, प्रतिलिपित, नक़ल या रिवायत किया गया, एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया, नक़ल की हुई इबारत या तस्वीर
मुनादा
(आशीर्वाद के स्थान में) ऐ तू जीता रह (कोसने के स्थान पर) ऐ तू मरे, (आश्चर्य में) ऐ वाह, ऐ लो, (अभिलाषा के लिए) ऐ वह दिन ईश्वर न करे (स्वीकार्य) ऐ यहाँ आओ (अस्विकृति में) ऐ ये बात न करना, (पूछताछ के स्थान पर) जैसे ऐ बताओ (सौगंध में) ऐ तुम्हारी जान की सौगंध, (विनती के लिए) ए यहाँ नहीं आते कि बातें करें, (आशा में) ऐ शायद वह आया, (निंदा के लिए) ऐ तू भी उत्तर नहीं देता
मुफ़स्सल
तफसील अर्थात् ब्योरे के रूप हुआ। २ स्पष्ट। पुं० किसी बड़े नगर के आस-पास के प्रदेश या स्थान। किसी बड़े शहर के आस-पास की छोटी बस्तियाँ।
मुरक्कब-'अददी
(व्याकरण) एक यौगिक शब्द या वाक्यांश जिसमें कोई संख्या शामिल हो जैसे प्रथम वर्ष, छह-आयामी, आदि
मुरक्कब-ए-इज़ाफ़ी
(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो मुज़ाफ़ और मुज़ाफ़ एव लिया से मिल कर बने या जिस में एक इस्म को दूसरे इस्म से निसबत दें
मुरक्कब-ए-ताम
(व्याकरण) दो या दो से अधिक वाक्य का वो समूह जिसे सुन कर पूरी बात मालूम हो जाए और संबोधक को इंतिज़ार न रहे
मुरक्कब-ए-नाक़िस
(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जिस से सुनने वाले को पूरा फ़ायदा हासिल ना हो और वो हमेशा जुज़ु जुमला होता है
मल्फ़ूज़ी
उरूज़: जो पढ़ने में मालूम हो मगर लिखने में न आए (जैसे ताऊस और काऊस कि उरूज़ के जानने वाले संधि विच्छेद में दो लिखते हैं और वास्तविक दो 'वाव' हैं लेकिन किताबत में एक 'वाव' लिखा जाता है
मल्फ़ूज़ी-शक्ल
(क़वाइद) लफ़्ज़ की शक्ल जो अदा करने से ज़ाहिर हो , (मुरादन) तलफ़्फ़ुज़ (लिखी जाने वाली या मकतोबी के मुक़ाबिल)
मुस्तक़बिल-ए-एहतिमाली
(क़वाइद) फे़अल का वो सीग़ा जिस मेंगा, गी, गे, के बजाय हरूफ़-ए-एहतिमाल शायद, मुम्किन है और ग़ालिबान ु वग़ैरा इस्तिमाल करते हैं (जैसे : शायद वो कल आए
मुस्ता'लिया
(अरबी व्याकरण) वे हुरूफ़ अर्थात अक्षर जिनसे इमाला पैदा नहीं होता अर्थात ख़े स्वाद ज़्वाद तो ज़ो ग़ैन क़ाफ़
मुसव्वित
वो जो ज़ोर से चलाए, शोर करने वाला, (लिसानियात) हर्फ़-ए-इल्लत जो हर्फ़-ए-सहीह को मुतहर्रिक करता और इस की आवाज़ पैदा करता है और इस तरह मुख़्तलिफ़ सही आवाज़ों को जोड़ता है , (क़वाइद) हर्फ़-ए-इल्लत, वो हर्फ़ जो किसी हर्फ़-ए-सहीह को मुतहर्रिक करे
मुहमल
(क़वाइद) ऐसा लफ़्ज़ जिस के कोई मानी ना हूँ, जो किसी लफ़्ज़ के साथ बतौर ताबे इस्तिमाल होता है जैसे खाना वाना, रोटी ववटी में वाना और ववटी
मुहर्रफ़
नीतिशास्र: रास्ते से हटी हुई तबीयत जिसमें नीच लोगों के लक्षण हों, जिसमें बदलाव किया गया हो, फेरा गया, रास्ते से फेरा हुआ
मुहावरा
रोज़मर्रः, बोलचाल, किसी भाषा के वाक्यों का वह प्रयोग जो उस भाषा के बोलनेवाले करते हैं और जिसका अर्थ अभिधेय अर्थ से पृथक् होता है, जैसे-‘लात खाना’, या ‘आँख आना’, क्योंकि लात रोटी की तरह खाया नहीं जाता, और आँख सफ़र नहीं करती, इनका अर्थ है, लात की मार सहना और आँखों में पीड़ा होना, यही मुहावरा है।
माज़ी-क़रीब
(व्याकरण) वह अतीत जिससे निकट का भूतकाल समझा जाए, वह अतीत जिसमें काम अभी अभी समाप्त होना पाया जाए, जैसेः आया है, किया है
मा'दूला
वह अक्षर जो लिखने में तो आए लेकिन पढ़ने में न आए आम तौर पर वाओ के लिए विशिष्ट जैसे ख़ुद, ख़ाब आदि
मा'रूफ़-ए-इंफ़ि'आली
(क़वाइद) वो जुमला जिस में ग़ैर ज़ी रूह पर दलालत करने वाला फ़ाइल इन्फ़िआली फे़अल से क़बल मफ़ऊल के मुक़ाम पर आता है जैसे इस जुमले में''अहमद को दवा से फ़ायदा हुआ ।'
मा'लूल-उल-आख़िर
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस के आख़िर में ए,-ओ-, य में से कोई हर्फ़ हो , कलिमा के आख़िर में या ना बढ़ा देना जैसे लेता लाती से छितियाना छाती से
मा'हूद-ज़ेहन
(व्याकरण) वह जातिवाचक संज्ञा जो संबोधन करने वाले या बात करने वाले में किसी व्यक्ति विशेष के संबंध में हो, उदाहरण: अल्लामा से अभिप्राय इक़बाल लीया जाए या चचा से ग़ालिब आश्य ली जाए
लाहिक़ा
(क़वाइद) किसी कलिमे या जुज़ो-ए-कलिमा के बाद वो हर्फ़ या अधूरा या पूरा लफ़्ज़ जिस से एक कलिमा बिन जाये या जो नहवी शक्ल बनाने में काम आए
लिंग
पुरुष की जनन-शक्ति के प्रतीक के रूप में लिंग की पूजा करने की प्रथा जो अनेक प्राचीन जातियों में प्रचलित थी और अब भी हिन्दुओं में जो शिव-लिंग की पूजा के रूप में प्रचलित है
वक़्फ़ा-ए-कामिल
(क़वाइद) मुकम्मल ठहराव, वक़्फ़ लाज़िम नीज़ वो जगह या निशान (० या -) जहां फ़िक़रा ख़त्म होजाता है
वाव-तमीज़
(क़वाइद) अरबी ज़बान का वो वाइ जो हमेशा इस्म उम्र मस्कन अलावसत के आख़िर में आता है और ग़ैर मलफ़ूज़ होता है, वो वाइ जो तक़ती में शुमार नहीं किया जाता
वाव-बयान-ए-ज़म्मा
(क़वाइद) वो वाओ जो लफ़्ज़ के आख़िर में आता है और इस से पहले हमेशा पेश होता है ये मारूफ़ और मजहूल दोनों तरह आता है
समा'ई
व्याकरण: एक शब्द जो केवल नियम के अनुसार नहीं बना है, लेकिन भाषाविदों के द्वारा बोली जाती है और उनसे सुना जाता है
सहता
कृषि: चरखे के किनारे पर एक लकड़ी सवा बित्ते की लंबी और पौन बित्ते की ऊँची गाड़ी जाती है उसको सहता कहते हैं
सहीह
जिसमें किसी प्रकार का झूठ या मिथ्यात्व न हो, यथार्थ, वास्तविक, सच, सत्य, ठीक, उचित, त्रुटि रहित, निर्दोष, चंगा, अच्छा, सेहत मंद, स्वस्थ, पूर्ण, पूरा, साबित, समूचा
सितारा
तारा, नक्षत्र, तारा, उडु, ग्रह, सैयार, भाग्य, तक्दीर , (क़वाइद) सितारे का जैसा निशान जो हवाले के लिए लफ़्ज़ों पर बना दिया जाता है
सिफ़त
(तसव्वुफ़) इस्तिलाह में ज़हूर-ए-ज़ात-ए-हक़्क़ानी बानो आ मुख़्तलिफ़ को कहते हैं क्योंकि ज़ात बगै़र सिफ़ात के ज़ाहिर नहीं हो सकती और ज़ात के वास्ते हयात और इलम और इरादा और क़ुदरत और समा और बसर और कलाम जिन को उम्हात-ए-सिफ़ात कहते हैं लाज़िमी हैं और याफ़्त-ए-ज़ात की सिफ़ात ही से है
सिफ़त-ए-'अददी
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी इस्म की तादाद मुईन या ग़ैर मुईन ज़ाहिर करे, मसलन पाँच आदमी, चंद लोग
सिफ़त-ए-ज़ाती
व्याकरण: वो शब्द जो किसी व्यक्ति या सामग्री की व्यक्तिगत या अंदरूनी हालत या विशेषता बताए
सिफ़त-ए-निस्बती
(क़वाइद) वो सिफ़त जिस में किसी दूसरी शैय से लगाओ या निसबत ज़ाहिर हो, मसलन हिन्दी, अरबी वग़ैरा उमूमन ये निसबत इस्म के आख़िर में या-ए-माअरूफ़ के बढ़ाने से ज़ाहिर होती है
सिफ़त-ए-हालिया
(क़वाइद) असम-ए-हालिया या सिफ़त-ए-हालिया वो मुशब्बेह फे़अल है जो अपने फ़ाइल को ये ज़ाहिर करता है कि वो काम करने की हालत में है
सिला
प्रतिकार, बदला, प्रत्यपकार, बुराई का बदला, प्रत्युपकार, भलाई का बदला, पुरस्कार, इन्आम, उपहार, तोहफ़ा, किसी परिश्रम का फल या बदला, धन के रूप में हो या किसी दूसरे रूप में
हर्फ़-ए-'अत्फ़
वह अक्षर जो दो शब्दों को परस्पर मिलाने के लिए उनके बीच में आये, जैसे- रोज़ोशब (रोज़ व शब) में ‘वाव'
हर्फ़-ए-इज़राब
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी को आला से अदना और अदना से आला बनाने के लिए इस्तिमाल हो "बल्कि" हर्फ़ इज़राब है
हर्फ़-ए-'इल्लत
(क़वाइद) वो शब्द जो किसी क्रिया का कारण प्रकट करे, जैसे : क्योंकि, इस लिए कि, ताकि आदि
हुरुफ़-ए-'इल्लत
उर्दू में अलिफ़, वाव और ये, हिंदी में ‘स्वर', इंगलिश में ‘वावेल', इसके तीन अक्षर हैं वाओ, अलिफ़ और या
हर्फ़-ए-इस्तिफ़हाम
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो पूछने के मौक़ा पर इस्तिमाल होता है, जैसे : किया, क्यों, कैसे, वग़ैरा
हर्फ़-ए-इस्तिस्ना
(व्याकरण) वह अव्यय जो एक चीज़ को दोसरी चीज़ से पृथक करे, जैसे-‘सब आ गए मगर राम में 'मगर'
हुरूफ़-ए-ईजाब
(क़वाइद) वो अलफ़ाज़ जो किसी बात के इक़रार करने में और किसी पुकार या सवाल के जवाब में बोले जाएं जैसे : हाँ, जी, भला, अच्छ्াा, ठीक, दरुस्त, बजा, क्यों, नहीं, वाक़ई वग़ैरा
हुरूफ़-ए-क़मरी
अरबी में वह अक्षर जिनमें 'ल' मिलता नहीं है, जैसे: अल-क़मरअल-क़मर (ا، ب، ج، ح، خ، ع، گ، ف، ق ک، م، و، ہ، ی)
हुरूफ़-ए-ग़ैर-मुतशाबिह
(क़वाइद, तजवीद) वो हुरूफ़ जिन की शक्ल एक दूसरे से मिलती जलती ना हो जैसे : ब, ज वग़ैरा
हुरूफ़-ए-ज़ियादत
(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो कलाम की ज़ीनत और ख़ूबसूरती के लिए आते हैं, मसलन बगो और बगफ़त में '' ब '' या दरबर्गीर में '' बर'' वग़ैरा
हुरूफ़-ए-त'अज्जुब
(क़वाइद) वो कलिमात जो हैरत-ओ-ताज्जुब के मौक़ा पर बोलते हैं, मसलन अजी नहीं, हाएं, अरे, ओहो वग़ैरा
हर्फ़-ए-तख़्सीस
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी इस्म या फे़अल की ख़ुसूसीयत या हसर ज़ाहिर करने केलिए आए, मसलन : ही, सिर्फ़, महिज़, बस, ख़ाली, निरा, अकेला, फ़क़त, तन्हा
हर्फ़-ए-तफ़्सीर
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस से किसी लफ़्ज़ के मानी या कलाम का मतलब वाज़िह करें, मसलन यानी 'मुरादन' मुराद यक्का, मतलब वग़ैरा
हर्फ़-ए-तर्दीद
(व्याकरण) वह शब्द जो एक बात को निरस्त करके उसके स्थान पर दोसरी बात लाए, खंडन करने वाला कथन, जैसें: चाहे, या या तो, कि आदि
हुरूफ़-ए-तहसीन
(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो तारीफ़ या हौसलाअफ़्ज़ाई के मौक़ा पर मुंह से निकलते हैं, जैसे : आफ़रीन, शाबाश, ख़रब वाह वा, सुबहान अल्लाह, क्या ख़ूब वग़ैरा
हर्फ़-ए-ताकीद
(व्याकरण) वह अक्षर जो बात में ज़ोर देने के लिए प्रयोग होता है जैसे: अवश्य, निश्चित, हरगिज़, कभी आदि
हुरूफ़-ए-ता'ज़ीम
(क़वाइद) वो कलिमात जिन से किसी की बड़ाई या बुज़ुर्गी का पास-ओ-इज़हार मक़सूद हो, जैसे : हज़रत, क़िबला, हुज़ूर, आलीजाह वग़ैरा
हुरूफ़-ए-फ़ुजाइय्या
(क़वाइद) वो अलफ़ाज़ जो जोश या जज़बे में बेसाख़ता ज़बान से निकल जाते हैं जैसे : हैं हैं, वाह, ओहो, हाय वग़ैरा . मुख़्तलिफ़ जज़बात-ओ-तास्सुरात के लिए अलग अलग हुरूफ़ मुस्तामल हैं
हुरुफ़-ए-फ़ौक़ानी
(क़वाइद) वो नुक़्तादार हुरूफ़ जिन के नुक़्ते उन के ऊओपर लुके जाते हैं, मसलन : त, स, ख, ज़, ज़, श, ज़, ज़, ग, फ, क
हर्फ़-ए-मख़्लूत
(क़वाइद) हर्फ़-ए- मख़लूत जो दूसरे से मिल कर अदा हो जैसे , किया की य और घर की ह किया की जगह का और घर की जगह गिर तक़ती में आएगा
हुरूफ़-ए-मद्दा
(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो दूसरे हुरूफ़ की आवाज़ों को लंबा करदें : ए,-ओ-, य, माक़बल मफ़तूह, मज़मूम, मकसूर, अली उल-तरतीब
हुरूफ़-ए-मुफ़ाजात
(क़वाइद) वो हुरूफ़ जिन से किसी अमर या वाक़िया का इत्तिफ़ाक़न और ग़ैर मुतवक़्क़े तौर पर हिरणा ज़ाहिर हो मसलन : नागहां, अचानक, एक दम, इत्तिफ़ाक़न, यकबायक, यकलख़त, कि, जो वग़ैरा
हर्फ़-ए-मल्फ़ूज़ी
(क़वाइद, जफ़र) वो हर्फ़ जिस के तलफ़्फ़ुज़ में अव़्वल आख़िर दो मुख़्तलिफ़ हुरूफ़ की आवाज़ निकले, जैसे : जैम, दाल
हुरूफ़-ए-मवाज़ि'
(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो कसरत और ज़रफ़ीत के वास्ते मुस्तामल हैं जैसे : लाख (संगलाख़), ज़ार (लाला ज़ार), सार (कोहसार), दान (ओगालदान), ख़ाना (बग्घी ख़ाना), साला (धर्म साला) वग़ैरा
हर्फ़-ए-मश्रूक़
(क़वाइद) वो हर्फ़ जो लिखा जाये लेकिन पढ़ाए अबोला ना जाये जैसे : ख़ाब, ख़्वाजा या ख़ाहिश में वाइ
हर्फ़-ए-रब्त
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो एक लफ़्ज़ का इलाक़ा दूसरे लफ़्ज़ से ज़ाहिर करे (हुरूफ़ रबज़ में से वो हुरूफ़ जो इज़ाफ़त या फ़ाइल या मफ़ऊल के रब्त का काम देते हैं उन के इलावा सब हुरूफ़ जार कहलाते हैं)
हुरूफ़-ए-शम्सी
अरबी के वे अक्षर जिनमें ‘ल’ मिलकर वही अक्षर बन जाता है जिससे वह मिलता है, जैस-अश्शम्स (अल-शम्स) वे अक्षर हैं: ت، ث، د، ذ، ر، ز، س، ش، ص، ض، ط، ظ، ل، ن
हर्फ़-ए-साकिन
(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस का तलफ़्फ़ुज़ बला हरकत किया जाये, वो हर्फ़ जिस पर हरकत की अलामत ज़बर, ज़बर, पेश या इस के आख़िर में हर्फ़-ए-इल्लत ना हो
हुरूफ़-ए-सिफ़त
(क़वाइद) वो अलफ़ाज़ जो दूसरे अलफ़ाज़ के साथ मिल कर वस्फ़ी मानी देते हैं, वस्फ़ी लाहके और साबिके, जैसे : ज़ी, पत्ती, उल्लू , वान, वित्ती वग़ैरा
हर्फ़-ए-हस्र
(क़वाइद) रुक : हर्फ़ तख़सीसी ही : ये हर्फ़ हसर बहुत से कलिमात का जुज़ु भी बिन कर आता है, मसला कभी, जभी ... जूंही, यूंही
हुरूफ़-ए-हिफ़ाज़त
(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो बतौर लाहिक़ा मुस्तामल और मुहाफ़िज़त के मानी देते हैं, मसलन : दार, बाण, वान से पर्दादार, राज़दार, जानदार, फ़ीलबान, दरबान, पहलवान, बंदी वान वग़ैरा
हा-ए-मुख़्तफ़ी
वह 'हे' अर्थात 'ह' जो लिखी जाए मगर पढ़ी न जाए और केवल यह प्रकट करने के लिए आए कि अंतिम अक्षर हल् नहीं है, जैसे-‘परवानः, दीवानः, मस्तानः आदि, इज़ाफ़त के रूप में इस पर 'हम्ज़ा' आता है लेकिन उसका अपना कोई स्वर प्रकट नहीं होता जैसे: نامۂ غالب، فسانۂ دل आदि
हालत-ए-इज़ाफ़त
(क़वाइद) किसी लफ़्ज़ की वो हालत जो इस लफ़्ज़ के ताल्लुक़ को दूसरे लफ़्ज़ से ज़ाहिर करती है, मुख़ाफ़ होने की हालत
हालत-ए-मुग़य्यरा
(क़वाइद) इस्म की वो हालत जब इस पर हुरूफ़ आमिला (मग़ी्यरा) में से किसी हर्फ़ के आने की वजह से इस में तग़य्युर वाक़्य हो
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