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आठ बार नौ त्योहार

सुख-सुविधा और आराम का शौक़ या लगन ऐसा बढ़ा हुआ है कि युग और समय उसको अल्प व्यय नहीं करने देता

चमनिस्तान

ऐसा बाग़ जहाँ फूल ही फूल हों, ऐसी जगह जहाँ दूर तक फूल ही फूल और हरा भरा नज़र आए, वाटिका, चमन, बाग़

'औरत

जाया, भार्या, पत्नी, जोरू

ताग़ूत

शैतान, अत्यन्त निर्दय और अत्याचारी व्यक्ति

मन-भावन

मन को भाने या अच्छा लगने वाला

दादरा

संगीत में एक प्रकार का चलता गाना (पक्के या शास्त्रीय गानों से भिन्न), एक प्रकार का गान, एक ताल

मज़दूर

शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका कमाने वाला कोई व्यक्ति, जैसे: इमारत बनाने, कल-कारख़ानों में काम करने वाला, श्रमिक, कर्मकार, भृतक, मजूर

ख़ैर-अंदेश

भलाई की बात सोचने वाला, वह शख़्स जो किसी की भलाई चाहे, शुभचिंतक

दूध-शरीक बहन

ऐसी बालिका जो किसी ऐसी स्त्री का दूध पीकर पली हो जिसका दूध पीकर और कोई बालिका या बालक भी पला हो, धाय संतान, दूधबहिन, दूधबहन

रिसाई

दुख और मौत से संबंधित, शोकयुक्त

ज़र्फ़

बर्तन

तिहाई

किसी वस्तु के तीन समान भागों में कोई एक भाग, तीसरा अंश, भाग या हिस्सा, तीसरा हिस्सा

ला'नत

धिक्कार, फटकार, भर्त्सना, अभिशाप, शाप

क़हर ढाना

किसी के लिए संकट पैदा करना, संकटग्रस्त बनाना, किसी पर कोई आफ़त लाना, ज़ुल्म करना, क़हर तोड़ना

चले न जाए आँगन टेढ़ा

काम में कुशल न होने पर दूसरे पर आरोप मढ़ना

आगे नाथ न पीछे पगा

जिसके आगे-पीछे कोई न हो, जिसका अपना कोई न हो, असहाय, लावारिस, अकेला

साहिर

जादूगर, वह व्यक्ति जो जादू दिखाता हो

कुड़माई

शादी के पूर्व रिश्ता पक्का करने के लिए की जाने वाली रस्म, सगाई, शादी तै करना, रिश्ता करना

नज़र-भर देखना

पूरी तरह से देखना, ध्यान से देखना

ख़्वाजा-ताश

एक स्वामी के दास, जो आपस में ख्वाजःताश कहलाते हैं

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अज्वफ़

वह अरबी शब्द जिसके बीच का अक्षर ‘अलिफ़', ‘वाव’ या ‘ये’ हो

'अत्फ़

फेरना, मोड़ना

'अत्फ़-ए-बयान

(क़वाइद) जब दो इस्म कलाम में इस तरह बोले जाएं कि दूसरा इस्म पहले की मज़ीद तौज़ीह करे तो इस को अतफ़ बयान कहते हैं

अदात

औज़ार, आला, उपकरण

अफ़'आल

पाप

'अलामत-ए-इज़ाफ़त

(व्याकरण) का, की, के, रा, रे, री और ने, नी आदि जो वृद्धि स्वरूप प्रयोग होते हैं तथा ज़ेर (---) जो फ़ारसी मिश्रण या परिच्छेद में प्रयोग में होते हैंं

'अलामत-ए-फ़ा'इल

(व्याकरण) वो अक्षर (हर्फ़-ए-ने) जो सक्रिय चिह्न के तौर पर आता है

'अवामिल

कारण, प्रयोजन

'आमिला

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो मुताल्लिक़ा कलिमा में तख़य्युर पैदा करें, हुरूफ़ वग़ैरा

आ'लाम

साहित्य और विज्ञान में विख्यात व्यक्ति

इज़ाफ़त-ए-इस्ति'आरा

(क़वाइद) मुशब्बेह बह के करीने की इज़ाफ़त मुशब्बेह की तरफ़, जैसे : पिए फ़िक्र. (लुफ्त, फ़िक्र, इस बात का क़रीना है कि उसे क़ाइल ने अपने ज़हन में एक इंसान से तशबीया दी है, यानी इंसान मुशब्बेह बह है), इस तरह अक़ल के नाख़ुन, मौत के पंजे

इज़ाफ़त-ए-ज़र्फ़ी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक ज़र्फ़ हो और दूसरा मज़रूफ़, जैसे: शर्बत का गिलास, दवात की स्याही

इज़ाफ़त-ए-तख़्सीसी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह की वजह से मुज़ाफ़ में ख़ुसूसीयत पैदा होजाए, लेकिन ये ख़ुसूसीयत मिल्कियत और ज़रफ़ीत से मुताल्लिक़ ना हो, जैसे : आरिफ़ का हाथ, रेल का इंजन

इज़ाफ़त-ए-तम्लीकी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक मालिक हो दूसरा मालूक जैसे : अनवर की कियाब, गानओ- का ज़मींदार वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-तश्बीही

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह मुशब्बेह हो और मुज़ाफ़ मुशब्बेह बह, जैसे : ताने का नेज़ा, नेज़ों का मीना वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-तौज़ीही

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह, मुज़ाफ़ की वज़ाहत करे, (दूसरे लफ़्ज़ों में) मुज़ाफ़ आ हो और मुजाफ़ इलैह ख़ास, जैसे : मार्च का महीना, कराची का शहर वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-तौसीफ़ी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक सिफ़त हो और दूसरा मौसूफ़, जैसे : बे दूध की चाय, दिल का तंग, रोज़ रोशन, शब तारीक

इज़ाफ़त-ए-बयानी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुज़ाफ़, मुजाफ़ इलैह से बना हो, जैसे : लोहे की मेख़, दीवार-ए-गली वग़ैरा

इज़ाफ़ी

(क़ानून) वो ज़ाबता जो असली क़ानून की ठीक कार्रवाई कराने के लिए बनाया गया हो

इफ़्ति'आल

क्रिया, कार्य, काम

इंफ़ि'आल

लज्जित होने का भाव, शर्मिंदगी, लज्जा

'इल्म-ए-सर्फ़

(क़वाइद) अलफ़ाज़ और हुरूफ़ का इलम, सिर्फ़

इश्तिक़ाक़

शैली, बनावट

इस्तिमरार

नित्यता, दवाम, हमेश्गी, निरंतरता, लगातारपन, तसल्सुल, स्थायी होने का भाव, स्थायित्व

इस्म-ए-ज़ात

(क़वाइद) जिस नाम से एक तरह की बहुत सी चीज़ों की हक़ीक़त दूसरी तरह की चीज़ों से अलग समझी जाये और वो सिफ़त ना हो, जैसे: ऊंट, हाथी, घोड़ा, आग, पानी वग़ैरा

इस्मिय्यत

(क़वाइद) किसी लफ़्ज़ के इस्म होने की सूरत-ए-हाल, इस्म होना

क्रिया

(व्याकरण) वह शब्द जिससे किसी कार्य के किए जाने या होने की अवस्था या भाव प्रकट हो

कलाम-ए-ताम

(व्याकरण) शब्दों का ऐसा समूह या संयोजन जिससे पूरी बात समझ में आ जाए

कलाम-ए-नाक़िस

(व्याकरण) मुरक्कब ताम की ज़िद, शब्दों का एक संयोजन जिससे पूरी बात समझ में न आए

कलिमा

मुँह से निकली हुई कोई बात, वचन, शब्द, बात, क़ौल, उक्ति

कलिमा-ए-इज़ाफ़त

(व्याकरण) वो शब्द जो एक संज्ञा का दूसरे संज्ञा के साथ संबंध प्रकट करे

कलिमा-ए-ईजाब

(व्याकरण) वो शब्द जो स्वीकारोक्ति में या किसी के संबोधन और प्रश्न के उत्तर में बोला जाए

कस्र

जेर की मात्रा, टूट, शिकस्तगी, वह संख्या जो एक से कम हो, भिन्न, जैसे, १, ३, ३, ।।

कस्रा

(क़वाइद) कसर, ज़ेर की हरकत, हर्फ़ के नीचे की हरकत, अलामत

का

[स्त्री० काथरो] = कथा (गुदड़ी)।

काल

(मूसीक़ी) सिम और ताल के दरमयान का वक़फ़ा या सुकून

कि

कि

क़ियासी

कयास या अनुमान के आधार पर स्थिर किया हुआ

खड़ा-ज़बर

(इमला-ओ-क़वाइद) फ़तहा, वो छटा अलिफ़ जो अरबी रस्म उलख़त में बाअज़ हर्फ़ के ऊपर ज़बर की जगह लिखा जाता है, जैसे रहमान, यहया वग़ैहर में

खड़ा-ज़ेर

(इमला-ओ-क़वाइद) खींच कर पढ़ा जाने वाला कसरा या ज़बर, वो ज़ेर जो खड़ी लकीर की तरह किसी हर्फ़ के नीचे बनाते हैं और बॉय मारूफ़ की तरह पढ़ा जाता है और याय मारूफ़ किया वाज़ देता है जैसे : बिज़ाता, बईना में, अलिफ़ तहती

ख़त

किसी चीज़ की सतह पर निशान या चिह्न, खरोंच, बद्धी अर्थात बाँधने की कोई चीज़

ख़त्त-ए-फ़ासिल

विभाजन रेखा, दो वाक्यों में अंतराल के तौर पर लगाया जाने वाला निशान, डैश, वो लकीर जो दो चीज़ों के बीच में आकर एक दूसरे को जुदा करे

ख़फ़ीफ़

हल्का, कम (भार में)

ख़बरिया

(व्याकरण) एक प्रकार का वाक्य जो किसी सूचना या संकेत को बताता है

ख़ुमासी

पाँच वाला, अरबी का वह शब्द जिसमें पाँच अक्षर हों

खुरूज

निकलना, निःसरण, शासन के विरुद्ध विद्रोह, बगावत।

ख़िताब

उपाधि

गुप्त

रहस्य, पोशीदा बात, राज़

ग़ैर-मुत'अद्दी

(क़वाइद) वो फे़अल जिस का मफ़ऊल नहीं आता, फॉल-ए-लाज़िम

ग़ैर-शख़्सी

वह वाक्या जिसमें कर्ता न हो (व्याकरण)

गा

कार्तिकेय,विष्णु

ग़ाइब

अदृश्य, लापता, आँखों से ओझल, छिपा हुआ

गिराना

किसी आधार पर खड़ी वस्तु को आधात आदि पहुंचा कर जमीन पर लाना। जैसे-(क) किसी को चबूतरे या कुरसी से नीचे गिराना (ख) रेल की लाइन तोड़ कर गाड़ी गिराना।

ज़ू-जिंसैन

(व्याकरण) ऐसा शब्द जो पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों रूप में अलग-अलग अर्थों में प्रयोग किया जाता है

ज़ंजीरा

तरंग, मौज, लहर, एक प्रकार की सिलाई।

जुमला

वाक्य, शब्दसमूह, फ़िक्रः, बोल

ज़माइर

सर्वनाम, वह शब्द जो संज्ञा के बदले उपयोग किए जाते हैं

ज़माइर-ए-शख़्सी

(क़वाइद) ज़मीर (रुक) की जमा, ज़मीर की एक क़िस्म, किसी शख़्स के नाम के बदले इस्तिमाल होने वाले अलफ़ाज़ (वो, में, हम, तो, तुम वग़ैरा)

ज़मीर

सर्वनाम

ज़मीर फिरना

(व्याकरण) लौटना, वापस होना, इसकी ओर सर्वनाम से संकेत करना, किसी वर्णित संज्ञा के स्थान पर सर्वनाम का प्रयोग होना

ज़मीर-ए-इज़ाफ़ी

(क़वाइद) वो ज़मीर जो हालत-ए-इज़ाफ़त में हो जैसे मेरा, हमारा, तुम्हारा वग़ैरा

जमीर-ए-मुख़ातब

(व्याकरण) वह सर्वमान जो संबोधित व्यक्ति के लिए प्रयोग हुआ हो, जैसे तु, तुम, आप, मध्यम पुरुष का सर्वनाम, 'तुम'

ज़मीर-ए-मुतकल्लिम

(व्याकरण) वो सर्वनाम जो बात करने वाला अपने लिए प्रयोग करता है, जैसे: मैं, हम इत्यादि

ज़मीर-ए-मफ़'ऊली

(क़वाइद) ज़मीर जो हालत-ए-मफ़ऊली में इस्तिमाल की जाती है, मसला : मुझ, तुझ, उसे वग़ैरा

ज़मीर-ए-हाज़िर

(व्याकरण) वह सर्वमान जो संबोधित व्यक्ति के लिए प्रयोग हुआ हो, जैसे तु, तुम, आप

ज़मीर-ग़ाइब

वह सर्वनाम जो किसी अनुपस्थित व्यक्ति या वस्तु के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे ‘वह’

ज़र्फ़

सहनशीलता, संभावना

जवाब-ए-शर्त

(क़वाइद) जज़ा

ज़ाती-सिफ़ात

असली या हक़ीक़ी सिफ़ात जो किसी की ज़ात में तबन मौजूद हैं

जिंस-ए-मुश्तरक

सामान्य लिंग, ऐसी वस्तु जिसके मालिक एक से अधिक हों

ठेगा

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ दूसरे के साथ इस तरह मिला हुआ हो कि इस का हिस्सा मालूम हो

त'अद्दी

अन्याय

तक़दीर

भाग्य, प्रारब्ध, अदृश्य, अदृष्ट, दैव, क़िस्मत

तकबीर

‘अल्लाहो अक्बर' (ईश्वर सबसे बड़ा है) कहना, नमाज़ में झुकने, खड़े होने अथवा बैठने के लिए ‘अल्लाहो अक्बर' कहना

तख़फ़ीफ़

न्यूनीकरण, कमी करना, हलकापन, कमी, किसी का बोझ हल्का करना, कम करना, आराम, सखती में कमी आना, कमी, बचत, ख़र्च घटाना, ख़रच में कमी

तन्कीर

(क़वाइद) वो कलिमा जो किसी मख़सूस फ़र्द या शैय की निशानदेही ना करे

तफ़्ज़ील

(क़वाइद) सिफ़त का अपने मौसूफ़ में दूसरी चीज़ों के मुक़ाबले में तर्जीह ज़ाहिर करना

तफ़ज़ील-ए-कुल

(लफ़ज़न) तमाम पर फ़ज़लेत देना, (क़वाइद) सिफ़त का वो दर्जा जिस के ज़रीये एक मौसूफ़ की तमाम पर तर्जीह ज़ाहिर की जाये (फ़ारसी में सिफ़त के बाद ' तरीन ' लगा कर ज़ाहिर करते हैं, जैसे : बुज़ुर्ग तरीन = सब से बर्ज़ग, बद रैन सब से बुरा

तफ़ज़ील-ए-नफ़सी

(लफ़ज़न) ज़ाती सिफ़त , (क़वाइद) सिफ़त का वो दर्जा जिस में मौसूफ़ को किसी और पर तर्जीह और फ़ज़लेत ना दी जाये

तफ़्ज़ील-ए-बा'ज़

शाब्दिक: कुछ को प्राथमिकता देना, व्याकरण: तुलनात्मक डिग्री (विशेषण की), विशेषण का वो दर्जा जिसके द्वारा एक वर्णित की कुछ पर प्राथमिकता प्रकट की जाये

तफ़्सीलिया

विराम चिह्न (:), बृहदान्त्र, अपूर्ण विराम, कॉलन

तमन्नाई

इच्छुक, अभिलाषी, लालसी, स्पृही, आकांक्षी, लिष्सु

तरकीब

तरीका; उपाय, ढंग, युक्ति

तरकीब देना

मिलाना, मिश्रित करना, मिलाकर बनाना

तरकीब-ए-इज़ाफ़ी

(क़वाइद) दो इस्मों को इज़ाफ़त के ज़रीये मिलाना, मसलन जै़द की किताब या किताब जै़द, इस मजमूआ को मुरक्कब इज़ाफ़ी कहेंगे, इस में जै़द मुजाफ़ इलैह है और किताब मुज़ाफ़

तरकीब-ए-इत्तिसाली

(क़वाइद) दो अफ़आल को इस तरह मिलाना कि मुरक्कब हो जाने के बावजूद दोनों के मफ़हूम अलग अलग रहें, जैसे देख आना यानी देख कर आना

तरकीब-ए-क़ल्ब

(व्याकरण) उल्टी तरकीब जिस में अलफ़ाज़ की तक़दीम-ओ-ताख़ीर आम क़ाअदे के बरअकस हो

तरकीब-ए-तौसीफ़ी

(व्याकरण) वाक्य- रचना में एक विशेष्य और दूसरा विशेषण हो, जैसे काला बादल

तस्कीन

(सूफ़ीवाद) उस विनम्र दिल का नाम है, जो बहुत परेशानी और चिंता के बाद मालिक पर ईश्वर की ओर से प्रकट होती है और सुकून प्रदान करती है

तस्ग़ीर

(व्याकरण) वह संज्ञा जिस में छोटे के अर्थ पाए जाएँ या अवमानना या मुहब्बत का पहलू निकलता हो, जैसे बन्नू (प्यारी दुल्हन) वग़ैरा

तस्निया

(क़वाइद) किसी फे़अल की गर्दान में दो को ज़ाहिर करने वाला सीग़ा

तहक़ीक़

विश्वास के स्तर पर, निश्चयपूर्वक

तहरीक

वरग़्लाना, बहकाना

ता-ए-क़रिशत

व्याकरण: ते, वो 'ते' जो वर्णमाला के क्रम में करशत के संग्रह में शामिल है और जिसकी संख्या की गणना ४०० होती है, ‘अवजद' के हिसाब से 'क़रशत'वाली ते (७.)

ता-ए-तानीस

व्याकरण: वो 'ते' जो शब्द के अंत में स्त्रीलिंग बनाने के लिए आए

ताज़ी

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो अजमी ना हूँ और अरबी ज़बान से मुख़तस हूँ

ता'दिया

(अर्थशास्त्र) टैक्स चुकाने वाले से टैक्स का दूसरों की ओर स्थानांतरण, टैक्स का स्थानांतरण अथवा परिवर्तन

तानीस-ए-मा'नवी

व्याकरण: एक संज्ञा जिसमें कोई स्त्रीलिंग चिन्ह नहीं होता है लेकिन भाषाविद् इसे स्त्रीलिंग कहते हैं

ता'लील

(क़वाइद) हर्फ़-ए-इल्लत को ज़ाइल करना या बदल देना या किसी लफ़्ज़ के हर्फ़-ए-इल्लत को साकन या हज़फ़ करके इस में तख़फ़ीफ़ करना और तबदीली की वजह बयान करना

नून-ए-ख़फ़ीफ़ा

(क़वाइद) वो नून जो हल्की आवाज़ के साथ पढ़ा जाये (वो नून जो क़ुरआन शरीफ़ में दो जगह सूरा-ए-यूसुफ़ और सूरा-ए-इक़रा में आया है

नून-ए-हालिया

(क़वाइद) नून ग़ुन्ना जो फ़ारसी अलफ़ाज़ के आख़िर में किसी काम के जारी होने का पता देता है , जैसे : रवा (चलने वाला) से रवां (चलता हुआ) (उमूमन अलिफ़ के साथ , जैसे : रक़्स से रक़्सां, गिरिया से गिरियां

नपुंसक

वह व्यक्ति जिसमें काम-वासना या स्त्री-संभोग की शक्ति बिलकुल न हो अथवा बहुत ही कम हो, ऐसा मनुष्य जिसमें न तो पूर्ण पुरुषों के चिह्न हों न स्त्रियों के ही, विशेष-वैद्यक के अनुसार जब पुरुष का वीर्य और माता का रज समान होता है तब नपुंसक संतान उत्पन्न होती है, विशेष-वैद्यक में, नपुंसक पाँच प्रकार के माने गये हैं: आसेव्य, सुगंधी, कुंभीक, ईर्ण्यक और षंड

नस्ब

किसी सिम्त का क़सद करना या निशाना लेना (फ़र्हंग तलफ़्फ़ुज़)

नस्ब करना

खड़ा करना, गाड़ना, लगाना, स्थापित करना, जड़ना (कोई क़ीमती पत्थर या नगीना वग़ैरा)

नह्य

निषेध, रोक, निषेधाज्ञा

नाफ़िया

रुक : नाफ़ी , (क़वाइद) हर्फ़-ए-नफ़ी, वो हर्फ़ जो लफ़्ज़ के शुरू में आकर नफ़ी के मानी देता है , जैसे : ए, नून, इन वग़ैरा

निदाई

खेत में से फ़ालतू और निकम्मी घास निकालने का काम, निलाई, निराई

निपात

बेटे का बेटा, पोता

नियोग

इस्तिमाल

नीम-वक़्फ़ा

(संगीत शास्त्र) सुरों की अदायगी के बीच में आने वाले छोटे अंतराल से भी छोटा अंतराल

पद-भंजन

व्याकरण में, समस्त-पदों के पूर्व और उत्तर पद आदि अलग-अलग करने की क्रिया या भाव

पुन-लिंग

पुरुष का शिश्न, लिंग, पुरुष का चिह्न

प्राण

शक्ति, ताकत

फ़े'ल-ए-अम्र

(क़वाइद) वो फे़अल जिस में मुख़ातब को किसी काम के करने का हुक्म दिया जाये

फ़े'ल-ए-ताम

(व्याकरण) पूर्ण क्रिया, सही क्रिया

फ़े'ल-ए-नाक़िस

अपूर्ण क्रिया

फ़े'ल-ए-मुज़ारे'

(व्याकरण) वह क्रिया जिसमें वर्तमान और भविष्य काल दोनों पाए जाएँ

फ़े'ल-ए-मुरक्कब

(व्याकरण) वो क्रिया जो किसी दूसरी क्रिया, संज्ञा या विशेषण के साथ मिल कर एक सामूहिक भाव को लक्षित, जैसे: काम करना, रोशन करना आदि

फ़े'ल-ए-सहीह

(क़वाइद) वो फे़अल जिस के हरूफ़-ए-असली में गर्दान के वक़्त कुछ तबदीली या हज़फ़ या ज़्यादती हुरूफ़ ना हो, जैसे : समझना

फ़ा'इल-ओ-मफ़्'ऊल

(संकेतात्मक) बुरा काम करने और कराने वाला, गुदा मैथुन करने और कराने वाला, गुदा-मैथुनकारी, पुस्र्षमैथुन करनेवाला, लौंडाबाजी

फ़ा'इला

किसी काम का करने वाला, जिससे कोई क्रिया किया जाए

बिभक्ती

(क़वाइद) तरो, हालत

भूत

अस्तित्व में आ चुका या बन चुका हो, बना हुआ

मुअन्नस

मादा, स्त्री, महिला

मु'अर्रफ़

(क़वाइद) वो हर्फ़ जो मारिफ़ा बनाया गया हो

मु'आविन-फ़िक़रा

(क़वाइद) वो फ़िक़रे जो पहले फ़िक़रे के मफ़हूम में इज़ाफ़ा करने के लिए बढ़ा देते हैं

मुक़द्दर

(व्याकरण) वह वाक्य जो 'इबारत में न हो मगर उसके मानी यानी अर्थ लिए जाएँ, कलिमा-ए-महज़ूफ़, वह कलिमा अर्थात वाक्य या कलाम जो 'इबारत न हो लेकिन उसके अर्थ वहाँ लिए जाएँ

मक़बूल

अज़ीज़, प्यारा

मक्सूर

व्याकरण: वो अक्षर जिसके नीचे ज़ेर की हरकत या अलामत हो, ज़ेर दिया हुआ, ज़ेर से पढ़ा जाने वाला

मुख़्तफ़ी

व्याकरण: वो हाय-होज़ जो उच्चारण में नहीं आते केवल हरकत को प्रकट करने के लिए होता है

मुग़य्यरा

वो क़ुव्वत जो ग़िज़ा में तग़य्युर कर के इस को जुज़ु बदन होने के काबिल बनाती है

मुज़क्कर

जिसमें पुरुष या नर के गुण, विशेषताएँ आदि हों, पुंल्लिग, नर

मुज़्मिर

(व्याकरण) पूर्वपद

मजरूर

शाब्दिक: खींचा हुआ

मुजर्रद

(अरबी क़वाइद) वो मुसद्दिर जिस के माज़ी में हुरूफ़ असली के सिवा कोई ज़ाइद हर्फ़ ना हो

मुज़ाफ़

(क़वाइद) वो इस्म जिसे इज़ाफ़त या निसबत दी जाये, मुताल्लिक़ या मंसूब किया जाये , वो इस्म जो दूसरे इस्म के साथ लगाया जाये

मुज़ाफ़-इलैह

जिससे जोड़ा या मिलाया गया, जिसकी ओर निस्बत की जाय, जैसे-रमेश का घोड़ा, इसमें घोड़े की निस्बत रमेश की ओर है, इसलिए रमेश 'मुजाफ़ इलैह' है, और घोड़ा ‘मुज़ाफ़' है

मुज़ारे'

(उरूज़) एक बहर का नाम जो बहर-ए-मुंसरेह और बहर हज़ज से मुशाबेह है, मनसरह से इस लिए मुशाबेह है कि दोनों बहरों में जुज़ु दोम वतद मफ़रूक़ पर मुश्तमिल है और हज़ज से इस लिए मुशाबेह है कि इन दोनों बहरों के अरकान में औताद अस्बाब पर मुक़द्दम हैं, वज़न, मुफ़ाईल फाइलातुन मुफ़ाईलन फाइलातुन

मुजाविज़

हद से बढ़ने वाला, जो अपनी सीमा से बाहर जा कर कुछ करे

मज़ीद

बढ़ाया हुआ, ज़्यादा किया हुआ, और भी, ज़्यादा

मुझ

'मैं' का वह रूप जो उसे कर्ता और संबंध कारक की विभक्तियों के अतिरिक्त अन्य शेष कारकों की विभक्तियाँ लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- मुझको, मुझसे, मुझ पर आदि

मुत'अल्लिक़ात

वे चीज़ें जो किसी दूसरी चीज़ से संबद्ध या जुड़े हुए हों , संबंधित कार्य या वस्तुएँ

मुतकल्लिम

धर्मशास्त्र का विशेषज्ञ, मीमांसक, आलोचक, समीक्षक, जो तर्कसंगत तर्कों के साथ धार्मिक मामलों को प्रमाणित करता है और गैर-इस्लामी मान्यताओं को काटने वाला

मतरूक

वह शब्द या मुहावरा आदि जो पहले प्रयोग में हो किंतु अब अस्पष्ट समझकर छोड़ दिया गया हो

मुत्लक़ा

(क़वाइद) उस्ता रे की एक क़िस्म जिस में मस्ता रुला' और मुस्तआर मुँह' किसी के भी मुनासिबात मज़कूर ना हूँ

मुतहर्रिक

 

मुद्द'आइय्या

(क़ायदा) ऐसा जुमला जिसमें मतलब बयान किया गया हो

मनक़ूल

उल्लेखित, उद्धृत, हवाला देना, उद्धरण करना, प्रतिलिपित, नक़ल या रिवायत किया गया, एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया, नक़ल की हुई इबारत या तस्वीर

मनहूत

छैला हुआ (लक्कड़ी वग़ैरा से) , (क़वाइद) तराशा हुआ, घड़ा हुआ (लफ़्ज़)

मुनादा

(आशीर्वाद के स्थान में) ऐ तू जीता रह (कोसने के स्थान पर) ऐ तू मरे, (आश्चर्य में) ऐ वाह, ऐ लो, (अभिलाषा के लिए) ऐ वह दिन ईश्वर न करे (स्वीकार्य) ऐ यहाँ आओ (अस्विकृति में) ऐ ये बात न करना, (पूछताछ के स्थान पर) जैसे ऐ बताओ (सौगंध में) ऐ तुम्हारी जान की सौगंध, (विनती के लिए) ए यहाँ नहीं आते कि बातें करें, (आशा में) ऐ शायद वह आया, (निंदा के लिए) ऐ तू भी उत्तर नहीं देता

मफ़'ऊल-मिन्हु

पाँचवाँ कारक, अपादान।

मफ़'ऊली

बदफ़ेली पर मबनी, इग़लाम वाला

मुफ़रद

(क़वाइद) वो जुमला जिस में सिर्फ़ एक फे़अल हो

मुफ़स्सल

तफसील अर्थात् ब्योरे के रूप हुआ। २ स्पष्ट। पुं० किसी बड़े नगर के आस-पास के प्रदेश या स्थान। किसी बड़े शहर के आस-पास की छोटी बस्तियाँ।

मफ़ा'ईल

(क़वाइद) जमा कसरत का एक क़ियासी वज़न (जैसे मुफ़ातीह जमा मिफ़्ताह) नीज़ (उरूज़) बहर का एक वज़न

मंफ़ी

उल्टा, विपरीत अथवा विपरीत दिशा वाला (छवि, प्रतिक्रिया इत्यादि)

मुबद्दल

बदला हुआ, परिवर्तित

मुब्दल-मिन्हु

जिस शब्द से बदला गया, वह शब्द।

मबनी

(क़वाइद) वो कलिमा जिस के हर्फ़-ए-आख़िर के एराब में हुरूफ़ इआमला की वजह से तग़य्युर वाक़्य ना हो

मुबालग़ा

(बदी) मदह या हजव में इतनी ज़्यादती जो फे़अल या आदत या दोनों की रोओ से मुम्किन ना हो

मुरक्कब

(क़वाइद) तरकीब जिस में कई मुफ़रद फ़िक़रे हूँ

मुरक्कब-'अददी

(व्याकरण) एक यौगिक शब्द या वाक्यांश जिसमें कोई संख्या शामिल हो जैसे प्रथम वर्ष, छह-आयामी, आदि

मुरक्कब-इशारी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो इशारा और मुशार अलैह से मिल कर बने

मुरक्कब-ए-'अतफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब कलाम जो मातूफ़ और मातूफ़ अलैह से मिल कर बने

मुरक्कब-ए-इज़ाफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो मुज़ाफ़ और मुज़ाफ़ एव लिया से मिल कर बने या जिस में एक इस्म को दूसरे इस्म से निसबत दें

मुरक्कब-ए-तरादुफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जिस में दो हम मानी लफ़्ज़ हूँ

मुरक्कब-ए-ताम

(व्याकरण) दो या दो से अधिक वाक्य का वो समूह जिसे सुन कर पूरी बात मालूम हो जाए और संबोधक को इंतिज़ार न रहे

मुरक्कब-ए-तौसीफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो सिफ़त और मौसूफ़ से मिल कर बने

मुरक्कब-ए-नाक़िस

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जिस से सुनने वाले को पूरा फ़ायदा हासिल ना हो और वो हमेशा जुज़ु जुमला होता है

मुरक्कब-ए-मुफ़ीद

(क़वाइद) रुक : मुरक्कब ताम जो ज़्यादा मुस्तामल है

मुरक्कब-तमीज़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब कलाम जो तमीज़ और मुमय्यज़ से मिल कर बने

मुरक्कब-ताकीदी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो ताकीद और मौकद से मिल कर बने

मर्जा'

(व्याकरण) वह संज्ञा जिसकी ओर कोई सर्वनाम फिरे

मरफ़ू'

(क़वाइद) वो (हर्फ़) जिस पर पेश की हरकत हो, मज़मूम

मल्फ़ूज़ी

उरूज़: जो पढ़ने में मालूम हो मगर लिखने में न आए (जैसे ताऊस और काऊस कि उरूज़ के जानने वाले संधि विच्छेद में दो लिखते हैं और वास्तविक दो 'वाव' हैं लेकिन किताबत में एक 'वाव' लिखा जाता है

मल्फ़ूज़ी-शक्ल

(क़वाइद) लफ़्ज़ की शक्ल जो अदा करने से ज़ाहिर हो , (मुरादन) तलफ़्फ़ुज़ (लिखी जाने वाली या मकतोबी के मुक़ाबिल)

मुश्तक़

उत्पन्न, निकला हुआ, वह शब्द जो किसी दूसरे शब्द से बना हो

मुसग़्ग़र

छोटा किया हुआ, लघूकृत, छोटा किया गया

मुस्तक़बिल

सामने आने वाला, आगे आने वाला, आने वाला ज़माना, आने वाला वक़्त, भविष्यकाल

मुस्तक़बिल-ए-एहतिमाली

(क़वाइद) फे़अल का वो सीग़ा जिस मेंगा, गी, गे, के बजाय हरूफ़-ए-एहतिमाल शायद, मुम्किन है और ग़ालिबान ु वग़ैरा इस्तिमाल करते हैं (जैसे : शायद वो कल आए

मुस्तक़्बिल-ए-क़रीब

आइंदा ज़माना जो क़रीब हो

मुस्ता'लिया

(अरबी व्याकरण) वे हुरूफ़ अर्थात अक्षर जिनसे इमाला पैदा नहीं होता अर्थात ख़े स्वाद ज़्वाद तो ज़ो ग़ैन क़ाफ़

मसदर

उद्गम, उत्पत्तिस्थान, वह शब्द जिससे क्रियाएँ और कर्ता, धातु-कर्म आदि बनते हैं

मस्दरी

स्रोत से संबंधित, बुनियादी, असली

मुसनद-इलैह

(क़वाइद) जिस पर हुक्म किया जाये, जिस के मुताल्लिक़ कुछ कहा जाये, मुबतदा

मंसूब

स्थापित किया हुआ, गाड़ा हुआ, जमाया हुआ, स्थिर किया हुआ, खड़ा किया गया या किया हुआ

मुंसरिफ़

(साक्षणिक) बदलने वाला, फिर जाने वाला, अवज्ञाकारी

मुंसरिमी

अंतरिम स्थिति

मुसव्वित

वो जो ज़ोर से चलाए, शोर करने वाला, (लिसानियात) हर्फ़-ए-इल्लत जो हर्फ़-ए-सहीह को मुतहर्रिक करता और इस की आवाज़ पैदा करता है और इस तरह मुख़्तलिफ़ सही आवाज़ों को जोड़ता है , (क़वाइद) हर्फ़-ए-इल्लत, वो हर्फ़ जो किसी हर्फ़-ए-सहीह को मुतहर्रिक करे

मसादिर

निकलने की जगहें, निकलने के स्थान, स्रोत, साधन, कारण, आधार, जड़े

मुहमल

(क़वाइद) ऐसा लफ़्ज़ जिस के कोई मानी ना हूँ, जो किसी लफ़्ज़ के साथ बतौर ताबे इस्तिमाल होता है जैसे खाना वाना, रोटी ववटी में वाना और ववटी

मुहर्रफ़

नीतिशास्र: रास्ते से हटी हुई तबीयत जिसमें नीच लोगों के लक्षण हों, जिसमें बदलाव किया गया हो, फेरा गया, रास्ते से फेरा हुआ

मुहर्रफ़ा

(क़वाइद) बदला गया, बदला हुआ (हर्फ़)

मुहर्रिक

हिलाने वाला, कंपन देने वाला, कंपित करने वाला, गति देने वाला

मुहावरतन

(व्याकरण) मुहावरे के तौर पर, मुहावरे के अनुसार

मुहावरा

रोज़मर्रः, बोलचाल, किसी भाषा के वाक्यों का वह प्रयोग जो उस भाषा के बोलनेवाले करते हैं और जिसका अर्थ अभिधेय अर्थ से पृथक् होता है, जैसे-‘लात खाना’, या ‘आँख आना’, क्योंकि लात रोटी की तरह खाया नहीं जाता, और आँख सफ़र नहीं करती, इनका अर्थ है, लात की मार सहना और आँखों में पीड़ा होना, यही मुहावरा है।

माख़ज़

वो जगह जहाँ से कोई चीज़ निकले, स्रोत

माज़ी-क़रीब

(व्याकरण) वह अतीत जिससे निकट का भूतकाल समझा जाए, वह अतीत जिसमें काम अभी अभी समाप्त होना पाया जाए, जैसेः आया है, किया है

माज़ी-तमन्नाई

(व्याकरण) वह भूतकाल जिसमें किसी काम को करने की इच्छा पायी जाए, जैसे: काश वह आता

माज़ी-ब'ईद

वह अतीत जिसमें काम समाप्त हुए देर हो चुकी हो, जैसे: किया था

माज़ी-मुतलक़

आम माज़ी, सामान्य भूतकाल, जैसे—किया, खाया आदि

मा'तूफ़-'अलैह

वह शब्द जो किसी दूसरे शब्द के साथ मिलकर आये, जैसे-राम और लक्षमण, में लक्षमण

मा'तूफ़ा

(क़वाइद) वो जुमला जिस में हरफ़-ए-अतफ़ पाया जाये

मा'दूला

वह अक्षर जो लिखने में तो आए लेकिन पढ़ने में न आए आम तौर पर वाओ के लिए विशिष्ट जैसे ख़ुद, ख़ाब आदि

मा'नवी-जुज़्व

(?] असल जज़ू , असली हिस्सा

मा'नवी-तक़्सीम

(व्याकरण) अर्थ के अनुसार वितरण

मा'रूफ़

मालूम, प्रकट

मा'रूफ़-ए-इंफ़ि'आली

(क़वाइद) वो जुमला जिस में ग़ैर ज़ी रूह पर दलालत करने वाला फ़ाइल इन्फ़िआली फे़अल से क़बल मफ़ऊल के मुक़ाम पर आता है जैसे इस जुमले में''अहमद को दवा से फ़ायदा हुआ ।'

मा'लूल

(इलम हदीस) वो हदीस जिस में किसी तरह की इल्लत पोशीदा हो जो सेहत हदीस में क़दह करती हो

मा'लूल-उल-आख़िर

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस के आख़िर में ए,-ओ-, य में से कोई हर्फ़ हो , कलिमा के आख़िर में या ना बढ़ा देना जैसे लेता लाती से छितियाना छाती से

मा'हूद-ज़ेहन

(व्याकरण) वह जातिवाचक संज्ञा जो संबोधन करने वाले या बात करने वाले में किसी व्यक्ति विशेष के संबंध में हो, उदाहरण: अल्लामा से अभिप्राय इक़बाल लीया जाए या चचा से ग़ालिब आश्य ली जाए

मिफ़'आल

(क़वाइद) इस्म-ए-आला के लिए राइज अरबी अलासल दो ओज़ान में से एक वज़न

मो'जम

व्याकरण: जिस पर नुक़्ते हों, बिंदी वाले अक्षर, बिंदियुक्त

मो'तरिज़ा

एतराज़ वाला , (क़वाइद) वो (जुमला) जो बीच में दाख़िल कर दिया जाये या जो बात काट कर कही जाये

मो'तल

कमज़ोर, निर्बल, बीमार

मौक़ूफ़

(व्याकरण) हर्फ़-ए-साकिन जिसका पहले वाला भी साकिन हो, जैसे दोस्त और गोश्त में त

रूढ़ि

(व्याकरण) वह संज्ञा जो किसी से बनी न हो, वह शब्द जो किसी दूसरे शब्द से बना न हो

राजे'

(मंतिक़) जिस हद से इज़ाफ़त (दो चीज़ों की बाहमी निसबत) जारी हो राजा कहते हैं

रोज़-मर्रा

प्रतिदिन, हर रोज़, नित्य-प्रति

लवाहिक़

‘लाहिक़ः’ का बहु., किसी मूल पदार्थ के अन्त में लगायी जानेवाली वस्तुएँ।।

लाहिक़

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी लफ़्ज़ के शुरू या बाद में दर्ज हो लाहिक़ा या साबिक़ा

लाहिक़

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी लफ़्ज़ के शुरू या बाद में दर्ज हो लाहिक़ा या साबिक़ा

लाहिक़ा

(क़वाइद) किसी कलिमे या जुज़ो-ए-कलिमा के बाद वो हर्फ़ या अधूरा या पूरा लफ़्ज़ जिस से एक कलिमा बिन जाये या जो नहवी शक्ल बनाने में काम आए

लिंग

पुरुष की जनन-शक्ति के प्रतीक के रूप में लिंग की पूजा करने की प्रथा जो अनेक प्राचीन जातियों में प्रचलित थी और अब भी हिन्दुओं में जो शिव-लिंग की पूजा के रूप में प्रचलित है

लीन

अ. स्त्री.कोमलता, नमीं ।।

वक़्फ़

(शाब्दिक) खड़ा होना, ठहरना, स्थापित करना, क़याम करना, रुकना, अंतराल, ठहराव, सुकून

वक़्फ़ा-ए-कामिल

(क़वाइद) मुकम्मल ठहराव, वक़्फ़ लाज़िम नीज़ वो जगह या निशान (० या -) जहां फ़िक़रा ख़त्म होजाता है

वचन

वाणी, वाक्य, उक्ति, कथन

वज़'-ए-मस्दर

(व्याकरण) वह शब्द जिससे क्रिया, कर्ता आदि बनते हैं, उद्गम की शक्ल

वर्तमान

चलता हुआ, जो ज़ारी हो, जो चल रहा हो, जो इस समय अस्तित्व या सत्ता में है, सामयिक

वर्तमान-काल

वृत्तान्त, समाचार, हाल

वसला

(क़वाइद) (रुक : वस्ल मानी ८) वस्ल की अलामत

वाक़े'

निश्चित रूप से होने वाला

वाचक

बताने या बोध कराने वाला, सूचक, बोधक, द्योतक

वाव-तमीज़

(क़वाइद) अरबी ज़बान का वो वाइ जो हमेशा इस्म उम्र मस्कन अलावसत के आख़िर में आता है और ग़ैर मलफ़ूज़ होता है, वो वाइ जो तक़ती में शुमार नहीं किया जाता

वाव-बयान-ए-ज़म्मा

(क़वाइद) वो वाओ जो लफ़्ज़ के आख़िर में आता है और इस से पहले हमेशा पेश होता है ये मारूफ़ और मजहूल दोनों तरह आता है

वाव-साकिन

(क़वाइद) रुक : वाइ लेन

वाहिद-ग़ाइब

(व्याकरण) किसी ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सर्वनाम जो मौजूद न हो

वाहिद-मुतकल्लिम

(क़वाइद) ज़मीर वाहिद मुतकल्लिम, वो ज़मीर जो कलाम करने वाला अपने लिए इस्तिमाल करे

वाहिद-हाज़िर

(क़वाइद) (ज़मीर वाहिद हाज़िर) उस शख़्स के लिए मुस्तामल जो वाहिद मुतकल्लिम हो, में

विराम

क्रिया, गति, चाल आदि में होनेवाला अटकाव।

शर्त

शरत

सकता

स्तंभित, वह अवस्था जब कोई व्यक्ति मरा हुआ लगता है मगर वह जीवित होता है

सन्धि

दो चीज़ों का एक में मिलाना, मेल, संयोग

समा'ई

व्याकरण: एक शब्द जो केवल नियम के अनुसार नहीं बना है, लेकिन भाषाविदों के द्वारा बोली जाती है और उनसे सुना जाता है

सूरत-ए-मस्दरी

(क़वाइद) मसदरी हालत, किसी फे़अल की मसदरी शक्ल

सहता

कृषि: चरखे के किनारे पर एक लकड़ी सवा बित्ते की लंबी और पौन बित्ते की ऊँची गाड़ी जाती है उसको सहता कहते हैं

सहीह

जिसमें किसी प्रकार का झूठ या मिथ्यात्व न हो, यथार्थ, वास्तविक, सच, सत्य, ठीक, उचित, त्रुटि रहित, निर्दोष, चंगा, अच्छा, सेहत मंद, स्वस्थ, पूर्ण, पूरा, साबित, समूचा

सामित

चुपका, ख़ामोश, चुप-चाप, हुक्का बिका, हैरतज़दा, आश्चर्यचकित, शांत, ठहरा हुआ, पुरसुकून

सितारा

तारा, नक्षत्र, तारा, उडु, ग्रह, सैयार, भाग्य, तक्दीर , (क़वाइद) सितारे का जैसा निशान जो हवाले के लिए लफ़्ज़ों पर बना दिया जाता है

सिफ़त

(तसव्वुफ़) इस्तिलाह में ज़हूर-ए-ज़ात-ए-हक़्क़ानी बानो आ मुख़्तलिफ़ को कहते हैं क्योंकि ज़ात बगै़र सिफ़ात के ज़ाहिर नहीं हो सकती और ज़ात के वास्ते हयात और इलम और इरादा और क़ुदरत और समा और बसर और कलाम जिन को उम्हात-ए-सिफ़ात कहते हैं लाज़िमी हैं और याफ़्त-ए-ज़ात की सिफ़ात ही से है

सिफ़त-ए-'अददी

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी इस्म की तादाद मुईन या ग़ैर मुईन ज़ाहिर करे, मसलन पाँच आदमी, चंद लोग

सिफ़त-ए-ज़ाती

व्याकरण: वो शब्द जो किसी व्यक्ति या सामग्री की व्यक्तिगत या अंदरूनी हालत या विशेषता बताए

सिफ़त-ए-निस्बती

(क़वाइद) वो सिफ़त जिस में किसी दूसरी शैय से लगाओ या निसबत ज़ाहिर हो, मसलन हिन्दी, अरबी वग़ैरा उमूमन ये निसबत इस्म के आख़िर में या-ए-माअरूफ़ के बढ़ाने से ज़ाहिर होती है

सिफ़त-ए-मुशब्बा

(क़वाइद) वो सिफ़त जिस में वस्फ़ी मानी हमेशा के लिए पाए जाएं, सिफ़त-ए-ज़ाती

सिफ़त-ए-हालिया

(क़वाइद) असम-ए-हालिया या सिफ़त-ए-हालिया वो मुशब्बेह फे़अल है जो अपने फ़ाइल को ये ज़ाहिर करता है कि वो काम करने की हालत में है

सिला

प्रतिकार, बदला, प्रत्यपकार, बुराई का बदला, प्रत्युपकार, भलाई का बदला, पुरस्कार, इन्आम, उपहार, तोहफ़ा, किसी परिश्रम का फल या बदला, धन के रूप में हो या किसी दूसरे रूप में

सिलात

(क़वाइद) वो हुरूफ़ रब्त जो अफ़आल के साथ ख़ास मफ़हूम अदा करने के लिए लाए जाएं

हज़्फ़

किसी शब्द से एक अक्षर कम कर देना

हर्फ़

(व्याकरण) अव्यय

हर्फ़-ए-'अत्फ़

वह अक्षर जो दो शब्दों को परस्पर मिलाने के लिए उनके बीच में आये, जैसे- रोज़ोशब (रोज़ व शब) में ‘वाव'

हुरूफ़-ए-अबजद

(क़वाइद) रुक : हरूफ़-ए-तहज्जी

हर्फ़-ए-अस्ली

(क़वाइद) वो हर्फ़ जो किसी लफ़्ज़ के माद्दे का जुज़ु हो और जमल.ह तग़ी्यरात मैन बाक़ी रहे

हर्फ़-ए-इंकार

(व्याकरण) नकार देने वाले वचन, नहीं शब्द

हर्फ़-ए-इज़राब

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी को आला से अदना और अदना से आला बनाने के लिए इस्तिमाल हो "बल्कि" हर्फ़ इज़राब है

हर्फ़-ए-'इल्लत

(क़वाइद) वो शब्द जो किसी क्रिया का कारण प्रकट करे, जैसे : क्योंकि, इस लिए कि, ताकि आदि

हुरुफ़-ए-'इल्लत

उर्दू में अलिफ़, वाव और ये, हिंदी में ‘स्वर', इंगलिश में ‘वावेल', इसके तीन अक्षर हैं वाओ, अलिफ़ और या

हर्फ़-ए-इस्तिफ़हाम

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो पूछने के मौक़ा पर इस्तिमाल होता है, जैसे : किया, क्यों, कैसे, वग़ैरा

हर्फ़-ए-इस्तिस्ना

(व्याकरण) वह अव्यय जो एक चीज़ को दोसरी चीज़ से पृथक करे, जैसे-‘सब आ गए मगर राम में 'मगर'

हुरूफ़-ए-ईजाब

(क़वाइद) वो अलफ़ाज़ जो किसी बात के इक़रार करने में और किसी पुकार या सवाल के जवाब में बोले जाएं जैसे : हाँ, जी, भला, अच्छ्াा, ठीक, दरुस्त, बजा, क्यों, नहीं, वाक़ई वग़ैरा

हुरूफ़-ए-क़मरी

अरबी में वह अक्षर जिनमें 'ल' मिलता नहीं है, जैसे: अल-क़मरअल-क़मर (ا، ب، ج، ح، خ، ع، گ، ف، ق ک، م، و، ہ، ی)

हुरूफ़-ए-किनाया

(व्याकरण) इशारा व संकेत के लिए इस्तेमाल होने वाले अक्षर

हुरूफ़-ए-ग़ैर-मुतशाबिह

(क़वाइद, तजवीद) वो हुरूफ़ जिन की शक्ल एक दूसरे से मिलती जलती ना हो जैसे : ब, ज वग़ैरा

हुरूफ़-ए-ज़ियादत

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो कलाम की ज़ीनत और ख़ूबसूरती के लिए आते हैं, मसलन बगो और बगफ़त में '' ब '' या दरबर्गीर में '' बर'' वग़ैरा

हुरूफ़-ए-त'अज्जुब

(क़वाइद) वो कलिमात जो हैरत-ओ-ताज्जुब के मौक़ा पर बोलते हैं, मसलन अजी नहीं, हाएं, अरे, ओहो वग़ैरा

हर्फ़-ए-तंकीर

(क़वाइद) वो हर्फ़ या लफ़्ज़ जो किसी इस्म के साथ आकर नक्रा के मानी पैदा करे

हर्फ़-ए-तख़्सीस

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी इस्म या फे़अल की ख़ुसूसीयत या हसर ज़ाहिर करने केलिए आए, मसलन : ही, सिर्फ़, महिज़, बस, ख़ाली, निरा, अकेला, फ़क़त, तन्हा

हर्फ़-ए-तफ़्सीर

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस से किसी लफ़्ज़ के मानी या कलाम का मतलब वाज़िह करें, मसलन यानी 'मुरादन' मुराद यक्का, मतलब वग़ैरा

हर्फ़-ए-तमन्ना

वो शब्द या वाक्य जो इच्छा व्यक्त करे

हर्फ़-ए-तर्दीद

(व्याकरण) वह शब्द जो एक बात को निरस्त करके उसके स्थान पर दोसरी बात लाए, खंडन करने वाला कथन, जैसें: चाहे, या या तो, कि आदि

हर्फ़-ए-तश्बीह

वह शब्द जो उपमा के लिए आये उदाहरणः जैसे, समान, तुल्य, सदृश

हुरूफ़-ए-तहसीन

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो तारीफ़ या हौसलाअफ़्ज़ाई के मौक़ा पर मुंह से निकलते हैं, जैसे : आफ़रीन, शाबाश, ख़रब वाह वा, सुबहान अल्लाह, क्या ख़ूब वग़ैरा

हर्फ़-ए-ताकीद

(व्याकरण) वह अक्षर जो बात में ज़ोर देने के लिए प्रयोग होता है जैसे: अवश्य, निश्चित, हरगिज़, कभी आदि

हुरूफ़-ए-ता'ज़ीम

(क़वाइद) वो कलिमात जिन से किसी की बड़ाई या बुज़ुर्गी का पास-ओ-इज़हार मक़सूद हो, जैसे : हज़रत, क़िबला, हुज़ूर, आलीजाह वग़ैरा

हर्फ़-ए-नुदबा

वह शब्द या अव्यय जो विलाप के लिए बोला जाय, जैसे--हाय, आह।।

हर्फ़-ए-निदा

वह शब्द जिससे सम्बोधन किया जाय

हुरूफ़-ए-फ़ुजाइय्या

(क़वाइद) वो अलफ़ाज़ जो जोश या जज़बे में बेसाख़ता ज़बान से निकल जाते हैं जैसे : हैं हैं, वाह, ओहो, हाय वग़ैरा . मुख़्तलिफ़ जज़बात-ओ-तास्सुरात के लिए अलग अलग हुरूफ़ मुस्तामल हैं

हुरुफ़-ए-फ़ौक़ानी

(क़वाइद) वो नुक़्तादार हुरूफ़ जिन के नुक़्ते उन के ऊओपर लुके जाते हैं, मसलन : त, स, ख, ज़, ज़, श, ज़, ज़, ग, फ, क

हर्फ़-ए-मक्सूर

(व्याकरण) वह शब्द जिसके नीचे ज़ेर (ज़ेर अर्थात ए या इ की मात्रा) हो

हर्फ़-ए-मख़्लूत

(क़वाइद) हर्फ़-ए- मख़लूत जो दूसरे से मिल कर अदा हो जैसे , किया की य और घर की  ह  किया की जगह का और घर की जगह गिर तक़ती में आएगा

हर्फ़-ए-मुतहर्रिक

(क़वाइद) वो हर्फ़ जिस पर तीनों हरकतों (ज़ेर, ज़बर, पेश) में से कोई हरकत हो, वक़्फ़

हुरूफ़-ए-मद्दा

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो दूसरे हुरूफ़ की आवाज़ों को लंबा करदें : ए,-ओ-, य, माक़बल मफ़तूह, मज़मूम, मकसूर, अली उल-तरतीब

हुरूफ़-ए-मुनव्वन

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जिन पर तनवीन हो, जैसे तक़रीबन की ब

हर्फ़-ए-मफ़्तूह

(क़वाइद) वो हर्फ़ जिस पर ज़ेर हो

हर्फ़-ए-मुफ़्रद

(व्याकरण) अलग तरह की आवाज़ की शक्ल जैसे; अलिफ़, बे, जीम, दाल आदि

हुरूफ़-ए-मुफ़ाजात

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जिन से किसी अमर या वाक़िया का इत्तिफ़ाक़न और ग़ैर मुतवक़्क़े तौर पर हिरणा ज़ाहिर हो मसलन : नागहां, अचानक, एक दम, इत्तिफ़ाक़न, यकबायक, यकलख़त, कि, जो वग़ैरा

हर्फ़-ए-मम्दूदा

(क़वाइद) वो हर्फ़ जिस पर अलामत-ए-मद लिखी हो

हर्फ़-ए-मुरक्कब

(व्याकरण) दो या दो से अधिक मिला कर लिखे हुए शब्द, जैसे जा, जब, घर

हर्फ़-ए-मल्फ़ूज़ी

(क़वाइद, जफ़र) वो हर्फ़ जिस के तलफ़्फ़ुज़ में अव़्वल आख़िर दो मुख़्तलिफ़ हुरूफ़ की आवाज़ निकले, जैसे : जैम, दाल

हुरूफ़-ए-मवाज़ि'

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो कसरत और ज़रफ़ीत के वास्ते मुस्तामल हैं जैसे : लाख (संगलाख़), ज़ार (लाला ज़ार), सार (कोहसार), दान (ओगालदान), ख़ाना (बग्घी ख़ाना), साला (धर्म साला) वग़ैरा

हर्फ़-ए-मुशद्दद

(व्याकरण) दो बार पढ़ा जाने वाला अक्षर, जो दो बार पढ़ा जाता है

हर्फ़-ए-मश्रूक़

(क़वाइद) वो हर्फ़ जो लिखा जाये लेकिन पढ़ाए अबोला ना जाये जैसे : ख़ाब, ख़्वाजा या ख़ाहिश में वाइ

हर्फ़-ए-मो'जमा

(क़वाइद) वो हर्फ़ जिसपर नुक़्ता या नुक़्ते हूँ, नुक़्तादार हर्फ़, हर्फ़ मोअज्जम

हर्फ़-ए-रब्त

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो एक लफ़्ज़ का इलाक़ा दूसरे लफ़्ज़ से ज़ाहिर करे (हुरूफ़ रबज़ में से वो हुरूफ़ जो इज़ाफ़त या फ़ाइल या मफ़ऊल के रब्त का काम देते हैं उन के इलावा सब हुरूफ़ जार कहलाते हैं)

हुरूफ़-ए-शम्सी

अरबी के वे अक्षर जिनमें ‘ल’ मिलकर वही अक्षर बन जाता है जिससे वह मिलता है, जैस-अश्शम्स (अल-शम्स) वे अक्षर हैं: ت، ث، د، ذ، ر، ز، س، ش، ص، ض، ط، ظ، ل، ن

हर्फ़-ए-साकिन

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस का तलफ़्फ़ुज़ बला हरकत किया जाये, वो हर्फ़ जिस पर हरकत की अलामत ज़बर, ज़बर, पेश या इस के आख़िर में हर्फ़-ए-इल्लत ना हो

हुरूफ़-ए-सिफ़त

(क़वाइद) वो अलफ़ाज़ जो दूसरे अलफ़ाज़ के साथ मिल कर वस्फ़ी मानी देते हैं, वस्फ़ी लाहके और साबिके, जैसे : ज़ी, पत्ती, उल्लू , वान, वित्ती वग़ैरा

हर्फ़-ए-हस्र

(क़वाइद) रुक : हर्फ़ तख़सीसी ही : ये हर्फ़ हसर बहुत से कलिमात का जुज़ु भी बिन कर आता है, मसला कभी, जभी ... जूंही, यूंही

हुरूफ़-ए-हिफ़ाज़त

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो बतौर लाहिक़ा मुस्तामल और मुहाफ़िज़त के मानी देते हैं, मसलन : दार, बाण, वान से पर्दादार, राज़दार, जानदार, फ़ीलबान, दरबान, पहलवान, बंदी वान वग़ैरा

हा-ए-मुख़्तफ़ी

वह 'हे' अर्थात 'ह' जो लिखी जाए मगर पढ़ी न जाए और केवल यह प्रकट करने के लिए आए कि अंतिम अक्षर हल् नहीं है, जैसे-‘परवानः, दीवानः, मस्तानः आदि, इज़ाफ़त के रूप में इस पर 'हम्ज़ा' आता है लेकिन उसका अपना कोई स्वर प्रकट नहीं होता जैसे: نامۂ غالب، فسانۂ دل आदि

हा-ए-मख़्लूत

वह ‘ह’ जो दूसरे शब्द में मिलाकर पढ़ी जाये, जैसे—‘कुम्हार' की 'हे'।

हाल

दशा; अवस्था; स्थिति; परिस्थिति

हालत-ए-इज़ाफ़त

(क़वाइद) किसी लफ़्ज़ की वो हालत जो इस लफ़्ज़ के ताल्लुक़ को दूसरे लफ़्ज़ से ज़ाहिर करती है, मुख़ाफ़ होने की हालत

हालत-ए-ख़बरी

(क़वाइद) जुमला असमय में जब कोई इस्म मुबतदा की ख़बर दे

हालत-ए-ज़र्फ़ी

(क़वाइद) वो हालत जब किसी इस्म का ताल्लुक़ ज़मान या मकान से पाया जाये

हालत-ए-तौरी

(क़वाइद) इस्म की वो हालत जिस से तौर, तरीक़ा, ज़रीया या सबब मालूम हो

हालत-ए-नस्बी

(क़वाइद) मफ़ऊली हालत

हालत-ए-निदाई

(व्याकरण) संज्ञा की वह हालत जब उसे पुकारा जाए

हालत-ए-फ़ा'इली

कर्त्ता शब्द, कर्त्ता कारक

हालत-ए-मुग़य्यरा

(क़वाइद) इस्म की वो हालत जब इस पर हुरूफ़ आमिला (मग़ी्यरा) में से किसी हर्फ़ के आने की वजह से इस में तग़य्युर वाक़्य हो

हालत-ए-मजरूरी

(क़वाइद) रुक : हालत जरी

हालत-ए-मफ़'ऊली

परोक्ष कारक

हालत-ए-रक़'ई

(व्याक्रण) सक्रीय स्थित, अरबी में इस हालत में इस्म के आख़िर ज़िम्मा होता है

हालिय्यत

(क़वाइद) ज़माना-ए-हाल में होने की कैफ़ीयत

हालिया

क़सीदे का एक प्रकार जिसमें काल-चक्र की निंदा होती है

हालिया-तमाम

(क़वाइद) वो हालिया जिस से फे़अल का ख़त्म होना पाया जाता है जैसे मिरा हुआ जानवर

हासिल-ए-मस्दर

(क़वाइद) वो इस्म, जो फे़अल की कैफ़ीयत या असर को ज़ाहिर करे और किसी मुसद्दिर से निकला हो

ही

(क़वाइद) '' ये '' और '' वो '' के साथ ही आए तो एक ''ह '' (हा) हज़फ़ हो जाती है लेकिन कभी शेअर में भी क़ायम रहती है

होना

इमकान

बोलिए

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