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तो क्या

कुछ फ़ायदा ना हुआ, बेसूद ही रहा

तो क्या हुआ

۔कुछ नहीं हुआ। बे सोॗद हुआ। कौन से होता है।

तो क्या होता

कुछ नुक़्सान ना होता, किसी सूरत में होता, क्या शैय होता

तू क्या है

तेरी कोई हैसियत नहीं

ज़िंदा है तो क्या मरी तो क्या

अस्तित्व बेकार है, जीवित रहना या न रहना सब समान है

ज़िंदा रही तो क्या मरी तो क्या

अस्तित्व बेकार है, जीवित रहना या न रहना सब समान है

सौ लगें तो क्या , हज़ार लगें तो क्या

सख़्त बेशरम और ढीट है

और नहीं तो क्या

यही बात तो है, निश्चित रूप से यही है, बेशक ऐसा ही है

निकली तो घूँगट क्या

جب پردے سے باہر ہوئی تو پھر گھونگٹ کا کیا نکالنا، بے شرم کے متعلق کہتے ہیں

आए तो क्या आए

थोड़े समय ठहर कर चलते बने, ऐसे आने से न आना अच्छा था

निकली तो घूँघट क्या

जब पर्दे से बाहर हुई तो फिर घूंघट का क्या निकालना

मारा तो क्या मारा

कमज़ोर को सताना या परेशान हाल को परेशान करना कोई बहादुरी की बात नहीं है वह तो आप मरा हुआ है ऐसे का मारना ही क्या है कुछ बड़ा काम नहीं है

संग सोई तो लाज क्या

साथ सोने के बाद कौन सी शरम रह जाती है

दिल ग़नी तो क्या कमी

जिसके हृदय में उदारता होती है, वह ख़र्च करने से नहीं हिचकिचाता

कीजे तो क्या कीजिए

(एहतरामन) कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें

ज़रा जिया तो क्या जिया

बे-लुत्फ़ है

नाचने निकले तो घूँगट क्या

जब सार्वजनिक स्थान पर किए जाने वाला काम चुना तो फिर लाज कैसी, ठान ही लिया तो फिर इस में लाज करना बेकार है

देखो तो मैं क्या करता हूँ

(सम्मानजनक शब्द) मेरा हुनर अब आप देखिये, मेरी चतुराई अब आप देखिये

नाचने निकली तो घूँगट क्या

जब मंज़रे आम पर किए जाने वाला काम इख़तियार किया तो फिर श्रम कैसी , इरादा ही कर लिया तो फिर इस में शर्माना अबस है

आए भी तो क्या आए

ज़रा सी देर रुक कर चले जाने के अवसर पर प्रयुक्त

दम है तो क्या ग़म है

जान है तो कोई चिंता नहीं, जान है तो कठिनाइयां दूर हो सकती हैं, जान है तो जहान है

ख़ुदा है तो क्या ग़म है

ख़ुदा भरोसा हो तो मुश्किल आसान हो जाती है

कीजिए तो क्या कीजिए

(एहतरामन) कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें

नाचने लगे तो घुँगट क्या ज़रूर

रुक : नाचने निकले तो घूंगट कैसा

कहो तो सही क्या हो

ख़ूब आदमी हो

दो दिल राज़ी तो क्या करे क़ाज़ी

फ़रीक़ैन की रजामंदी में हाकिम दख़ल नहीं दे सकता, दो शख़्स मुत्तफ़िक़ हूँ तो तीसरा नुक़्सान नहीं पहुंचा सकता

मर्द 'औरत राज़ी तो क्या करे क़ाज़ी

रुक : मियां बीवी राज़ी (अलख) जो ज़्यादा मुस्तामल है

ओढ़ ली लोई तो क्या करेगा कोई

जब निर्लज्जता अपना ली तो फिर किस का डर

दो दिल राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी

दो पक्षों की सहमति में हाकिम दख़्ल नहीं दे सकता, दो व्यक्ति सहमत हों तो तीसरा व्यक्ति नुक़सान नहीं पहुँचा सकता

उतर गई लोई, तो क्या करेगा कोई

निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती

मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी

जब आपस में एकता हो तो दूसरा किस प्रकार अच्छी एवं बुद्धि की बातों में हस्तक्षेप कर सकता है

'आशिक़ी न कीजिए तो क्या घास खोदिये

जिसने प्रेम नहीं किया वह घसियारे के समान है

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई

मनुष्य निर्लज्जता चुन ले या निर्लज्ज हो जाए तो किसी का डर नहीं रहता, जब इज़्ज़त उतर जाती है या अपमानित हो जाता है तो मनुष्य निडर हो जाता है, धृष्ट या निर्लज्ज आदमी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, लज्जाहीन व्यक्ति को किसी की परवाह नहीं होती

टुक जिया तो क्या जिया

ज़रासी देर आराम पाया तो क्या

जब नाचने निकली तो घूँगट क्या

जब सार्वजनिक स्थान पर किए जाने वाला काम चुना तो फिर लाज कैसी, ठान ही लिया तो फिर इस में लाज करना बेकार है

जब ओढ़ ली लोई तो क्या करेगा कोई

۔مثل۔ بے حیاج کو کسی کا خیال نہیں ہوتا۔

आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे

ये वहाँ बोलते हैं जहाँ ये कहना होता है कि जो वस्तु जिस काम के लिए बनाई गयी है वह काम उसी से निकलता है

जब दो दिल राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी

दो पक्षों की सहमति में हाकिम दख़्ल नहीं दे सकता, दो व्यक्ति सहमत हों तो तीसरा व्यक्ति नुक़सान नहीं पहुँचा सकता

मुँह की गई लोई, तो क्या करेगा कोई

मनुष्य निर्लज्जता चुन ले या निर्लज्ज हो जाए तो किसी का डर नहीं रहता, जब इज़्ज़त उतर जाती है या अपमानित हो जाता है तो मनुष्य निडर हो जाता है, धृष्ट या निर्लज्ज आदमी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, लज्जाहीन व्यक्ति को किसी की परवाह नहीं होती

मुँह पर डाली लोई, तो क्या करेगा कोई

यदि व्यक्ति ढीठ या बेशर्म हो जाए, तो उसे किसी की चिंता नहीं होती

हाथ लिया काँसा तो रोटियों का क्या सासाँ

جب گدائی اختیار کی تو مانگنے کی کیا شرم

मुँह की उतरी लोई, तो क्या करेगा कोई

निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती

मुँह की उतरी लोई, तो क्या करेगा कोई

कोई जानबूझ कर निर्लज्जता दिखाए तो कहते हैं

बारह में तीन गए तो रहे क्या ख़ाक

वर्षा तीन महीने होती है यदि इन तीन महीनों में न हो तो ज़मीनदार उजड़ अर्थात बर्बाद हो जाता है

तुझ को पराई क्या पड़ी तू अपनी तो नबेड़

दूसरों की चिंता अपने से निश्चिंत हो कर करनी चाहिए, अपनी गुज़र होती नहीं और का बोझ क्या उठाओगे

ओखल सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

मुँह की गई लोई, तो क्या करेगा कोई

निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती

जल गया तो क्या कर लेगा

बहुत अप्रसन्न हुआ तो क्या बिगाड़ सकता है

घोड़ा घास से आश्नाई करेगा तो खाएगा क्या

मुआमले की जगह मुरव्वत बरतने से नफ़ा नहीं होता, कोई शख़्स अगर अपने काम के नफ़ा की कुछ पर्वा ना करे तो गुज़ारा नामुमकिन है , मज़दूर मज़दूर ना ले तो भूका मर जाये , अपना मतलब कोई नहीं छोड़ता

घोड़ा घास से दोस्ती करे तो खाएगा क्या

a worker who does not demand his wages may starve

अपने दाम खोटे तो परखने वाले पर क्या दोष

अपनी चीज़ या बच्चे ख़राब हों या उनमें कोई कमी हो तो आपत्ति करने वाले पर क्या दोष दिया जाए

हाथ लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार कर ली तो पेट पालने की क्या फ़िक्र

मुर्ग़ा न होगा तो क्या अज़ान न होगी

कोई भी कार्य किसी विशेष व्यक्ति पर आश्रित या टिका, ठहरा या रुका हुआ नहीं है, रहती दुनिया तक काम होते ही रहेंगे

ओखल में सर दिया तो धमकों से क्या ख़तरा

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

घोड़ा घास से यारी करे तो खाएगा क्या

a worker who does not demand his wages may starve

तक़दीर के लिखे को तदबीर क्या करे, गर हाकिम ख़फ़ा हो तो वज़ीर क्या करे

भाग्य नहीं बदल सकता, जो भाग्य में लिखा है वह अवश्य होगा

'आशिक़ी अगर न कीजिए तो क्या घाँस खोदिए

जिसने प्रेम नहीं किया वह घसियारे के समान है

राम सुहाए करे तो कोई क्या कर सके

जिसे अल्लाह रखे उसे कौन चक्ख्াे

घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या

रुक : घोड़ा घास से यारी या आश्नाई करे तो भूका मरे

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोश

अपनी वस्तु या संतान ख़राब हो या अपने में कोई कमी हो तो आपत्ति जताने वाले को क्या आरोप दिया जाये

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में तिश्नगी के अर्थदेखिए

तिश्नगी

tishnagiiتِشْنَگی

स्रोत: फ़ारसी

वज़्न : 212

तिश्नगी के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

शे'र

English meaning of tishnagii

Noun, Feminine

تِشْنَگی کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

اسم، مؤنث

  • پیاس

    مثال اے صاحب خانہ میں غریب الوطن مسافر ہوں شدت تشنگی سے کلیجا منھ کو آتا ہے

  • چاہت، طلب، خواہش، تمنا، آرزو، شوق، اشتیاق

Urdu meaning of tishnagii

  • Roman
  • Urdu

  • pyaas
  • chaahat, talab, Khaahish, tamannaa, aarzuu, shauq, ishtiyaaq

तिश्नगी के पर्यायवाची शब्द

खोजे गए शब्द से संबंधित

तो क्या

कुछ फ़ायदा ना हुआ, बेसूद ही रहा

तो क्या हुआ

۔कुछ नहीं हुआ। बे सोॗद हुआ। कौन से होता है।

तो क्या होता

कुछ नुक़्सान ना होता, किसी सूरत में होता, क्या शैय होता

तू क्या है

तेरी कोई हैसियत नहीं

ज़िंदा है तो क्या मरी तो क्या

अस्तित्व बेकार है, जीवित रहना या न रहना सब समान है

ज़िंदा रही तो क्या मरी तो क्या

अस्तित्व बेकार है, जीवित रहना या न रहना सब समान है

सौ लगें तो क्या , हज़ार लगें तो क्या

सख़्त बेशरम और ढीट है

और नहीं तो क्या

यही बात तो है, निश्चित रूप से यही है, बेशक ऐसा ही है

निकली तो घूँगट क्या

جب پردے سے باہر ہوئی تو پھر گھونگٹ کا کیا نکالنا، بے شرم کے متعلق کہتے ہیں

आए तो क्या आए

थोड़े समय ठहर कर चलते बने, ऐसे आने से न आना अच्छा था

निकली तो घूँघट क्या

जब पर्दे से बाहर हुई तो फिर घूंघट का क्या निकालना

मारा तो क्या मारा

कमज़ोर को सताना या परेशान हाल को परेशान करना कोई बहादुरी की बात नहीं है वह तो आप मरा हुआ है ऐसे का मारना ही क्या है कुछ बड़ा काम नहीं है

संग सोई तो लाज क्या

साथ सोने के बाद कौन सी शरम रह जाती है

दिल ग़नी तो क्या कमी

जिसके हृदय में उदारता होती है, वह ख़र्च करने से नहीं हिचकिचाता

कीजे तो क्या कीजिए

(एहतरामन) कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें

ज़रा जिया तो क्या जिया

बे-लुत्फ़ है

नाचने निकले तो घूँगट क्या

जब सार्वजनिक स्थान पर किए जाने वाला काम चुना तो फिर लाज कैसी, ठान ही लिया तो फिर इस में लाज करना बेकार है

देखो तो मैं क्या करता हूँ

(सम्मानजनक शब्द) मेरा हुनर अब आप देखिये, मेरी चतुराई अब आप देखिये

नाचने निकली तो घूँगट क्या

जब मंज़रे आम पर किए जाने वाला काम इख़तियार किया तो फिर श्रम कैसी , इरादा ही कर लिया तो फिर इस में शर्माना अबस है

आए भी तो क्या आए

ज़रा सी देर रुक कर चले जाने के अवसर पर प्रयुक्त

दम है तो क्या ग़म है

जान है तो कोई चिंता नहीं, जान है तो कठिनाइयां दूर हो सकती हैं, जान है तो जहान है

ख़ुदा है तो क्या ग़म है

ख़ुदा भरोसा हो तो मुश्किल आसान हो जाती है

कीजिए तो क्या कीजिए

(एहतरामन) कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करें

नाचने लगे तो घुँगट क्या ज़रूर

रुक : नाचने निकले तो घूंगट कैसा

कहो तो सही क्या हो

ख़ूब आदमी हो

दो दिल राज़ी तो क्या करे क़ाज़ी

फ़रीक़ैन की रजामंदी में हाकिम दख़ल नहीं दे सकता, दो शख़्स मुत्तफ़िक़ हूँ तो तीसरा नुक़्सान नहीं पहुंचा सकता

मर्द 'औरत राज़ी तो क्या करे क़ाज़ी

रुक : मियां बीवी राज़ी (अलख) जो ज़्यादा मुस्तामल है

ओढ़ ली लोई तो क्या करेगा कोई

जब निर्लज्जता अपना ली तो फिर किस का डर

दो दिल राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी

दो पक्षों की सहमति में हाकिम दख़्ल नहीं दे सकता, दो व्यक्ति सहमत हों तो तीसरा व्यक्ति नुक़सान नहीं पहुँचा सकता

उतर गई लोई, तो क्या करेगा कोई

निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती

मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी

जब आपस में एकता हो तो दूसरा किस प्रकार अच्छी एवं बुद्धि की बातों में हस्तक्षेप कर सकता है

'आशिक़ी न कीजिए तो क्या घास खोदिये

जिसने प्रेम नहीं किया वह घसियारे के समान है

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई

मनुष्य निर्लज्जता चुन ले या निर्लज्ज हो जाए तो किसी का डर नहीं रहता, जब इज़्ज़त उतर जाती है या अपमानित हो जाता है तो मनुष्य निडर हो जाता है, धृष्ट या निर्लज्ज आदमी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, लज्जाहीन व्यक्ति को किसी की परवाह नहीं होती

टुक जिया तो क्या जिया

ज़रासी देर आराम पाया तो क्या

जब नाचने निकली तो घूँगट क्या

जब सार्वजनिक स्थान पर किए जाने वाला काम चुना तो फिर लाज कैसी, ठान ही लिया तो फिर इस में लाज करना बेकार है

जब ओढ़ ली लोई तो क्या करेगा कोई

۔مثل۔ بے حیاج کو کسی کا خیال نہیں ہوتا۔

आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे

ये वहाँ बोलते हैं जहाँ ये कहना होता है कि जो वस्तु जिस काम के लिए बनाई गयी है वह काम उसी से निकलता है

जब दो दिल राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी

दो पक्षों की सहमति में हाकिम दख़्ल नहीं दे सकता, दो व्यक्ति सहमत हों तो तीसरा व्यक्ति नुक़सान नहीं पहुँचा सकता

मुँह की गई लोई, तो क्या करेगा कोई

मनुष्य निर्लज्जता चुन ले या निर्लज्ज हो जाए तो किसी का डर नहीं रहता, जब इज़्ज़त उतर जाती है या अपमानित हो जाता है तो मनुष्य निडर हो जाता है, धृष्ट या निर्लज्ज आदमी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, लज्जाहीन व्यक्ति को किसी की परवाह नहीं होती

मुँह पर डाली लोई, तो क्या करेगा कोई

यदि व्यक्ति ढीठ या बेशर्म हो जाए, तो उसे किसी की चिंता नहीं होती

हाथ लिया काँसा तो रोटियों का क्या सासाँ

جب گدائی اختیار کی تو مانگنے کی کیا شرم

मुँह की उतरी लोई, तो क्या करेगा कोई

निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती

मुँह की उतरी लोई, तो क्या करेगा कोई

कोई जानबूझ कर निर्लज्जता दिखाए तो कहते हैं

बारह में तीन गए तो रहे क्या ख़ाक

वर्षा तीन महीने होती है यदि इन तीन महीनों में न हो तो ज़मीनदार उजड़ अर्थात बर्बाद हो जाता है

तुझ को पराई क्या पड़ी तू अपनी तो नबेड़

दूसरों की चिंता अपने से निश्चिंत हो कर करनी चाहिए, अपनी गुज़र होती नहीं और का बोझ क्या उठाओगे

ओखल सर दिया तो धमकों से क्या डर

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

मुँह की गई लोई, तो क्या करेगा कोई

निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती

जल गया तो क्या कर लेगा

बहुत अप्रसन्न हुआ तो क्या बिगाड़ सकता है

घोड़ा घास से आश्नाई करेगा तो खाएगा क्या

मुआमले की जगह मुरव्वत बरतने से नफ़ा नहीं होता, कोई शख़्स अगर अपने काम के नफ़ा की कुछ पर्वा ना करे तो गुज़ारा नामुमकिन है , मज़दूर मज़दूर ना ले तो भूका मर जाये , अपना मतलब कोई नहीं छोड़ता

घोड़ा घास से दोस्ती करे तो खाएगा क्या

a worker who does not demand his wages may starve

अपने दाम खोटे तो परखने वाले पर क्या दोष

अपनी चीज़ या बच्चे ख़राब हों या उनमें कोई कमी हो तो आपत्ति करने वाले पर क्या दोष दिया जाए

हाथ लिया काँसा तो पेट का क्या साँसा

जब बेग़ैरती इख़तियार कर ली तो पेट पालने की क्या फ़िक्र

मुर्ग़ा न होगा तो क्या अज़ान न होगी

कोई भी कार्य किसी विशेष व्यक्ति पर आश्रित या टिका, ठहरा या रुका हुआ नहीं है, रहती दुनिया तक काम होते ही रहेंगे

ओखल में सर दिया तो धमकों से क्या ख़तरा

जब ख़ुद को ख़तरे में डाल दिया फिर नताइज की क्या फ़िक्र, जब दानिस्ता ख़तरा मूल लिया तो पेश आने वाले मसाइब की क्या पर्वा ('दिया' और 'डर' की जगह इस मफ़हूम के दीगर अलफ़ाज़ भी मुस्तामल हैं)

घोड़ा घास से यारी करे तो खाएगा क्या

a worker who does not demand his wages may starve

तक़दीर के लिखे को तदबीर क्या करे, गर हाकिम ख़फ़ा हो तो वज़ीर क्या करे

भाग्य नहीं बदल सकता, जो भाग्य में लिखा है वह अवश्य होगा

'आशिक़ी अगर न कीजिए तो क्या घाँस खोदिए

जिसने प्रेम नहीं किया वह घसियारे के समान है

राम सुहाए करे तो कोई क्या कर सके

जिसे अल्लाह रखे उसे कौन चक्ख्াे

घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या

रुक : घोड़ा घास से यारी या आश्नाई करे तो भूका मरे

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोश

अपनी वस्तु या संतान ख़राब हो या अपने में कोई कमी हो तो आपत्ति जताने वाले को क्या आरोप दिया जाये

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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