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मैं

स्वयं, ख़ुद

मैं-मैं

ग़ुरूर, अहंकार, आत्म-विश्वास

मैं-कौन

मुझ को क्या वास्ता है, संबंध न प्रकट करने के लिए प्रयुक्त

मैं-पन

अपना स्व, अपना अभिमान

मैंढ

वह अनाज जो खेत में पड़ा रह जाए

मैं सदक़े

ख़वातीन इंतिहाई प्यार के वक़्त बोलती हैं

मैं-पना

رک : میں پن ۔

मैं-जानूँ

मैं ज़िम्मेदार हूँ, मेरा ज़िम्मा

मैं वारी

ख़वातीन इंतिहाई प्यार के वक़्त बोलती हैं

मैंढला

= मैनफल

मैं तेरे सद्क़े

(अविर) निहायत ख़ुशी या ख़ुशामद के मौके़ पर बोला जाता है, में तेरे बलिहारी, बिल जाऊं, क़ुर्बान हूँ, वारी जाऊं, सदक़े जाऊं

मैं क़ुरबान

मैं सदक़े, मैं वारी

मैं न जानूँ

यह काम बिगड़े या बने मुझे दोषी नहीं ठहराया जा सकता मैं उत्तर-दायित्व नहीं हूँ

मैं ने कहा

संबोधित करने के लिए, ध्यान आकर्षित करने के लिए बोलते हैं

मैं ने माना

मैंने मान लिया, मैं सहमतहुँ, मैंने स्वीकार कर लिया, (मैं की विशेषता नहीं है, हम के साथ भी प्रयुक्त है)

मैं-मैं करना

स्वयं प्रशंसा करना, अपनी ही चर्चा करना, अपने अहंकार और घमंड का दिखावा करना तथा बकरी की आवाज़ निकालना, बकरी के जैसे बोलना

मैं-मैं तू-तू

बहस, गाली-ग्लोच, झगड़ा

मैं वाह रे मैं

अपनी तारीफ़ करने वाले के बारे में कहते हैं, अपने मुँह मियाँ मिठू

मैं भी कहों

ऐसी जगह पर कहा जाता है जहां किसी स्थिति का कारण समझ में न आए, मैंने भी सोचा, मेरी समझ में न आया, मैं भी सोचता हूँ

मैं कौन हूँ

इसका मतलब मुझे क्या सरोकार, क्या संबंध, मुझे तुझसे कोई संबंध नहीं

मैं तो जानूँ

मेरे अनुमान से, मेरे अंदाज़े के मुताबिक़, मेरे ख़्याल से

मैं जब जानूँ

किसी बात को मानने या स्वीकार करने से पहले इसे एक शर्त के रूप में कहा जाता है

मैं न मानूँ

में विश्वास न करूं, मुझे बावर न आए, मैं स्वीकार न करूं, मैं सहमत न हूँ (ज़िद्दी या घमंडी व्यक्ति के लिए)

मैं कर चुका

(तंज़न) में तो नहीं करूंगा, में बाज़ आया

मैं मैं न जानों

काम बिगड़े या बने मुझ पर दोषी नहीं, मैं ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गया, मैं क्या जनूं?

मैं तेरा गुड्डा बनाऊँगा

मैं तुझे ख़ूब अपमानित करूँगा

मैं की गर्दन में छुरी

अहंकारी सदैव नष्ट होता हैं, घमंडी हमेशा तबाह होता है

मैं अपनी नाक कटवा दूँ

किसी बात को विश्वास दिलाने के लिए कहते हैं

मैं तो चराग़ सहरी हूँ

बहुत बुढ्ढा हूँ, मौत के क़रीब हूँ

मैं तेरी तस्बीह पढ़ता हूँ

मैं तुझे हर वक़्त याद करता हूँ

मैं अब कहीं का न रहा

मैं अब किसी की तरफ़ नहीं रहा, मैं अब किसी लायक़ नहीं रहा, अब मैं किसी को मुँह नहीं दिखा सकता

मैं भी हूँ पाँचवें सवारों में

अकारण ख़ुद को दूसरे बड़े लोगों में शामिल करना

मैं आप को अच्छी तरह समझूँगा

मैं आप से ख़ूब बदला लूँगा

मैं तो बिन दामों गुलाम हूँ

मैं तो आपका फ़्री का ग़ुलाम हूँ मैं तो आज्ञाकारी हूँ

मैं तुम्हारा मारा कभी न बोला

मैं ने तुम्हारे हिसाब से कभी कुछ नहीं किया

मैं ऐसे फेरों में नहीं आता

मैं ऐसे धोखों में नहीं आता, मैं धोखा नहीं खाता

मैं पाकिस्तानी हूँ

ii am i am pakistani

मैं उस के जूती भी नहीं मारता

मैं उसकी परवाह नहीं करता, मैं उसका ज़रा लिहाज़ नहीं करता

मैं और मेरा माँस तीसरे का मुँह भुलस

अधिक स्वार्थ के अवसर पर कहते हैं

मैं उस की सूरत से भी वाक़िफ़ नहीं

मैं ने उसे कभी देखा भी नहीं

मैं उस को जूती के बराबर समझता हूँ

मैं उसे बहुत अपमानित समझता हूँ

मैं न कहता था

में जो कहता था वही हुआ, मेरी बात सही थी

मैं कुछ नहीं कहता

में शिकायत नहीं करता तथा मैं कोई राय नहीं देता

मैं कहाँ तुम कहाँ

एक दूसरे के बीच एक बड़ा अंतर या दूरी है

मैं कहीं तुम कहीं

रुक : में कहाँ तुम कहाँ

मैं कौन तू कौन

तुझे मुझसे क्या संबंध, मेरा-तेरा कोई संबंध नहीं

मैं भली तू शाबाश

एक दूसरे की आलोचना

मैं थकी तू नाख़ूश

कोई कड़ी मेहनत करे और दूसरे को पसंद न हो

मैं हारा तुम जीते

बेहस में आजिज़ी ज़ाहिर करने को कहते हैं नीज़ तंज़न भी कहते हैं जब कोई फ़ुज़ूल बेहस करे

मैं उस की शक्ल का कुत्ता भी नहीं पालता

मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता, मुझे उससे अधिक नफ़रत है

मैं तो उन के रग-ओ-रेशे से वाक़िफ़ हूँ

मैं उनके हालात अच्छी तरह जानता हूँ

मैं के गले पर छुरी

घमंडी व्यक्ति सदैव तबाह होता है, घमंड का परिणाम बुरा होता है

मैं भी रानी तू भी रानी, खींचे कौन कूएँ का पानी

अकर्मण्य एवं काहिलों के प्रति कहते हैं

मैं भी रानी तू भी रानी, कौन डाले सर पर पानी

अकर्मण्य एवं काहिलों के प्रति कहते हैं

मैं ख़ूब समझता हूँ

۔میرے ذہن میں سب کچھ آتا ہے۔ ؎ میں کی خوصوصیت نہیں اور ضمائر کے ساتھ بھی مستعمل ہے۔

मैं भली कि पैंठा

कौन ज़्यादा बेवक़ूफ़ है

मैं तैरा गुडा बनाऊँगा

अर्थात मैं तुम्हें बहुत अपमानित करूंगा, मैं तुम्हें ध्वज पर चढ़ाऊंगा (यह कहावत हिन्दुओं की उस रीति-रिवाज से ली गई है जिसमें किसी बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाने वाले लोग गढ्ढा बनाकर नृत्य करते हैं)

मैं नहीं या वो नहीं

कमाल इग़सा का इज़हार यानी या तो आज में उन्हें को मार डालूंगा या ख़ुद ही मारा जाऊंगा

मैं कहाँ और वो कहाँ

रुक : में कहाँ तुम कहाँ

मैं नहीं या तुम नहीं

۔دیکھو۔ ۲ ج میں نہیں۔

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में मुझे के अर्थदेखिए

मुझे

mujheمُجھے

स्रोत: हिंदी

वज़्न : 12

मुझे के हिंदी अर्थ

सर्वनाम

  • एक पुरुषवाचक सर्वनाम जो उत्तम पुरुष, एकवचन और उभयलिग है तथा वक्ता या उसके नाम की ओर संकेत करता है । यह 'मैं' का वह रूप है जो उसे कर्म और संप्रदान कारक में प्राप्त होता है । इसमें लगी हुई एकार की मात्रा विभक्ति का चिह्न है, इसलिये इसके आगे कारक चिह्न नहीं लगता, मुझको

शे'र

English meaning of mujhe

Pronoun

مُجھے کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

ضمیر

  • مجھ کو، میری ذات کو، میرے تئیں

Urdu meaning of mujhe

  • Roman
  • Urdu

  • mujh ko, merii zaat ko, mere ta.ii.n

मुझे के अंत्यानुप्रास शब्द

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मैं

स्वयं, ख़ुद

मैं-मैं

ग़ुरूर, अहंकार, आत्म-विश्वास

मैं-कौन

मुझ को क्या वास्ता है, संबंध न प्रकट करने के लिए प्रयुक्त

मैं-पन

अपना स्व, अपना अभिमान

मैंढ

वह अनाज जो खेत में पड़ा रह जाए

मैं सदक़े

ख़वातीन इंतिहाई प्यार के वक़्त बोलती हैं

मैं-पना

رک : میں پن ۔

मैं-जानूँ

मैं ज़िम्मेदार हूँ, मेरा ज़िम्मा

मैं वारी

ख़वातीन इंतिहाई प्यार के वक़्त बोलती हैं

मैंढला

= मैनफल

मैं तेरे सद्क़े

(अविर) निहायत ख़ुशी या ख़ुशामद के मौके़ पर बोला जाता है, में तेरे बलिहारी, बिल जाऊं, क़ुर्बान हूँ, वारी जाऊं, सदक़े जाऊं

मैं क़ुरबान

मैं सदक़े, मैं वारी

मैं न जानूँ

यह काम बिगड़े या बने मुझे दोषी नहीं ठहराया जा सकता मैं उत्तर-दायित्व नहीं हूँ

मैं ने कहा

संबोधित करने के लिए, ध्यान आकर्षित करने के लिए बोलते हैं

मैं ने माना

मैंने मान लिया, मैं सहमतहुँ, मैंने स्वीकार कर लिया, (मैं की विशेषता नहीं है, हम के साथ भी प्रयुक्त है)

मैं-मैं करना

स्वयं प्रशंसा करना, अपनी ही चर्चा करना, अपने अहंकार और घमंड का दिखावा करना तथा बकरी की आवाज़ निकालना, बकरी के जैसे बोलना

मैं-मैं तू-तू

बहस, गाली-ग्लोच, झगड़ा

मैं वाह रे मैं

अपनी तारीफ़ करने वाले के बारे में कहते हैं, अपने मुँह मियाँ मिठू

मैं भी कहों

ऐसी जगह पर कहा जाता है जहां किसी स्थिति का कारण समझ में न आए, मैंने भी सोचा, मेरी समझ में न आया, मैं भी सोचता हूँ

मैं कौन हूँ

इसका मतलब मुझे क्या सरोकार, क्या संबंध, मुझे तुझसे कोई संबंध नहीं

मैं तो जानूँ

मेरे अनुमान से, मेरे अंदाज़े के मुताबिक़, मेरे ख़्याल से

मैं जब जानूँ

किसी बात को मानने या स्वीकार करने से पहले इसे एक शर्त के रूप में कहा जाता है

मैं न मानूँ

में विश्वास न करूं, मुझे बावर न आए, मैं स्वीकार न करूं, मैं सहमत न हूँ (ज़िद्दी या घमंडी व्यक्ति के लिए)

मैं कर चुका

(तंज़न) में तो नहीं करूंगा, में बाज़ आया

मैं मैं न जानों

काम बिगड़े या बने मुझ पर दोषी नहीं, मैं ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गया, मैं क्या जनूं?

मैं तेरा गुड्डा बनाऊँगा

मैं तुझे ख़ूब अपमानित करूँगा

मैं की गर्दन में छुरी

अहंकारी सदैव नष्ट होता हैं, घमंडी हमेशा तबाह होता है

मैं अपनी नाक कटवा दूँ

किसी बात को विश्वास दिलाने के लिए कहते हैं

मैं तो चराग़ सहरी हूँ

बहुत बुढ्ढा हूँ, मौत के क़रीब हूँ

मैं तेरी तस्बीह पढ़ता हूँ

मैं तुझे हर वक़्त याद करता हूँ

मैं अब कहीं का न रहा

मैं अब किसी की तरफ़ नहीं रहा, मैं अब किसी लायक़ नहीं रहा, अब मैं किसी को मुँह नहीं दिखा सकता

मैं भी हूँ पाँचवें सवारों में

अकारण ख़ुद को दूसरे बड़े लोगों में शामिल करना

मैं आप को अच्छी तरह समझूँगा

मैं आप से ख़ूब बदला लूँगा

मैं तो बिन दामों गुलाम हूँ

मैं तो आपका फ़्री का ग़ुलाम हूँ मैं तो आज्ञाकारी हूँ

मैं तुम्हारा मारा कभी न बोला

मैं ने तुम्हारे हिसाब से कभी कुछ नहीं किया

मैं ऐसे फेरों में नहीं आता

मैं ऐसे धोखों में नहीं आता, मैं धोखा नहीं खाता

मैं पाकिस्तानी हूँ

ii am i am pakistani

मैं उस के जूती भी नहीं मारता

मैं उसकी परवाह नहीं करता, मैं उसका ज़रा लिहाज़ नहीं करता

मैं और मेरा माँस तीसरे का मुँह भुलस

अधिक स्वार्थ के अवसर पर कहते हैं

मैं उस की सूरत से भी वाक़िफ़ नहीं

मैं ने उसे कभी देखा भी नहीं

मैं उस को जूती के बराबर समझता हूँ

मैं उसे बहुत अपमानित समझता हूँ

मैं न कहता था

में जो कहता था वही हुआ, मेरी बात सही थी

मैं कुछ नहीं कहता

में शिकायत नहीं करता तथा मैं कोई राय नहीं देता

मैं कहाँ तुम कहाँ

एक दूसरे के बीच एक बड़ा अंतर या दूरी है

मैं कहीं तुम कहीं

रुक : में कहाँ तुम कहाँ

मैं कौन तू कौन

तुझे मुझसे क्या संबंध, मेरा-तेरा कोई संबंध नहीं

मैं भली तू शाबाश

एक दूसरे की आलोचना

मैं थकी तू नाख़ूश

कोई कड़ी मेहनत करे और दूसरे को पसंद न हो

मैं हारा तुम जीते

बेहस में आजिज़ी ज़ाहिर करने को कहते हैं नीज़ तंज़न भी कहते हैं जब कोई फ़ुज़ूल बेहस करे

मैं उस की शक्ल का कुत्ता भी नहीं पालता

मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता, मुझे उससे अधिक नफ़रत है

मैं तो उन के रग-ओ-रेशे से वाक़िफ़ हूँ

मैं उनके हालात अच्छी तरह जानता हूँ

मैं के गले पर छुरी

घमंडी व्यक्ति सदैव तबाह होता है, घमंड का परिणाम बुरा होता है

मैं भी रानी तू भी रानी, खींचे कौन कूएँ का पानी

अकर्मण्य एवं काहिलों के प्रति कहते हैं

मैं भी रानी तू भी रानी, कौन डाले सर पर पानी

अकर्मण्य एवं काहिलों के प्रति कहते हैं

मैं ख़ूब समझता हूँ

۔میرے ذہن میں سب کچھ آتا ہے۔ ؎ میں کی خوصوصیت نہیں اور ضمائر کے ساتھ بھی مستعمل ہے۔

मैं भली कि पैंठा

कौन ज़्यादा बेवक़ूफ़ है

मैं तैरा गुडा बनाऊँगा

अर्थात मैं तुम्हें बहुत अपमानित करूंगा, मैं तुम्हें ध्वज पर चढ़ाऊंगा (यह कहावत हिन्दुओं की उस रीति-रिवाज से ली गई है जिसमें किसी बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाने वाले लोग गढ्ढा बनाकर नृत्य करते हैं)

मैं नहीं या वो नहीं

कमाल इग़सा का इज़हार यानी या तो आज में उन्हें को मार डालूंगा या ख़ुद ही मारा जाऊंगा

मैं कहाँ और वो कहाँ

रुक : में कहाँ तुम कहाँ

मैं नहीं या तुम नहीं

۔دیکھو۔ ۲ ج میں نہیں۔

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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