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मैं नहीं या वो नहीं

कमाल इग़सा का इज़हार यानी या तो आज में उन्हें को मार डालूंगा या ख़ुद ही मारा जाऊंगा

मैं नहीं या तुम नहीं

आज मैं नहीं या वह नहीं

आज में अपनी जान दे दूँगा या उसकी (तुम्हारी) जान ले लूँगा (अत्यधिक क्रोध एवं शत्रुता के स्थान पर

या हम नहीं या आप नहीं

रुक : या तुम नहीं या हम नहीं

या तुम नहीं या हम नहीं

निर्णायक लड़ाई होगी, या हम मरेंगे या तुम मरोगे, या मारेंगे या मर जाएँगे

सर नहीं या सरोही नहीं

हो गज़ अपना हक़ ज़ाए नहीं होने देंगे, तख़्त या तख़्ते, जान की बाज़ी लगाना

जिस में चमक नहीं वो हीरा नहीं , जिस में दमक नहीं वो 'औरत नहीं

बगै़र अच्छी खासियतों के कोई चीज़ अपने नाम से पुकारे जाने के काबिल नहीं

वो आँख नहीं

वो आँख नहीं

वो तीव्र नहीं, वो अंदाज़ नहीं , वो मुहब्बत नहीं, पहली सी मुहब्बत नहीं रही

वो आँखें नहीं रहीं

पहले जैसा संबंध और व्यवहार नहीं रहा, पहली सी मुहब्बत नहीं रही

मैं कुछ नहीं कहता

में शिकायत नहीं करता तथा मैं कोई राय नहीं देता

मैं ऐसे फेरों में नहीं आता

मैं ऐसे धोखों में नहीं आता, मैं धोखा नहीं खाता

मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता

वो गुड़ नहीं

۔देखो ये वो गड़ नहीं

वो तबी'अत नहीं रही

वो हौसला नहीं रहा, वो जोश और वलवला नहीं रहा, उमनग नहीं रही

मैं उस के जूती भी नहीं मारता

मैं उसकी परवाह नहीं करता, मैं उसका ज़रा लिहाज़ नहीं करता

मैं उस की सूरत से भी वाक़िफ़ नहीं

मैं ने उसे कभी देखा भी नहीं

जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं

शोर करने वाला कोई काम नहीं कर सकता, जो लोग डींगें मारते हैं वो करते कुछ नहीं

जो कहते हैं वो करते नहीं

अपना वादा पूरा नहीं करते, अपने वचन पर टिकते नहीं, अपनी ज़बान पर क़ायम नहीं रहते

आप को तो मैं नहीं पहचानता

किसी निःसंकोच मित्र या साथी के बहुत दिन में सूरत दिखाने के अवसर पर उलाहना देने के लिए प्रयुक्त

गाओ या बजाओ मियाँ मिनकते ही नहीं

मैं उस की शक्ल का कुत्ता भी नहीं पालता

मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता, मुझे उससे अधिक नफ़रत है

वो गुड़ नहीं जो च्यूँटियाँ खाएँ

तुम मुझे धोका नहीं दे सकते , उन की मालदारी से किसी को नफ़ा नहीं पहुंचता

वो गुड़ नहीं जो च्यूँटे खाएँ

तुम मुझे धोका नहीं दे सकते , उन की मालदारी से किसी को नफ़ा नहीं पहुंचता

जो बरसता है वो गरजता नहीं

जो लायक़ होते हैं वह डींग नहीं मारते

जो गरजता है वो बरसता नहीं

जो लायक़ होते हैं वह इतराते या डींग नहीं मारते

वो बात किसी को भी नसीब नहीं

ये क़दर-ओ-मंजिलत किसी को भी नसीब नहीं , ये ख़ूबी किसी में भी नहीं

जिस का नहीं चारा वो जाएगा सहारा

जो मुसीबत आ पड़े इसे बर्दाश्त करना पड़ता है

क़ाज़ी जी बहुत हराएँ मैं हारता ही नहीं

कोई व्यक्ति समझाने के अतिरिक्त न समझे और जो कुछ उसके दिमाग़ में जम जाये उसी पर सदृढ़ रहे

वो नहीं तो उस का भाई

एक नहीं तो दूसरा सही, काम केवल एक पर समाप्त नहीं, किसी ख़ास आदमी के न होने से काम रुकता नहीं

आ बैल मुझे भकोस नहीं तो मैं तुझे भकोसूँ

मुसीबत को आमंत्रित करना

आप दुनिया में हैं क्या मैं दुनिया में नहीं

मैं आप की चालें ख़ूब समझता हूँ मुझ से चालाकी न कीजिए

जिस के पास नहीं पैसा, वो भला मानस कैसा

रुपया से सारी प्रतिष्ठा है

वो कौन सी किश्मिश है जिस में तिनका नहीं

हर चीज़ में कोई न कोई त्रुटि होती है, कोई चीज़ त्रुटि से ख़ाली नहीं

वो कमली ही नहीं जिस में तिल बँधते थे

रुक : वो कम्बल ही गए अलख , अब वो चीज़ नहीं रही, वो ज़माना ना रहा

गाओ या बजाओ मीराँ हल्के ही नहीं होते

जिस शख़्स का ग़ुस्सा किसी तरह फ़िरौ ना हो या जिस पर कोई नसीहत असर ना करे, कितना ही कहो वो मानता ही नहीं, कुछ कहो इस पर असर ही नहीं होता

गाओ या बजाओ मियाँ हल्के ही नहीं होते

जिस शख़्स का ग़ुस्सा किसी तरह फ़िरौ ना हो या जिस पर कोई नसीहत असर ना करे, कितना ही कहो वो मानता ही नहीं, कुछ कहो इस पर असर ही नहीं होता

वो निगाह नहीं

अब वह दया नहीं, पहली सी भली दृष्टि नहीं

जिस के माँ बाप जीते हैं वो हरामी नहीं कहलाता

जिस के लिए साक्ष और सबूत उपस्थित हैं उसे कोई बे-ए'तिबार नहीं कह सकता

जो फल चखा नहीं वो सब से मीठा है

जो वस्तु मनुष्य को न मिले उस की बहुत इच्छा होती है

जिस के दिल में रहम नहीं वो क़साई है

निर्दयी आदमी क़साई के बराबर होता है

तमाम की सूइयाँ निकाले वो कोई नहीं, जो आँखों की निकाले वो सब कोई

जब बहुत सा काम तो एक शख़्स करले और मेहनत-ओ-तकलीफ़ उठाए और ज़रा सा काम कर लेने या हाथ बटाने से नाम दूसरे का होजाए तो बोलते हैं

जिस को गेहों की नहीं , वो चने ही की से राज़ी

जैसे अच्छी चीज़ नहीं मिल सकती वो बरी पर ही गुज़ारा कर लेता है

नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं डालता

तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है

छलनी चम्मा, घोड़ लगम्मा काएथ गुलम्मा या तीनों नहीं कोई कम्मा

छलनी का चमड़ा, घोड़े की लगाम और कायथ नौकर किसी काम के नहीं होते

ये वो फ़क़ीर नहीं जो खा कर दु'आ करें

ये बड़े नाशुक्रगुज़ार आदमी हैं किसी का एहसान नहीं मानते

बात का चूका आदमी या डाल का चूका बंदर फिर सँभलता नहीं

जो व्यक्ति अवसर पर चूक जाता है वह उसकी भरपाई नहीं कर पाता है और उसी प्रकार हानि उठाता है जिस तरह बंदर के हाथ से डाल छूट जाती है तो वह अवश्य गिर पड़ता है

नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं धरता

तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है

जो काम हिकमत से निकलता है वो हुकूमत से नहीं निकलता

बुद्धि से जो काम बनता है, वह बल से नहीं बन सकता

वो गुड़ नहीं जो मक्खी बैठे

तुम मुझे धोका नहीं दे सकते , उन की मालदारी से किसी को नफ़ा नहीं पहुंचता

दिन नीके बीते जाते, फिर उभर वो नहीं आते हैं

अच्छे दिन बीत कर फिर नहीं आते, अच्छा समय फिर नहीं आता

वो दिल नहीं रहा

۔ वो हौसला नहीं रहा। वो तबीयत नहीं रही

वो दिन नहीं रहे

۔वो वक़्त नहीं रहा। वो ज़माना नहीं रहा।

ये वो फ़क़ीर नहीं जो खा कर दु'आ दें

यह बड़े अकृतज्ञ लोग हैं किसी का उपकार नहीं मानते

वो कुछ माल नहीं

उसकी कुछ वास्तविक्ता नहीं

अब या कभी नहीं

सारी रामायण पढ़ गए लेकिन मा'लूम नहीं कि सीता 'औरत थी या मर्द

रुक : सारी ज़ुलेख़ा सुन ली और ना मालूम हुआ कि ज़ुलेख़ा औरत थी या मर्द

गधा मक्के से फिर आवे वो हाजी नहीं हो जाता

ये कहावत शेख़ सादी के इस शेअर का तर्जुमा है : ख़र ईसा अगर ये मक्का रौद जो बयाबद हनूज़ ख़र बाशद

हुआ हुआ या कुछ नहीं

जो होना चाहिए था वो नहीं हुआ

जिस पगड़ी में हो न चिल्ला पगड़ी नहीं वो फेंटी है

चिल्लद से अलबत्ता पगड़ी की ज़ेबाइश हो जाती है , हर चीज़ अपने औसाफ़ में पूरी होनी चाहिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में मैं नहीं या वो नहीं के अर्थदेखिए

मैं नहीं या वो नहीं

mai.n nahii.n yaa vo nahii.nمَیں نَہِیں یا وہ نَہِیں

वाक्य

मैं नहीं या वो नहीं के हिंदी अर्थ

  • कमाल इग़सा का इज़हार यानी या तो आज में उन्हें को मार डालूंगा या ख़ुद ही मारा जाऊंगा

مَیں نَہِیں یا وہ نَہِیں کے اردو معانی

  • کمال ِغصہ کا اظہار یعنی یا تو آج میں اُنھیں کو مار ڈالوں گا یا خود ہی مارا جاؤں گا

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