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दीवार के भी कान हैं

दीवार भी कान रखती है, दीवारों के भी कान होते हैं, यह एक कहावत हैं जिसका अर्थ होता है “सतर्क रहना”, कोई आप की बात सुन सकता है, जहां गोपनीयता रखनी जरूरी समझे वहां इस मुहावरे को प्रयोग में लाया जाता है

दीवारों के भी कान होते हैं

दर-ओ-दीवार कान रखते हैं

भेद को छुपाना चाहीए, किसी से भेद की बात नहीं कहनी चाहिए, राज़दारी के लिए एहतियात ज़रूरी है

भीत के भी कान होते हैं

अपना भेद किसी से नहीं कहना चाहिए वर्ना पूरी दुनिया में मशहूर हो जाएगा

हाकिम के आँख नहीं होती, कान होते हैं

हाकिम देखते नहीं ख़ुशामदियों की सुना करते हैं

वहाँ फ़रिश्तों के भी पर जलते हैं

इस जगह कोई नहीं जा सकता, उन का इतना रोब है कि वहां जाने की कोई जुर्रत नहीं करसकता

आप में भी कूट कूट के ख़ूबियाँ भरी हैं

बड़े दुष्ट हो, बड़े कमीने हो

देवता भी बासना के भूके हैं

हर जगह देने लेते से काम निकलता है

यहाँ हज़रत जिब्राईल के भी पर जलते हैं

यहां तक ही रसाई थी (मेराज के वाक़िया की तरफ़ इशारा है, हज़रत जबराईलऑ पैग़ंबर सिल्ली अल्लाह अलैहि वालही वसल्लम के हमराह थे एक मौक़ा पर जा के उन्हों ने कहा कि वो इस से आगे नहीं जा सकते पैग़ंबर सिल्ली अल्लाह अलैहि वालही वसल्लम आगे तन्हा रवाना हुए

हम भी हैं वो भी हैं

हमारा उन का मुक़ाबला है देखें कौन बढ़ता है

ये भी अपने वक़्त के हातिम ताई हैं

(व्यंग्यात्मक) बहुत दानी हैं

माया के भी पाँव होते हैं, आज मेरे कल तेरे

धन किसी के पास सदैव नहीं रहता, आज एक के पास है तो कल दूसरे के पास

बारह बरस के बा'द घूरे के भी दिन फिरते हैं

बारह बरस के बा'द घूरे के भी दिन फिरे हैं

तंगदस्ती या परेशांहाली हमेशा नहीं रहती

जहाँ चार बर्तन होते हैं खटकते भी हैं

जहाँ कुछ लोग एक जगह जमा होते हैं तो वहाँ वादविवाद भी हो ही जाती है, जहाँ भीड़ होती है वहाँ वादविवाद भी होती है

हम भी हैं पाँचवें सवारों में

शेखी ख़ोरे की निसबत कहते हैं जिस की कुछ हक़ीक़त ना हो और वो ख़ुद को ख़्वामख़्वाह बड़े लोगों में शामिल करे

कान दीवार से लगना

सुन गुन लेना, किसी की टोह में रहना

यहाँ सब कान पकड़ते हैं

यहाँ सब का सर झुका हुआ है, इस जगह किसी की उस्तादी नहीं चलती, यहाँ कोई दावा नहीं कर सकता, इस जगह सब मजबूर हैं

चार बासन होते हैं तो खड़कते भी हैं

रुक : जहां चार बर्तन अलख, जहां चार आदमी जमा होते हैं तकरार भी हो जाती है

निकले दाँत भी कहीं पैठे हैं

मिसल मशहूर है जो भेद खुल जाये वो फिर नहीं छुपता (रुक : निकले हुए दाँत अलख)

कहीं डूबे भी तिरे हैं

बिगड़ी हुई चीज़ नहीं सँवरती, बिगड़ी हुई चीज़ों का सँवरना कठिन है

कहीं हाथों की लकीरें भी मिटी हैं

कहीं हाथों की लकीरें भी मिटती हैं

कहीं तक़दीर भी ख़ता करती है, कहीं रिश्ते भी छूओटते हैं, अपनों का अपनों को छोड़ना मुम्किन नहीं, अपनों का छूओटना और रिश्ता टूटना दुशवार है

कहीं हाथों की लकीरें भी टलती हैं

कहीं तक़दीर भी ख़ता करती है, कहीं रिश्ते भी छूओटते हैं, अपनों का अपनों को छोड़ना मुम्किन नहीं, अपनों का छूओटना और रिश्ता टूटना दुशवार है

कान में तेल डाले बैठे हैं

कहीं थूक से भी सत्तू सनते हैं

ज़रूरी सामान के बगै़र काम नहीं हो सकता, छोटी पूंजी से बड़ा काम नहीं हो सकता

कहीं मुर्दे भी ज़िंदा होते हैं

हम भी ज़बाँ रखते हैं

हम भी बोल सकते हैं, हम भी मुँह में ज़बान रखते हैं

आप भी 'अजब ज़ात-ए-शरीफ़ हैं

रुक : आप बहुत दूर हैं

कहीं सूखे दरख़्त भी हरे होते हैं

असंभव बात कभी संभव नहीं होती, जो एक बार बर्बाद या नष्ट हो जाए फिर उसकी उन्नति नहीं होती, काम बिगड़ जाए तो ठीक नहीं होता, बिल्कुल बिगड़ी हुई हालत नहीं सुधरती

शेरों के शेर हैं

बहुत ज़्यादा बहादुर, बहुत जरी

ये भी कुछ हैं

इन की भी कोई हैसियत है, ये भी इज़्ज़त और मर्तबा रखते हैं

सौ बरस बा'द कूड़े घूरे के दिन भी बहोरते फिरते हैं

कोई शैय सदा एक हाल पर नहीं रहती, बुरे दिनों के बाद भले दिन भी आते हैं

कान के पर्दे फूटे जाते हैं

दुश्मनों के कान बहरे

अब से दूर

आप भी तुर्फ़ा मा'जून हैं

रुक : आप भी ऐसी ही बातों से अलख

जीव के कान सूँ सुनना

जुवे में बैल भी हारे हैं

जुवे में कुछ पास नहीं रहता सब कुछ हार जाते हैं

यहाँ तो हम भी हैरान हैं

इस जगह तो हमारी अक़ल भी काम नहीं करती, यहां समझ में कुछ, नहीं आता

दमड़ी की हाँडी लेते हैं तो उसे भी ठोंक बजा कर लेते हैं

कोई मामूली चीज़ भी लो तो अच्छी तरह जांच कर लो , हर काम सोच समझ कर करना चाहिए

कान के रस्ता से

ठंडे लोहे भी कहीं पिटने से ढीले पड़े हैं

इस्लाह बचपने में होनी चाहीए उम्र ज़्यादा हो जाये तो कुछ नहीं होसकता

कान उड़े जाते हैं

कान के ठेंठे निकालना

कान खोल कर सुनना , बहरेपन का ईलाज करना (उस शख़्स के लिए मुस्तामल जो कुछ का कुछ सुने या ना सुने) कान का मेल साफ़ कराना

ज़रूरत में गधे को भी साला करते हैं

फूल आए हैं तो फल भी आएगा

(फल आना = बच्चा जिऩ्ना, औलाद वाली होना) औरतें आपस में दूसरी बेऔलाद औरत की तसल्ली के लिए कहती हैं

फूल आए हैं तो फल भी आएगा

साईं के खेल हैं

कुदरत के करिश्मे हैं

तीन दिन गोरू में भी भारी हैं

ये तो कबीर भी कह गए हैं

ये तो मुस्लिमा बात है, ये बात तो और सब बुज़ुर्गों की तस्लीम की हुई है, उसे तो आरिफ़ बिल्लाह भी मानते हैं ये तो मानी हुई और तस्लीम की हुई बात है

कहाँ के हैं

कौन सी सरज़मीन और कौन से मुल॒क के रहने वाले हैं, किस मख़फ़ी शहर के हैं, ऐसे कौन हैं

किस के कान में फ़रिश्ते ने नहीं फूँका

मुराद: हर शख़्स को ख़ुशफ़हमी होती है

गेहूँ के साथ घुन भी पिसना

बुरे के साथ अच्छ्াा भी नुक़्सान उठाता है, ज़बरदस्त के साथ कमज़ोर भी मारा जाता है

कभी घूरे के दिन भी फिरते हैं

ज़माना बदलता रहता है, कभी ग़रीबों और कमज़ोरों का ज़माना भी बदल जाता है, उन के भी अच्छे दिन आ जाते हैं, ग़रीब और कमज़ोर हमेशा ग़रीब कमज़ोर नहीं रहते, बारह बरस में घूरे के भी दिन फिर जाते हैं

दूधैल गाए की दो लातें भी सहते हैं

दूधेल गाय की दौलातें अलख

किस के कान में फ़रिश्ते ने नहीं फूँका है

आप भी कितना बात को पहुँचते हैं

रुक : आप भी ऐसी ही बातों से अलख

दीवार के पीछे पत्थर फेंकना

छुप कर हमला करना

कान में तेल डाल के सो रहना

आप भी बड़े भले मानस हैं

रुक : आप बहुत दूर हैं

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में दीवार के भी कान हैं के अर्थदेखिए

दीवार के भी कान हैं

diivaar ke bhii kaan hai.nدِیوار کے بھی کان ہَیں

स्रोत: हिंदी

कहावत

दीवार के भी कान हैं के हिंदी अर्थ

 

  • दीवार भी कान रखती है, दीवारों के भी कान होते हैं, यह एक कहावत हैं जिसका अर्थ होता है “सतर्क रहना”, कोई आप की बात सुन सकता है, जहां गोपनीयता रखनी जरूरी समझे वहां इस मुहावरे को प्रयोग में लाया जाता है
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English meaning of diivaar ke bhii kaan hai.n

 

  • even walls have ears, it is used for saying that other people could be listening to what someone is saying, lower your voice and be careful what you say

دِیوار کے بھی کان ہَیں کے اردو معانی

 

  • دیوار بھی کان رکھتی ہے، دیواروں کے بھی کان ہوتے ہیں، یہ محاورہ اسوقت بولا جاتا ہے، جب کسی بات یا گفتگو کو بہت خاموشی سے کہنا اور پوشیدہ رکھنا ہوتا ہے، اس کا مطلب ہوتا ہے، ہوشیار رہکر گفتگو کرنا

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