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आठ बार नौ त्योहार
सुख-सुविधा और आराम का शौक़ या लगन ऐसा बढ़ा हुआ है कि युग और समय उसको अल्प व्यय नहीं करने देता
चमनिस्तान
ऐसा बाग़ जहाँ फूल ही फूल हों, ऐसी जगह जहाँ दूर तक फूल ही फूल और हरा भरा नज़र आए, वाटिका, चमन, बाग़
दादरा
संगीत में एक प्रकार का चलता गाना (पक्के या शास्त्रीय गानों से भिन्न), एक प्रकार का गान, एक ताल
मज़दूर
शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका कमाने वाला कोई व्यक्ति, जैसे: इमारत बनाने, कल-कारख़ानों में काम करने वाला, श्रमिक, कर्मकार, भृतक, मजूर
दूध-शरीक बहन
ऐसी बालिका जो किसी ऐसी स्त्री का दूध पीकर पली हो जिसका दूध पीकर और कोई बालिका या बालक भी पला हो, धाय संतान, दूधबहिन, दूधबहन
"तर्क" टैग से संबंधित शब्द
"तर्क" से संबंधित उर्दू शब्द, परिभाषाओं, विवरणों, व्याख्याओं और वर्गीकरणों की सूची
'अक्स-ए-मुस्तवी
(मंतिक़) क़ज़ीए के मौज़ू को महमूल और महमूल को मौज़ू इस तरह बनाना कि इन का सिदक़ और कैफ़ अला हाला बाक़ी रहे नीज़ वो नया क़ज़ीया जो इस तरह सूरत पज़ीर हुआ हो
इन्नी
(लफ़ज़न)जो तहक़ीक़ या यक़ीन के साथ साबित हो,(मंतिक़) वजूद मालूल के इल्लत पर इस्तिदलाल करना(बुरहान या इस्तिदलाल वग़ैरा के साथ मुस्तामल)
इफ़्तिराज़
(मंतिक़) ' मंतक़ी अमल जिस के के ज़रीये क़ज़ी-ए-जज़ईआ को कुल्लिया की सूरत में लाया जा सकता है' मसलन कहा जाये कि ' बाअज़ आदमी खाना पका सकते हैं ' फिर उस 'बाअज़' का नाम हम बावर्ची रख लें तो इस तरह कहा जाएगा कि कल बावर्ची खाना पका सकते हैं
इंफ़िसाली
(मंतिक़) वो क़ियास जिस में एक मुक़द्दमा क़ज़ी-ए-मुनफ़स्सिला हो और दूसरा मुक़द्दमा क़ज़ी-ए-हमलेह उसे इनफ़साली हुज्जत भी कहते हैं
इल्ज़ामी-जवाब
(तर्क शास्त्र) आपत्तिकर्ता की आपत्ति को दूर करने के स्थान पर उसके सामने वही आपत्ति प्रस्तुत करना जो उसने की है
'इल्म-ए-जदल
(मंतिक़) वो इलम जो इंसान में क़ुव्वत इस्तिदलाल का मलिका पैदा करता है और उसे ये सिखाता है कि हरीफ़ को किस तरह दलील से शिकस्त दी जाये, इल्म-ए-दलील
'उर्फ़िया-ए-'आम्मा
(मंतिक़) वो मोज्जहा है जिस में सबूत या सल्ब-ए-महमूल का मौज़ू के लिए जब तक मौज़ू किसी वस्फ़ के साथ मौसूफ़ है दाइमी हो
क़ज़िय्या
(तर्कशास्त्र) वह वाक्य जो सच और झूठ की शंका रखता हो, वह वाक्य जिससे सत्य एवं असत्य का बोध होता हो
क़ज़िया-ए-शर्तिया
(तर्कशास्त्र) एक ऐसा विषय जो दो विषयों से बना हो या जिसमें किसी बात के प्रमाण या खंडन का कोई नियम न हो
कमाल-ए-सानी
(तर्क) वो विशेषता जिससे कथित के व्यक्तित्व में किसी बड़प्पन, श्रेष्ठता और व्यक्तिगत निपुणता में बढ़ोतरी होता हो
क़ानून-ए-ता'लील
(मंतिक़) वजह बताने या दलील लाने से मुताल्लिक़ क़ानून, वो क़ानून जो किसी चीज़ की इल्लत साबित करे
क़ियास-ए-तम्सीली
(मंतिक़) वो क़ियास जिस में ममाइल सूरतों को मद्द-ए-नज़र रख कर नतीजा निकालना या हुक्म लगाना
क़ियास-ए-बुर्हानी
(मंतिक़) वो क़ियास जो मुक़द्दमात यक़ीनीह या बद यहिया से मुरक्कब हो, वो शक्ल (इस्तिदलाली) जिस के सुग़रा-ओ-कुबरा बदीही और यक़ीनी हूँ
ज़रूब
ज़रब (रुक) की जमा , (मंतिक़) वो हैयतें जो सुग़रा, कुबरा के अजाब-ए-सल्ब में इख़तिलाफ़ की वजह से पैदा हूँ
डबल-तराज़ू
(मंतिक़) दो पलड़े वाली तराज़ू में दो दफ़ा तौलने का अमल, किसी बात को जानने के लिए अवारिज़ ज़रूरी वग़ैर ज़रूरी का इम्तियाज़
तवाफ़ुक़
(हयातयात) मुवाफ़िक़त या मुताबिक़त का वो इंतिख़ाबी अमल जिस का इन्हिसार कश्मकश हयात पर होता है जिस में हर नसल में बैरूनी हालात का असर कमज़ोर को नीस्त वनाबूद करके गोया लाशऊरी तौर पर इन अफ़राद को मुंतख़ब कर लेता है जो किसी मुफ़ीद तग़य्युर की वजह से ज़िंदा रहने के ज़्यादा अहल होते हैं
तसव्वुर-ए-फ़क़त
(दर्शन शास्त्र) वह विज्ञान है जिसमें किसी प्रकार का आदेश न हो या जिसमें अनुपात में कोई विश्वास न हो
दलील
कोई ऐसी पूर्ण उक्ति या विचार जिससे किसी बात या मत का यथेष्ट समर्थन या खंडन होता हो। यक्ति, तर्क,वाद-विवाद, बहस, प्रमाण, सुबूत, अपने पक्ष में सोच-विचार कर रखा जाने वाला तर्क
नक़्ज़
(लॉजिक) किसी तर्क को पूरा होने के बाद अमान्य करना, दलील के जारी होने के बावजूद दावा साबित ना होने देना, दलील को तोड़ देना
नज़रिय्या-तनाक़ुज़
(तर्क शास्त्र) दो विवादों के स्वीकार्य एवं खंडन में अंतर यदि एक को सत्य माना जाए तो दूसरे को असत्य
मक़ूलात-ए-'अशर
(मंतिक़) मुम्किन-उल-वुजूद की दस किस़्में (१) जौहर, (२) कैफ़ (= कैफ़ीयत या हालत), (३) कम (= मिक़दार या तादाद), (४) इन (= महल या ज़र्फ़), (५) मता (= ज़माना), (६) इज़ाफ़त (= निसबत), (७) वज़ा (= जगह), (८) फे़अल (= तासीर), (९) इन्फ़िआल (= तास्सुर), (०१) मुलक (आख़िर के नौ मक़ूले आराज़ कहलाते हैं
मुग़ालता-इंताज
(मंतिक़) ऐसा नतीजा जो मुक़द्दमों से ना पैदा होता हो उस को तस्लीम कर लेना मुख़्तलिफ़ सूरतों में तजाहुल है यानी बगै़र मुक़द्दमा के नतीजा को तस्लीम कर लेना
मुत्लक़ा
(क़वाइद) उस्ता रे की एक क़िस्म जिस में मस्ता रुला' और मुस्तआर मुँह' किसी के भी मुनासिबात मज़कूर ना हूँ
मंतिक़ी-इंताज
(मंतिक़) ये अकली नतीजा कि जिस शैय के अंदर कोई ख़ास्सा होता होई इस शए के अंदर इस हास्य के ख़वास भी होते हैं
मंतिक़ी-इसबातियत
(मंतिक़) ये नज़रिया कि क़ज़ाया की बेहस महिज़ लफ़्ज़ी बेहस है और मंतिक़ दरअसल लिसानियाती तहक़ीक़ की एक शाख़ है (Logical Piositivism)
मनक़ूल
उल्लेखित, उद्धृत, हवाला देना, उद्धरण करना, प्रतिलिपित, नक़ल या रिवायत किया गया, एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया, नक़ल की हुई इबारत या तस्वीर
मन्क़ूल-ए-'उर्फ़ी
(मंतिक़) जिस का नक़ल करने वाला या रावी उर्फ़ आम (अवाम) हो (जैसे लफ़्ज़ दाया कि ज़मीन पर तमाम चलने वालों के लिए वज़ा हुआ और अब सिर्फ़ चौपाइयों के लिए मुस्तामल है)
मन्क़ूल-ए-शर'ई
(मंतिक़) शिरा का रिवायत करदा, शिरा में बयान क्या हुआ (जैसे अलसलोৃ, पहले दुआ के मानी में था और अब अरकान मख़सोसा में मुस्तामल है)
मुमकिना-ए-'आम्मा
(मंतिक़) वो क़ज़ीया जिस में जानिब मुख़ालिफ़ की ज़रूरत के सल्ब का हुक्म बह इमकान आम किया जाये
मुमकिना-ए-ख़ास्सा
(तर्कशास्त्र) वह क़ज़ीया जिस में ईजाब-ओ-सल्ब और वजूद-ओ-अदम दोनों जानिब ज़रूरत मुतल्लक़ा का इर्तिफ़ा-ओ-सल्ब हो
मुहमला
(मंतिक़) वो क़ज़ीया जिस में कलीत-ओ-जज़ईत की सर अहित ना हो , जैसे : इंसान नुक़्सान में है (कल या बाअज़ इंसान नहीं)
महसूरा
(मंतिक़) वो जुमला जिस का मौज़ू कली और हुक्म अफ़राद मौज़ू पर हो और इस की मिक़दार भी बयान की गई हो
मौजूद-ए-'इल्मी
(तर्क) जो स्वयं उपस्थित न हो, काल्पनिक, अनुभव किया जाने वाला,जो इस प्रकार मौजूद न हो कि उसकी तरफ़ इशारा कर सकें (जैसे रंग के दूसरी चीज़ में मिल कर पाया जाता है)
मौजूद-ज़ेहनी
(तर्कशास्त्र) वह चीज़ जो चराचर जगत अस्तित्व में न हो मगर पाई जा सके, जिसका अस्तित्व मस्तिष्क और विचार में हो
रस्म-ए-नाक़िस
(मंतिक़) वो मारुफ है जो जिन्स-ए-बईद और ख़ास्सा से मुरक्कब हो जैसे इंसान की तारीफ़ जिस्म ज़ाहिक से, महिज़ ख़ास्सा या अर्ज़-ए-आम से जो तारीफ़ होती है इस को भी रस्म कहते हैं
लुज़ूमिय्या
(मंतिक़) वो क़ज़ी-ए-शर्तिया जिस में मुक़द्दम-ओ-ताली (मौज़ू-ओ-महमूल) के बाहम इलाक़े की बना पर कोई हुक्म लगाया जाये
लिंग
पुरुष की जनन-शक्ति के प्रतीक के रूप में लिंग की पूजा करने की प्रथा जो अनेक प्राचीन जातियों में प्रचलित थी और अब भी हिन्दुओं में जो शिव-लिंग की पूजा के रूप में प्रचलित है
वुजूद-ए-ख़ारिजी
(मंतिक़) शैय जो ख़ारिज में वाक़ई मौजूद हो, वजूद जिस का ख़ारिज में इदराक हो सके , ख़ारिजी दुनिया , जिस्मानी वजूद, ज़ाहिरी दुनिया
वस्फ़ी
विशेषता का, ख़ूबी का, प्रशंसात्मक, विशेषणात्मक अथवा गुण के अनुसार, गुण संबंधी, जो संबंध संबंधी न हो
वहदानी-शय
(मंतिक़) ऐसी चीज़ जो अपनी नौईयत में यकता हो, वहदानी ज़ात, अकेला वजूद , चीज़ जिस के अजज़ा ना हूँ
वहदी-इज़ाफ़त
(मंतिक़) वो इज़ाफ़त जिस के हीता और अक्स हीता में एक से ज़ाइद हदूद दाख़िल ना हूँ, ग़ैर तफ़ाअली इज़ाफ़त
शर्तिय्यात
(मंतिक़) वो क़ज़ीए जिन में अक्षय के होने की शर्त पर दूसरी शैय के होने या ना होने का हुक्म लगाया जाये या जन में मुनाफ़ात या अदम मुनाफ़ात का हुक्म हो
सूरत-ए-नौ'इय्या
(तर्कशास्त्र) वह ताक़त जिसका संबंध मिली हुई चीज़ों से हो ( जैसे अफ़ीम में ठंडक पैदा करने की ताक़त)
सलमा
एक प्रकार का सुनहला या रूपहला चमकीला और चपटा तार जो टोपी, साड़ी आदि में बेलबूटे बनाने के काम में आता है, सोने-चांदी का सुनहला-रुपहला तार, बादला, कंदला
हद-ए-औसत
(मंतिक़) इशकाल में सुग़रा-ओ-कुबरा का वो मुश्तर्क जुज़ु जिस पर क़ियास या नतीजे का दारू मदार होता है
हद-ए-वस्फ़ी
(तर्क) वह शब्द या संज्ञा जो किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता को इंगित करता है; संज्ञा विशेषण
हद्द-ए-असग़र
(मंतिक़) हर क़ियास में तीन हदें होती हैं दो वो जो नतीजे का मौज़ू और महमूल होती हैं और एक वो जिस से इन दोनों कोरबत देते हैं मौज़ू और महमूल के तरीक़ से हर एक मुक़द्दमे में मौज़ू नतीजा को ह्-ए-असग़र कहते हैं
हद्द-ए-ताम
(तर्कशास्त्र) हद-ए-ताम वो मुअर्रिफ़ है जो जिन्स-ए-क़रीब और फसल-ए-क़रीब से मुरक्कब हो जैसे इंसान की तारीफ़ हैवान और नातिक़ से
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क्या आप वास्तव में इन प्रविष्टियों को हटा रहे हैं? इन्हें पुन: पूर्ववत् करना संभव नहीं होगा