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te-hee के लिए उर्दू शब्द
te-hee के देवनागरी में उर्दू अर्थ
- का मुतबादिल-
te-hee کے اردو معانی
- کا متبادل-.
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तू हो और दुनिया हो
(आशीर्वाद के रूप में) तू हमेशा ज़िंदा रहे, दुनिया का मज़ा तेरे साथ रहे, तू दुनिया में फूले फले
तू ही तू है
जो कुछ है तू ही है, तेरे सिवा और कोई नहीं, ٍहर जगह तू ही है (ईश्वर के संबंध में बोला जाता है)
शाबश मुल्ला तेरे ता'वीज़ को बाँधते ही लड़का फुदका
तावीज़ इतना पर तासीर है कि बांधते ही काम होगया , तंज़न भी मुसतामल है यानी बात नहीं बनी
हो तो हो
(कलिमा तख़सीस) किसी काम का आख़रा चारा-ए-कार बताने के लिए मसतमाल, और कोई सूरत नहीं, इस तरह ना हो तो फिर ना होगा, शायद इमकान कि हो
ख़ुदा देना है तो छप्पर फाड़ कर देता है
ख़ुदा किसी को नवाज़ना चाहे तो इस के ज़राए और सामान पैदा कर देता है, ख़ुदा की देन अस्बाब ज़ाहिरी पर मौक़ूफ़ नहीं, ख़ुदा का फ़ज़ल बेहिसाब है
बड़े आदमी ने दाल खाई तो कहा सादा-मिज़ाज है ग़रीब ने दाल खाई तो कहा कंगाल है
ایک ہی کام میں ایک کے لیے بدنامی دوسرے کے لیے نیکنامی ہوتی ہے
जब ख़ुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है
ख़ुदा बे वसीला रिज़्क पहुंचाता है,ऐसी नेअमत मिल जाना जिस के आसार वसाइल ज़ाहिर ना हूँ
घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खी उड़ाएगा
۔مثل ہر شخص اپنی ترقی سے خود ہی فائدہ اُٹھاتا ہے۔ ہر ایک اپنا ہی بھلا چاہتاہے۔
घोड़ी की अगर दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ावेगा
हराएक को अपना मतलब पहले मल्हूज़ होता है, हर शख़्स अपनी तरक़्क़ी से ख़ुद फ़ायदा उठाता है
शेर मारता है तो सौ गीदड़ खाते हैं
बलंद हिम्मत और आली ज़र्फ़ लोग अपनी कमाई का बेशतर हिस्सा ज़रूरतमंदों पर सिर्फ़ करदेते हैं
सदा मियाँ घोड़े ही तो ख़रीदा करते हैं
जब कोई शख़्स अपनी बिसात से बाहर क़दम रखता है और ताली की लेता है तो अज़राह-ए-तंज़ कहते हैं शेखी ख़ोरे पर तंज़ है
गोश्त खाए गोश्त बढ़े , साग खाए ओझड़ी तो बल कहाँ से हो
गोश्त खाने से आदमी उमूमन मोटा ताज़ा होता है, साग बात या सब्ज़ी खाने से पेट बढ़ता है ताक़त नहीं आती
हड़वाड़ होंगे तो मास बुहतेरा हो रहेगा
ज़िंदा रहे तो मोटे हो जाऐंगे , बुनियाद होगी तो इमारत भी बिन जाएगी
शेर मारता है तो सौ लोमड़ियाँ खाती हैं
बलंद हिम्मत और आली ज़र्फ़ लोग अपनी कमाई का बेशतर हिस्सा ज़रूरतमंदों पर सिर्फ़ करदेते हैं
दूल्हा तो वो पर दो-शाला अपना
ज़ाहिरी बनाओ सजाओ की हक़ीक़त खोलना होता ये मिसल बोलते हैं, मतलब ये होता है कि इस की सारी सज धज हमारे ही तुफ़ैल से है फिर भी हमें से एकड़ता है
सदा मियाँ घोड़े ही तो रखते थे
जब कोई व्यक्ति अपनी बिसात से बाहर क़दम रखता है और अपनी बड़ाई बयान करता है तो व्यंगात्मक तौर पर कहते हैं
कौड़ी न हो तो कौड़ी के फिर तीन-तीन
निर्धन आदमी को कोई नहीं पूछता, अपने पास पैसा न हो तो अपना कोई मोल या महत्त्व नहीं
बजा नक़्क़ारा कूच का उखड़न लागी मीख़, चलने हारे तो चल बसे खड़ा हुआ तू देख
दुनिया की नश्वरता दर्शाने के लिये कहते हैं
दो लड़ते हैं तो एक गिरता है
जब दो आदमीयों में लड़ाई होती है और एक हारता है तो हारने वाले की तसल्ली के लिए बोलते हैं
यहाँ तो गोया उनकी नाल गड़ी हुई है
किसी जगह से किसी को बहुत लगाव हो और बार-बार आए तो कहते हैं जिस जगह बच्चे की नाल दफ़्नाई जाती है उस जगह से एक लगाव होता है
रोज़ा रखे न नमाज़ पढ़े सहरी भी न खाए तो महज़ काफ़िर हो जाए
ये कहावत उन लोगों की है जो इंद्रियों के वश में रहते हैं, रोज़ा नमाज़ न सही मगर सहरी ज़रूर खानी चाहिए
मोर नाचता है जब अपने पाँव देखता है तो रो देता है
सारी उमनगीं, हौसले, ख़ुशीयां, लज़्ज़तें, नेअमतें, औसाफ़ ज़रा से ऐब के बाइस तकलीफ़-ओ-तकद्दुर बिन जाते हैं, ऐब ज़रा सा भी ुबरा
क़तरा का चूका घड़े ढलकाए तो क्या होता है
काम का वक़्त निकल जाने के बाद लाख उपाय किया जाए मगर कोई फ़ायद नहीं होता
गुरू जो कि था वो तो गुड़ हो गया वले उस का चेला शकर हो गया
जब शागिर्द अऔसताद से बढ़ जाये उस वक़्त बोला करते हैं
जब कमर में ज़ोर होता है तो मदार साहब भी देते हैं
बेरों फ़क़ीर वन की दुआ का तब ही असर होता है जब अपने आप भी कोशिश की जाये
कर्दनी ख़्वेश आमदनी पेश, न की हो तो कर देख
जैसी करनी वैसी भरनी, बुरे काम का परिणाम बुरा होता है, न देखा हो तो करके देख लो
वो तो हव्वा है
अत्यधिक डरावना एवं भयानक है जिससे भय लगता है, अत्यधिक बूरे स्भाव का है काट खाने को दौड़ता है
सदा मियाँ घोड़े ही तो ख़रीदा किए
जब कोई शख़्स अपनी बिसात से बाहर क़दम रखता है और ताली की लेता है तो अज़राह-ए-तंज़ कहते हैं शेखी ख़ोरे पर तंज़ है
गोश्त खाए गोश्त बढ़े , घी खाए बल होए , साग खाए ओझ बढ़े तो बल कहाँ से होए
गोश्त खाने से आदमी मोटा होता है, घी खाने से ताक़त आती है, सबज़ीयां खाने से पेट बढ़ता है मगर ताक़त नहीं अति
जब बनिया उठाना चाहे तो झाड़ू देता है
किनायतन-ओ-इशारतन ऐसी अलामतें ज़ाहिर करना जिस से नाख़ुशी हो, किसी को दूर करने के लिए ऐसे काम करना जो बज़ाहिर कुछ ना हूँ लेकिन अस्लन किसी से पीछा छुड़ाना मक़सूद हो
अल्लाह को देखा नहीं पर 'अक़्ल से तो पहचाना है
आसार-ओ-क़राइन से किसी अमर वग़ैरा का अंदाज़ा लगाने के मौक़ा पर मुस्तामल
संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .
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