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क़ज़ा के तीर को ढाल की हाजत नहीं

मौत आती हो तो मनुष्य किसी भी तरह से बच नहीं सकता

सिपाही को ढाल धरने की जगह चाहिए

किसी की किसी को ख़बर नहीं

किसी गिरोह या जमात पर बेहोशी और ग़फ़लत का आलम तारी होने पर बोलते हैं

किसी को किसी की ख़बर नहीं

۔बेहोशी और ग़फ़लत का आलम किसी जमात में होने की जगह।

संदल की लकड़ी को नहीं जलाते

हुनरमंद को तकलीफ़ नहीं देते , अच्छी चीज़ को ज़ाए नहीं करते

दूसरों पर ढाल डाल के कहना

इशारों किनाइयों में कहना

हाज़िर को हुज्जत नहीं ग़ैर की तलाश नहीं

जो मौजूद है लीजिए या जो मिले उस को ग़नीमत समझना चाहिए

क़िस्मत के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता

भाग्य का लिखा पूरा हो कर रहता है, भाग्य कोई नहीं बदल सकता

जिस को गेहों की नहीं , वो चने ही की से राज़ी

जैसे अच्छी चीज़ नहीं मिल सकती वो बरी पर ही गुज़ारा कर लेता है

जिस के पैसा नहीं है पास , उस को मेला लगे उदास

जिस शख़्स के पास पैसा नहीं उसे किसी चीज़ का लुतफ़ नहीं आता

ग़ुस्ल की हाजत होना

नापाक हो जाना, नहाने की हाजत होना, एहतिलाम हो जाना

गेंडे की ढाल और बिजली की तलवार

दोनों बहुत अच्छी होती हैं, सर्वोत्तम होती हैं

क़ज़ा-ए-हाजत

शौचकर्म, पाखाना, आकस्मिक आवश्यकता

तरकश के तीर हैं

मूल वंश विकृत रस्म, प्रथा एवं स्वभाव आदि में एक जैसे हैं, सब एक जैसे हैं, एक वंश के हैं

एक तरकश के तीर हैं

सब एक से हैं, एक घराने एवं परिवार के हैं

जिस के वास्ते रोए उस की आँखों में आँसू भी नहीं

जिस के साथ किसी तकलीफ़ में हमदर्दी की उसे पर्वा भी नहीं

नर की दो जगह तौक़ीर नहीं भैंस के और कस्बी के

दोनों जगह माद्दा से काम चलता है, भैंस का नर ऐसा काम नहीं देता जैसे बैल इस लिए उसे उमूमन मार डालते हैं

ऊँट जब तक पहाड़ के नीचे न आए किसी को अपने से ऊँचा नहीं समझता

नैनों के तीर चलाना

घायल करने वाली निगाहों से देखना, माशूक़ का अपने आशिक़ को बेक़रार करना

रंडी की गाली और भूत के पत्थर की चोट नहीं लगती

इन दोनों से कोई नुक़्सान नहीं होता है, रंडी की गइली और भूओत का पत्थर बेअसर होता है

कोई तक़दीर के लिखे को नहीं मिटा सकता

किसी को ये क़ुदरत नहीं कि नविश्ता-ए-तक़दीर को बदल दे, क़िस्मत को कोई नहीं बदल सकता

मुक़द्दर के रू-ब-रू किसी की नहीं चलती

तक़दीर के बरख़िलाफ़ कुछ नहीं हो सकता

कौड़ी पास नहीं और चले बाग़ की सैर को

निर्धनता पर धनवानों वली आदत

रहने को झोंपड़े नहीं , ख़्वाब देखे महलों के

झोंपड़ा मयस्सर आता नहीं दिल में ख़्याल महलों का उभरा हुआ है, मुफ़लिसी में उमनग-ए-तो एंग्री है

मुक़द्दर के आगे किसी की नहीं चलती

तक़दीर के बरख़िलाफ़ कुछ नहीं हो सकता

वहम की दारू लुक़्मान के पास नहीं

वहम की दवा लुक़्मान जैसा हकीम भी नहीं कर सकता, वहम का कुछ ईलाज नहीं

तर्कश में दो तीर नहीं, ख़ान बहादुर आते हैं

किस हल नाम को नहीं बड़े बड़े पहलवानों से लड़ने की डींग हांग रहे हैं, ज़रा सी बात पर अपने आप को बड़ा समझ बैठे हैं

असील घोड़े को चाबुक की ज़रूरत नहीं

सूँघने को नहीं

बिलकुल नहीं, नाम को भी नहीं , किसी चीज़ के बिलकुल ख़त्म हो जाने के मौक़ा पर बोलते हैं

पेट को टिकिया नहीं , सोने को खटिया नहीं

रुक : पेट को टुकड़ा ना तन को चीथड़ा

नज़र के तीर

जब तीर छूट गया तो फिर कमान में नहीं आ सकता

जब कोई बात मुंह से निकल जाये तो वापिस आसकती

तीर की सूरत

साँच को आँच नहीं

नहीं नहीं कर के

तीर-ए-क़ज़ा

कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात फिर नहीं आती

कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात फिर नहीं आते

ढाल-ढाल जाना

आहिस्ता आहिस्ता जाना, सपज पचज चलना

सींगा-ढाल

सेंका-ढाल

आँसू ढाल

वो भौंरी जो घोड़े की आँख के कौए (रोओं का मंडलाकार छोटा घेरा) के निकट हो और जब कान झुकाया जाये तो उसके नीचे न आए

कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात फिर नहीं आती

बहुत सोचने समझने के बाद बात कहनी चाहिए, ऐसे महल पर बोलते हैं जब बे एहतियाती से कोई बात बोलता हो और वो ग़लत हो

भूका को दे नहीं सकते , रजे को देख नहीं सकते

हासिद की निसबत बोलते हैं

मियाँ घर नहीं, बीवी को डर नहीं

ख़ावंद घर मौजूद ना हो और बीवी खुल खेले तो कहा जाता है

हाजत-मंदी

इच्छा, चाह, तलब निर्धनता, मोहताजी।।

सोने के कटोरे को भीक की क्या कमी

सोने की कटोरी अलख

ढाल-सा

रूठे को मनाए नहीं , फटे को सिलाए नहीं तो काम कैसे चले

रूओठे को मनाना और फटे को सुलाना चाहीए वर्ना दुनिया में गुज़ारा नहीं

दाना को दान नहीं, भिकारी को भीक नहीं

बख़ील की निसबत कहते हैं

तर्कश में दो तीर नहीं शर्मा शर्मी लड़ते हैं

आशा तो रही नहीं परंतु प्रयास हो रहा है

आँख में लगाने को नहीं

(ये चीज़) इतनी भी नहीं कि आंख में सुरम्य की हरा लगाई जा सके, ज़र्रा भर नहीं

ढाल बाँधूँ, तलवार बाँधूँ, कस के बाँधूँ फेटा, बीच बाज़ार में डाका मारूँ तो बाप का बेटा

जो बात करूंगा खुल कर और ईमानदारी से करूंगा

जिस की आँख नहीं उस की साख नहीं

जिस को तजुर्बा और हया नहीं उस की बात का एतबार नहीं

'इंद-अल-हाजत

ज़रूरत के वक़्त, ज़रूरत पड़ने पर

सोहे की रीत नहीं की तौफ़ीक़ नहीं

बहुत ग़रीब है जब कोई शख़्स किसी तक़रीब के पूओरा करने की हैसियत ना रखता हो इस के मुताल्लिक़ कहते हैं. वज़ा का लिहाज़ मगर हैसियत के मुताबिक़ काम करने की इस्तिताअत नहीं

तपिश-ढाल

वह झुका हुआ हिस्सा जिससे गर्मी की रोक की जा सके

हाजत-ए-तफ़्तीश

खोज की आवश्यकता

क़ब्र में रख के ख़बर को न आया कोई, मूए का कोई नहीं, जीए के सब कोई

मरने के बाद क़ब्र पर भी कोई नहीं जाता, जीवित की सब शुभेच्छा के लिए जाते हैं, मरने के बाद कोई याद नहीं रखता

रफ़ा'-ए-हाजत

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में क़ज़ा के तीर को ढाल की हाजत नहीं के अर्थदेखिए

क़ज़ा के तीर को ढाल की हाजत नहीं

qazaa ke tiir ko Dhaal kii haajat nahii.nقَضا کے تِیر کو ڈھال کی حاجَت نَہِیں

कहावत

क़ज़ा के तीर को ढाल की हाजत नहीं के हिंदी अर्थ

  • मौत आती हो तो मनुष्य किसी भी तरह से बच नहीं सकता
  • क्योंकि वह तीर किसी के रोके रुक ही नहीं सकता

    विशेष - हाजत- ज़रूरत।

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قَضا کے تِیر کو ڈھال کی حاجَت نَہِیں کے اردو معانی

  • موت آتی ہو تو انسان کسی صورت سے بھی بچ نہیں سکتا
  • کیونکہ وہ تیر کسی کے روکے رک ہی نہیں سکتا

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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