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رِثائی

غم اور موت سے متعلق، ماتمی

ظَرْف

برتن

تِہائی

کسی چیز کے تین حصّوں میں سے ایک حصّہ، تیسرا حصّہ، ثُلث

لَعْنَت

لعن، پھٹکار، نفریں

قَہْر ڈھانا

کسی پر کوئی آفت لانا، ظلم کرنا، قہر توڑنا

مَزدُور

اجرت پر محنت و مشقت کا کام کرنے والا، تجارت اور صنعت کے شعبوں میں جسمانی محنت کا کام کرنے والا، دوسروں کے کھیتوں میں اجرت پر کام کرنے والا، محنت فروش

چَلے نَہ جائے آنگَن ٹیڑھا

کام کا سلیقہ نہ ہونے کے سبب دوسرے کو الزام دینا

آگے ناتھ نَہ پِیچھے پَگا

جس کے آگے پیچھے کوئی نہ ہو، جس کا اپنا کوئی نہ ہو، لا ولد، لاوارث، اکیلا دم

ساحِر

جادوگر، ٹونے ٹوٹکے کرنے والا

کُڑمائی

شادی کا پیغام، شادی طے کرنا، رشتہ کرنا

نَظَر بَھر دیکھنا

بھرپور نظر سے دیکھنا، غور سے دیکھنا

خواجَہ تاش

ایک مالک کے دو یا زیادہ غلاموں یا نوکروں میں سے ہر ایک (ایک دوسرے کے لیے)

مَیّا

کرم، مہربانی، عنایت، رحم

قَفَس

(پرندوں كا) پنجرا، كابک

حسنِ طَلَب

کسی شے کو اشارہ اور کنایہ سے مانگنا، مثلاً کسی کی گھڑی پسند آئے تو اس کی تعریف کرنا

بَسَر

گزر، گزران، نباہ

بَسَر اَوْقات

زندگی کے دن (کسی نہ کسی طرح) کاٹنے کا عمل، گزر بسر، معاش و معیشت، گزران، گزر اوقات، گزارہ، رفع ضرورت، وجہ معیشت، قوت بسری، پرورش، روٹی کا سہارا

مُنْتَشِر

بکھرنے والا، پھیلنے والا، پراگندہ، بے ترتیب، تتربتر

پِنَک

وہ غنودگی یا اون٘گھ جو افیون یا پوست کے ڈوڈے وغیرہ یا کسی اور نشہ کے استعمال سے ہوتی اور اس میں گردن جھکی رہتی ہے یا آدمی اون٘دھ جاتا ہے، پینک

آنکھ اوٹ پَہاڑ اوٹ

جو چیز آنکھ کے سامنے نہ ہو اگر وہ قریب ہو تب بھی دور ہے

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"व्याकरण" से संबंधित उर्दू शब्द, परिभाषाओं, विवरणों, व्याख्याओं और वर्गीकरणों की सूची

अज्वफ़

वह अरबी शब्द जिसके बीच का अक्षर ‘अलिफ़', ‘वाव’ या ‘ये’ हो

'अलामत-ए-इज़ाफ़त

(व्याकरण) का, की, के, रा, रे, री और ने, नी आदि जो वृद्धि स्वरूप प्रयोग होते हैं तथा ज़ेर (---) जो फ़ारसी मिश्रण या परिच्छेद में प्रयोग में होते हैंं

'अलामत-ए-फ़ा'इल

(व्याकरण) वो अक्षर (हर्फ़-ए-ने) जो सक्रिय चिह्न के तौर पर आता है

'अवामिल

कारण, प्रयोजन

'आमिला

(क़वाइद) वो हुरूफ़ जो मुताल्लिक़ा कलिमा में तख़य्युर पैदा करें, हुरूफ़ वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-ज़र्फ़ी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक ज़र्फ़ हो और दूसरा मज़रूफ़, जैसे: शर्बत का गिलास, दवात की स्याही

इज़ाफ़त-ए-तख़्सीसी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह की वजह से मुज़ाफ़ में ख़ुसूसीयत पैदा होजाए, लेकिन ये ख़ुसूसीयत मिल्कियत और ज़रफ़ीत से मुताल्लिक़ ना हो, जैसे : आरिफ़ का हाथ, रेल का इंजन

इज़ाफ़त-ए-तम्लीकी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक मालिक हो दूसरा मालूक जैसे : अनवर की कियाब, गानओ- का ज़मींदार वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-तश्बीही

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह मुशब्बेह हो और मुज़ाफ़ मुशब्बेह बह, जैसे : ताने का नेज़ा, नेज़ों का मीना वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-तौज़ीही

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुजाफ़ इलैह, मुज़ाफ़ की वज़ाहत करे, (दूसरे लफ़्ज़ों में) मुज़ाफ़ आ हो और मुजाफ़ इलैह ख़ास, जैसे : मार्च का महीना, कराची का शहर वग़ैरा

इज़ाफ़त-ए-तौसीफ़ी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में एक सिफ़त हो और दूसरा मौसूफ़, जैसे : बे दूध की चाय, दिल का तंग, रोज़ रोशन, शब तारीक

इज़ाफ़त-ए-बयानी

(क़वाइद) इन दो लफ़्ज़ों की इज़ाफ़त जिन में मुज़ाफ़, मुजाफ़ इलैह से बना हो, जैसे : लोहे की मेख़, दीवार-ए-गली वग़ैरा

'इल्म-ए-सर्फ़

(क़वाइद) अलफ़ाज़ और हुरूफ़ का इलम, सिर्फ़

इस्तिदराक

एक पूर्ण निषेध या किसी वस्तु की स्पष्ट पुष्टि के पश्चात एक ऐसी स्थिति को बीच में लाए कि नकारात्मक या सकारात्मक शर्त निर्धारित हो जाए

इस्म-ए-'आम

(सिर्फ़) वो इस्म जो ग़ैर मुईन शख़्स या शैय (अश्ख़ास-ओ-अश्या) के मानी दे, इस्म-ए-नकरा, जैसे: किताब, आदमी, लौटा वग़ैरा

इस्म-ए-फे़'ल

वो शब्द जो किसी मस्दर (वह शब्द जिससे क्रियाएँ और कर्ता, धातु-कर्म आदि बनते हैं) से व्युत्पत्त न हो बल्कि किसी अवधि या समय में कार्य का होना पाया जाए

कलाम-ए-ताम

(व्याकरण) शब्दों का ऐसा समूह या संयोजन जिससे पूरी बात समझ में आ जाए

कलाम-ए-नाक़िस

(व्याकरण) मुरक्कब ताम की ज़िद, शब्दों का एक संयोजन जिससे पूरी बात समझ में न आए

कस्र

जेर की मात्रा, टूट, शिकस्तगी, वह संख्या जो एक से कम हो, भिन्न, जैसे, १, ३, ३, ।।

कोमा

(क़वाइद) इबारत में ठहराव के लिए, फ़िक़रे की हदबंदी करनेवाली अलामत, मुख़्तसर वक़फ़ा

खड़ा-ज़बर

(इमला-ओ-क़वाइद) फ़तहा, वो छटा अलिफ़ जो अरबी रस्म उलख़त में बाअज़ हर्फ़ के ऊपर ज़बर की जगह लिखा जाता है, जैसे रहमान, यहया वग़ैहर में

ख़बरिया

(व्याकरण) एक प्रकार का वाक्य जो किसी सूचना या संकेत को बताता है

गुन-बाचक

विशेषण

ज़माइर-ए-शख़्सी

(क़वाइद) ज़मीर (रुक) की जमा, ज़मीर की एक क़िस्म, किसी शख़्स के नाम के बदले इस्तिमाल होने वाले अलफ़ाज़ (वो, में, हम, तो, तुम वग़ैरा)

ज़मीर

सर्वनाम

ज़मीर फिरना

(क़वाइद) रुजू करना, राजा होना उस की जानिब ज़मीर से इशारा कहा जाना, किसी असम-ए-मज़कूर की जगह ज़मीर का इस्तिमाल होना

ज़मीर-ए-इज़ाफ़ी

(क़वाइद) वो ज़मीर जो हालत-ए-इज़ाफ़त में हो जैसे मेरा, हमारा, तुम्हारा वग़ैरा

जमीर-ए-मुख़ातब

(क़वाइद) रुक : ज़मीर-ए-हाज़िर

ज़मीर-ए-मुतकल्लिम

(व्याकरण) वो सर्वनाम जो बात करने वाला अपने लिए प्रयोग करता है

ज़मीर-ए-मफ़'ऊली

(क़वाइद) ज़मीर जो हालत-ए-मफ़ऊली में इस्तिमाल की जाती है, मसला : मुझ, तुझ, उसे वग़ैरा

ज़मीर-ए-हाज़िर

दे. ‘ज़मीरे मुखातब'।

ज़मीर-ग़ाइब

वह सर्वनाम जो किसी अनुपस्थित व्यक्ति या वस्तु के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे ‘वह’

जवाब-ए-शर्त

(क़वाइद) जज़ा

ठेगा

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ दूसरे के साथ इस तरह मिला हुआ हो कि इस का हिस्सा मालूम हो

तफ़ज़ील-ए-कुल

(लफ़ज़न) तमाम पर फ़ज़लेत देना, (क़वाइद) सिफ़त का वो दर्जा जिस के ज़रीये एक मौसूफ़ की तमाम पर तर्जीह ज़ाहिर की जाये (फ़ारसी में सिफ़त के बाद ' तरीन ' लगा कर ज़ाहिर करते हैं, जैसे : बुज़ुर्ग तरीन = सब से बर्ज़ग, बद रैन सब से बुरा

तफ़ज़ील-ए-नफ़सी

(लफ़ज़न) ज़ाती सिफ़त , (क़वाइद) सिफ़त का वो दर्जा जिस में मौसूफ़ को किसी और पर तर्जीह और फ़ज़लेत ना दी जाये

तफ़्ज़ील-ए-बा'ज़

शाब्दिक: कुछ को प्राथमिकता देना, व्याकरण: तुलनात्मक डिग्री (विशेषण की), विशेषण का वो दर्जा जिसके द्वारा एक वर्णित की कुछ पर प्राथमिकता प्रकट की जाये

तफ़्सीलिया

विराम चिह्न (:), बृहदान्त्र, अपूर्ण विराम, कॉलन

ता-ए-क़रिशत

व्याकरण: ते, वो 'ते' जो वर्णमाला के क्रम में करशत के संग्रह में शामिल है और जिसकी संख्या की गणना ४०० होती है, ‘अवजद' के हिसाब से 'क़रशत'वाली ते (७.)

ता-ए-तानीस

व्याकरण: वो 'ते' जो शब्द के अंत में स्त्रीलिंग बनाने के लिए आए

तानीस-ए-मा'नवी

व्याकरण: एक संज्ञा जिसमें कोई स्त्रीलिंग चिन्ह नहीं होता है लेकिन भाषाविद् इसे स्त्रीलिंग कहते हैं

नपुंसक-लिंग

संस्कृत व्याकरण में तीन प्रकार के लिंगों में से एक जिसमें ऐसे पदार्थों का अंतर्भाव होता है जो न तो पुंलिंग हों और न स्त्री लिंग, विशेष-संस्कृत के सिवा अंग्रेजी, मराठी आदि भाषाओं में भी यह तीसरा लिंग होता है, परन्तु हिन्दी, पंजाबी आदि भाषाओं में नहीं होता

निदाइय्या

(व्याकरण) वह शब्द जो किसी को पुकारने के लिए प्रयोग हो, जैसे: ऐ, ओ, अरे, (वह वाक्य या जुमला) जिसमें कोई संबोधन-कारक हो या जो किसी को आवाज़ देने के लिए प्रयोग हो, संबोधन कारक

निदाई

खेत में से फ़ालतू और निकम्मी घास निकालने का काम, निलाई, निराई

पद-भंजन

व्याकरण में, समस्त-पदों के पूर्व और उत्तर पद आदि अलग-अलग करने की क्रिया या भाव

पुन-लिंग

पुरुष का शिश्न, लिंग, पुरुष का चिह्न

परेड बाँधना

(सेना) नियमों के लिए कतार में खड़ा होना

फ़क्क-ए-इज़ाफ़त

इज़ाफ़त की अलात (कसरा) को छोड़ देना, अलामत इज़ाफ़त को महज़ूफ़ कर देना, जैसे: साहिब-ए-दिल, साहिब नज़र

फ़े'ल-ए-अम्र

(क़वाइद) वो फे़अल जिस में मुख़ातब को किसी काम के करने का हुक्म दिया जाये

फ़े'ल-ए-ताम

(व्याकरण) पूर्ण क्रिया, सही क्रिया

फ़े'ल-ए-नाक़िस

अपूर्ण क्रिया

फ़े'ल-ए-मजहूल

वह क्रिया जिसका कर्ता ज्ञात न हो, वो क्रिया जिस का फ़ाइल या कर्ता न हो

फ़े'ल-ए-मुज़ारे'

(व्याकरण) वह क्रिया जिसमें वर्तमान और भविष्य काल दोनों पाए जाएँ

फ़े'ल-ए-मुत'अद्दी

सकर्मक क्रिया

फ़े'ल-ए-मुरक्कब

(व्याकरण) वो क्रिया जो किसी दूसरी क्रिया, संज्ञा या विशेषण के साथ मिल कर एक सामूहिक भाव को लक्षित, जैसे: काम करना, रोशन करना आदि

फ़े'ल-ए-मा'रूफ़

वह क्रिया जिसका कर्ता ज्ञात हो

फ़े'ल-ए-लाज़िम

अकर्मक क्रिया

फ़े'ल-ए-सहीह

(क़वाइद) वो फे़अल जिस के हरूफ़-ए-असली में गर्दान के वक़्त कुछ तबदीली या हज़फ़ या ज़्यादती हुरूफ़ ना हो, जैसे : समझना

फ़ा'इल-ओ-मफ़्'ऊल

व्याकरण: वो जो काम करे और वो जिसके साथ काम किया जाये, प्रतीकात्मक: बुरा काम करने और कराने वाला, गुदा मैथुन करने और कराने वाला, गुदा-मैथुनकारी, पुस्र्षमैथुन करनेवाला, लौंडाबाजी

बिंजन

(क़वाइद) हर्फ़-ए-सहीह, हर्फ़-ए-इल्लत का नक़ीज़

बोल-बिठाव

छंद, छंद विद्या

मजरूर

शाब्दिक: खींचा हुआ

मुज़ाफ़

(क़वाइद) वो इस्म जिसे इज़ाफ़त या निसबत दी जाये, मुताल्लिक़ या मंसूब किया जाये , वो इस्म जो दूसरे इस्म के साथ लगाया जाये

मुज़ाफ़-इलैह

जिससे जोड़ा या मिलाया गया, जिसकी ओर निस्बत की जाय, जैसे-रमेश का घोड़ा, इसमें घोड़े की निस्बत रमेश की ओर है, इसलिए रमेश 'मुजाफ़ इलैह' है, और घोड़ा ‘मुज़ाफ़' है

मुज़ारे'

(उरूज़) एक बहर का नाम जो बहर-ए-मुंसरेह और बहर हज़ज से मुशाबेह है, मनसरह से इस लिए मुशाबेह है कि दोनों बहरों में जुज़ु दोम वतद मफ़रूक़ पर मुश्तमिल है और हज़ज से इस लिए मुशाबेह है कि इन दोनों बहरों के अरकान में औताद अस्बाब पर मुक़द्दम हैं, वज़न, मुफ़ाईल फाइलातुन मुफ़ाईलन फाइलातुन

मुझ

'मैं' का वह रूप जो उसे कर्ता और संबंध कारक की विभक्तियों के अतिरिक्त अन्य शेष कारकों की विभक्तियाँ लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- मुझको, मुझसे, मुझ पर आदि

मुत'अल्लिक़-ए-फ़े'ल

(क़वाइद) वो कलिमा जो जुमले में फे़अल की कैफ़ीयत, जगह या वक़्त वग़ैरा ज़ाहिर करे, ताबे फे़अल, तमीज़

मुतहर्रिक

 

मुद्द'आइय्या

(क़ायदा) ऐसा जुमला जिसमें मतलब बयान किया गया हो

मफ़'ऊल-फ़ीह

वह कार्य जो क्रिया के घटने के स्थान या समय का पता दे अर्थात, सातवाँ कारक, अधिकरण

मफ़'ऊल-बिह

व्याकरण में वह कारक जिसके द्वारा कर्ता क्रिया को सिद्ध करता है, तीसरा कारक, करण

मफ़'ऊल-म'अहु

जिसके साथ कोई काम हो (जैसे: अहमद को महमूद के साथ मारा)

मफ़'ऊल-मुतलक़

सामान्य कर्म, मफ़्ऊल।।

मफ़'ऊल-मिन्हु

पाँचवाँ कारक, अपादान।

मफ़ा'ईल

(क़वाइद) जमा कसरत का एक क़ियासी वज़न (जैसे मुफ़ातीह जमा मिफ़्ताह) नीज़ (उरूज़) बहर का एक वज़न

मुबद्दल

बदला हुआ, परिवर्तित

मुरक्कब-ए-'अतफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब कलाम जो मातूफ़ और मातूफ़ अलैह से मिल कर बने

मुरक्कब-ए-इज़ाफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो मुज़ाफ़ और मुज़ाफ़ एव लिया से मिल कर बने या जिस में एक इस्म को दूसरे इस्म से निसबत दें

मुरक्कब-ए-तौसीफ़ी

(क़वाइद) वो मुरक्कब तरकीब जो सिफ़त और मौसूफ़ से मिल कर बने

मल्फ़ूज़

(व्याकरण) जो शब्दों में अदा हो, जो पढ़ने में आए, जो पढ़ा जाए, बोला हुआ, कहा हुआ, उच्चरित

मुस्तक़्बिल-ए-तमाम

(क़वाइद) वो ज़माना जिस में आइंदा के दो वाक़ियात में से किसी एक वाक़े के पेशतर इमकानी वक़ूअ की तकमील की तरफ़ इशारा होता है (जैसे : जब तुम आओगे, अहमद सौ चुका होगा

मुस्तक़्बिल-ए-दवामी

मुस्तक़बिल मुतलक़ की ज़ेली क़सम जिस में फे़अल की हैयत से आइंदा के अमल का तवातर ज़ाहिर होता है (जैसे : अहमद खेलता रहेगा

मुस्तक़बिल-ए-ना-तमाम

(क़वाइद) फे़अल की वो गर्दान जिस में आइंदा वाक़े की तरफ़ इशारा हो (जैसे : कल जब तुम आओगे, अहमद खेल रहा होगा

मुस्तक़्बिल-ए-मुत्लक़

(क़वाइद) सीग़ा-ए-मुस्तक़बिल की एक सूरत जिस में क़रीब-ओ-बईद का इमतियाज़ नहीं होता, उसे मुज़ारे के बाद, गा, गी, गे, बढ़ाने से बनाते हैं (जैसे : आएगा, पड़ेगा वग़ैरा)

मुस्ता'लिया

(अरबी व्याकरण) वे हुरूफ़ अर्थात अक्षर जिनसे इमाला पैदा नहीं होता अर्थात ख़े स्वाद ज़्वाद तो ज़ो ग़ैन क़ाफ़

मस्दर-ए-लाज़िम

वह मस्दर जिसकी क्रियाएँ अकर्मक हों

मुंसरिफ़

(साक्षणिक) बदलने वाला, फिर जाने वाला, अवज्ञाकारी

मुहर्रिक

हिलाने वाला, कंपन देने वाला, कंपित करने वाला, गति देने वाला

मुहावरतन

(व्याकरण) मुहावरे के तौर पर, मुहावरे के अनुसार

माज़ी-तमन्नाई

(व्याकरण) वह भूतकाल जिसमें किसी काम को करने की इच्छा पायी जाए, जैसे: काश वह आता

मा'तूफ़ा

(क़वाइद) वो जुमला जिस में हरफ़-ए-अतफ़ पाया जाये

मा'दूला

वह अक्षर जो लिखने में तो आए लेकिन पढ़ने में न आए आम तौर पर वाओ के लिए विशिष्ट जैसे ख़ुद, ख़ाब आदि

मा'रिफ़ा

व्यक्तिवाचक संज्ञा, किसी ख़ास चीज़ का नाम, जैसे-राम, अली आदि

मा'हूद-ए-ख़ारिजी

(व्याकरण) वह जातिवाचक संज्ञा जो कारण-विशेष से व्यक्तिवाचक बन जाए, जैसे- ‘ख़लील' जो जातिवाचक है, परन्तु पैग़म्बर इब्राहीम के लिए बोला जाता है

मिफ़'आल

(क़वाइद) इस्म-ए-आला के लिए राइज अरबी अलासल दो ओज़ान में से एक वज़न

मौसूल

प्राप्त हुआ, मिला हुआ, प्रचलित, प्राप्त, स्वीकार किया हुआ,

रूढ़ि

(व्याकरण) वह संज्ञा जो किसी से बनी न हो, वह शब्द जो किसी दूसरे शब्द से बना न हो

वाहिद-ग़ाइब

(व्याकरण) किसी ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सर्वनाम जो मौजूद न हो

वाहिद-मुतकल्लिम

(क़वाइद) ज़मीर वाहिद मुतकल्लिम, वो ज़मीर जो कलाम करने वाला अपने लिए इस्तिमाल करे

शुफ़ा

क़ानून: नियम और कानून जो पड़ोस के कानून को निर्धारित करते हैं

सेग़ा गर्दानना

महत्व देना

सूरत-ए-मस्दरी

(क़वाइद) मसदरी हालत, किसी फे़अल की मसदरी शक्ल

सर्पुर्दा

संगीत: पारंपरिक रूप से राग और वाद्य के नियमों का एक घटक जो आमिर खुसरौ देहलवी से संबंधित माना जाता है, बिलावल ठाठ का एक राग

सहता

कृषि: चरखे के किनारे पर एक लकड़ी सवा बित्ते की लंबी और पौन बित्ते की ऊँची गाड़ी जाती है उसको सहता कहते हैं

सहीह

जिसमें किसी प्रकार का झूठ या मिथ्यात्व न हो, यथार्थ, वास्तविक, सच, सत्य, ठीक, उचित, त्रुटि रहित, निर्दोष, चंगा, अच्छा, सेहत मंद, स्वस्थ, पूर्ण, पूरा, साबित, समूचा

सिफ़त-ए-'अददी

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी इस्म की तादाद मुईन या ग़ैर मुईन ज़ाहिर करे, मसलन पाँच आदमी, चंद लोग

सिफ़त-ए-ज़ाती

व्याकरण: वो शब्द जो किसी व्यक्ति या सामग्री की व्यक्तिगत या अंदरूनी हालत या विशेषता बताए

सिफ़त-ए-निस्बती

(क़वाइद) वो सिफ़त जिस में किसी दूसरी शैय से लगाओ या निसबत ज़ाहिर हो, मसलन हिन्दी, अरबी वग़ैरा उमूमन ये निसबत इस्म के आख़िर में या-ए-माअरूफ़ के बढ़ाने से ज़ाहिर होती है

सिफ़त-ए-मुशब्बा

(क़वाइद) वो सिफ़त जिस में वस्फ़ी मानी हमेशा के लिए पाए जाएं, सिफ़त-ए-ज़ाती

सिफ़त-ए-हालिया

(क़वाइद) असम-ए-हालिया या सिफ़त-ए-हालिया वो मुशब्बेह फे़अल है जो अपने फ़ाइल को ये ज़ाहिर करता है कि वो काम करने की हालत में है

सिलात

(क़वाइद) वो हुरूफ़ रब्त जो अफ़आल के साथ ख़ास मफ़हूम अदा करने के लिए लाए जाएं

हर्फ़-ए-'अत्फ़

वह अक्षर जो दो शब्दों को परस्पर मिलाने के लिए उनके बीच में आये, जैसे- रोज़ोशब (रोज़ व शब) में ‘वाव'

हुरूफ़-ए-अबजद

(क़वाइद) रुक : हरूफ़-ए-तहज्जी

हर्फ़-ए-इंकार

(व्याकरण) नकार देने वाले वचन, नहीं शब्द

हर्फ़-ए-इज़राब

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी को आला से अदना और अदना से आला बनाने के लिए इस्तिमाल हो "बल्कि" हर्फ़ इज़राब है

हर्फ़-ए-इज़ाफ़त

(व्याकरण) दो शब्दों के संबंध के लिए बीच में आनेवाला अव्यय शब्द

हुरुफ़-ए-'इल्लत

उर्दू में अलिफ़, वाव और ये, हिंदी में ‘स्वर', इंगलिश में ‘वावेल', इसके तीन अक्षर हैं वाओ, अलिफ़ और या

हर्फ़-ए-इस्तिद्राक

वो लफ़्ज़ जो पहले जुमले के शुबा को दूर करे मसलन: मगर, लेकिन, अलबत्ता, सौ, पर, वग़ैरा

हर्फ़-ए-इस्तिफ़हाम

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो पूछने के मौक़ा पर इस्तिमाल होता है, जैसे : किया, क्यों, कैसे, वग़ैरा

हर्फ़-ए-इस्तिस्ना

(व्याकरण) वह अव्यय जो एक चीज़ को दोसरी चीज़ से पृथक करे, जैसे-‘सब आ गए मगर राम में 'मगर'

हुरूफ़-ए-क़मरी

अरबी में वह अक्षर जिनमें 'ल' मिलता नहीं है, जैसे: अल-क़मरअल-क़मर (ا، ب، ج، ح، خ، ع، گ، ف، ق ک، م، و، ہ، ی)

हर्फ़-ए-ग़ैर-मुतहर्रिक

वह अक्षर जिस पर तीनों मात्राओं (ज़बर, ज़ेर, पेश) में से कोई मात्रा न हो

हर्फ़-ए-जज़ा

(व्याकरण) एक शर्तिया वाक्य के जवाब में प्रकट होने वाले वाक्य के शुरुआत का शब्द

हर्फ़-ए-जार

वह शब्द जो संज्ञा को क्रिया या क्रियातुल्य से मिलाए, जैसे से, पर, में, तक, मन, हाशा, चू, (हमचू और हमचूँ)

हर्फ़-ए-तंकीर

(क़वाइद) वो हर्फ़ या लफ़्ज़ जो किसी इस्म के साथ आकर नक्रा के मानी पैदा करे

हर्फ़-ए-तख़्सीस

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो किसी इस्म या फे़अल की ख़ुसूसीयत या हसर ज़ाहिर करने केलिए आए, मसलन : ही, सिर्फ़, महिज़, बस, ख़ाली, निरा, अकेला, फ़क़त, तन्हा

हर्फ़-ए-तमन्ना

वो शब्द या वाक्य जो इच्छा व्यक्त करे

हर्फ़-ए-तर्दीद

(व्याकरण) वह शब्द जो एक बात को निरस्त करके उसके स्थान पर दोसरी बात लाए, खंडन करने वाला कथन, जैसें: चाहे, या या तो, कि आदि

हर्फ़-ए-तश्बीह

वह शब्द जो उपमा के लिए आये उदाहरणः जैसे, समान, तुल्य, सदृश

हर्फ़-ए-ताकीद

(व्याकरण) वह अक्षर जो बात में ज़ोर देने के लिए प्रयोग होता है जैसे: अवश्य, निश्चित, हरगिज़, कभी आदि

हर्फ़-ए-ता'रीफ़

वह अक्षर जो व्यक्तिवाचक संज्ञा का परिचय देता है

हर्फ़-ए-नुदबा

वह शब्द या अव्यय जो विलाप के लिए बोला जाय, जैसे--हाय, आह।।

हर्फ़-ए-निदा

वह शब्द जिससे सम्बोधन किया जाय

हुरुफ़-ए-फ़ौक़ानी

(क़वाइद) वो नुक़्तादार हुरूफ़ जिन के नुक़्ते उन के ऊओपर लुके जाते हैं, मसलन : त, स, ख, ज़, ज़, श, ज़, ज़, ग, फ, क

हर्फ़-ए-मक्सूर

(व्याकरण) वह शब्द जिसके नीचे ज़ेर (ज़ेर अर्थात ए या इ की मात्रा) हो

हर्फ़-ए-मुफ़्रद

(व्याकरण) अलग तरह की आवाज़ की शक्ल जैसे; अलिफ़, बे, जीम, दाल आदि

हर्फ़-ए-मम्दूदा

(क़वाइद) वो हर्फ़ जिस पर अलामत-ए-मद लिखी हो

हर्फ़-ए-मुरक्कब

(व्याकरण) दो या दो से अधिक मिला कर लिखे हुए शब्द, जैसे जा, जब, घर

हर्फ़-ए-मुशद्दद

(व्याकरण) दो बार पढ़ा जाने वाला अक्षर, जो दो बार पढ़ा जाता है

हर्फ़-ए-मा'नवी

पूर्वसर्ग अक्षर

हर्फ़-ए-मो'जमा

(क़वाइद) वो हर्फ़ जिसपर नुक़्ता या नुक़्ते हूँ, नुक़्तादार हर्फ़, हर्फ़ मोअज्जम

हर्फ़-ए-रब्त

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जो एक लफ़्ज़ का इलाक़ा दूसरे लफ़्ज़ से ज़ाहिर करे (हुरूफ़ रबज़ में से वो हुरूफ़ जो इज़ाफ़त या फ़ाइल या मफ़ऊल के रब्त का काम देते हैं उन के इलावा सब हुरूफ़ जार कहलाते हैं)

हुरूफ़-ए-शम्सी

अरबी के वे अक्षर जिनमें ‘ल’ मिलकर वही अक्षर बन जाता है जिससे वह मिलता है, जैस-अश्शम्स (अल-शम्स) वे अक्षर हैं: ت، ث، د، ذ، ر، ز، س، ش، ص، ض، ط، ظ، ل، ن

हर्फ़-ए-शर्त

वह शब्द जो एक वाक्य को दूसरे वाक्य से संबद्ध करे, सशर्त पद, जैसे: अगर, मगर, जो

हर्फ़-ए-साकिन

(क़वाइद) वो लफ़्ज़ जिस का तलफ़्फ़ुज़ बला हरकत किया जाये, वो हर्फ़ जिस पर हरकत की अलामत ज़बर, ज़बर, पेश या इस के आख़िर में हर्फ़-ए-इल्लत ना हो

हा-ए-मुख़्तफ़ी

वह 'हे' अर्थात 'ह' जो लिखी जाए मगर पढ़ी न जाए और केवल यह प्रकट करने के लिए आए कि अंतिम अक्षर हल् नहीं है, जैसे-‘परवानः, दीवानः, मस्तानः आदि, इज़ाफ़त के रूप में इस पर 'हम्ज़ा' आता है लेकिन उसका अपना कोई स्वर प्रकट नहीं होता जैसे: نامۂ غالب، فسانۂ دل आदि

हा-ए-मख़्लूत

वह ‘ह’ जो दूसरे शब्द में मिलाकर पढ़ी जाये, जैसे—‘कुम्हार' की 'हे'।

हालत-ए-इज़ाफ़त

(क़वाइद) किसी लफ़्ज़ की वो हालत जो इस लफ़्ज़ के ताल्लुक़ को दूसरे लफ़्ज़ से ज़ाहिर करती है, मुख़ाफ़ होने की हालत

हालत-ए-निदाई

(व्याकरण) संज्ञा की वह हालत जब उसे पुकारा जाए

हालत-ए-फ़ा'इली

कर्त्ता शब्द, कर्त्ता कारक

हालत-ए-मफ़'ऊली

परोक्ष कारक

हालिया

क़सीदे की एक क़िस्म जिस में हालात की शिकायत होती है

हासिल-ए-मस्दर

(क़वाइद) वो इस्म, जो फे़अल की कैफ़ीयत या असर को ज़ाहिर करे और किसी मुसद्दिर से निकला हो

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