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सोहे

handsome, beautiful

सोहे की रीत नहीं की तौफ़ीक़ नहीं

बहुत ग़रीब है जब कोई शख़्स किसी तक़रीब के पूओरा करने की हैसियत ना रखता हो इस के मुताल्लिक़ कहते हैं. वज़ा का लिहाज़ मगर हैसियत के मुताबिक़ काम करने की इस्तिताअत नहीं

कड़का सोहे पाली को बारा सोहे माली को

हर चीज़ अपने मौक़ा पर अच्छी मालूम होती है (कड़का, गुडरियों का गाना, बारह पानी बारह पानी निकालने वालों का गाना

कड़का सोहे पाली ने बारा सोहे माली ने

हर वस्तु अपनी जगह पर अच्छी लगती है, कड़खा तो गड़रियों के मुँह से अच्छा लगता है और बिरहा मालियों के मुँह से

कड़का सोहे पाली ने, विरहा सोहे माली ने

हर वस्तु अपनी जगह पर अच्छी लगती है, कड़खा तो गड़रियों के मुँह से अच्छा लगता है और बिरहा मालियों के मुँह से

गीत सोहे भाट को और खेती सोहे जाट को

कविता भाट को शोभा देती है और खेती जाट को

गीत सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने

कविता भाट को शोभा देती है और खेती जाट को

कवित सोहे भाट ने, और खेती सोहे जाट ने

कविता भाट को शोभा देती है और खेती जाट को

जिस का काम उसी को सोहे

जिस ने जो काम सीखा है वही उसे अच्छी तरह कर सकता है दूसरे के बस का नहीं

रूख बिना ना नगरी सोहे बिन बरगन ना कड़ियाँ, पूत बिना ना माता सोहे लख सोने में जड़ियाँ

शहर बिना पेड़ों और कड़ियाँ बिना शहतीरों के अच्छी नहीं प्रतीत होतीं और ना माँ बिना बेटे के भली लगती है चाहे आभूषणों से लदी हो

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में सोहे के अर्थदेखिए

सोहे

soheسوہے

वज़्न : 22

देखिए: सोहा

English meaning of sohe

Noun, Masculine

سوہے کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

اسم، مذکر

  • سوہا (رک) کی جمع یا مُغیّرہ حالت (تراکیب میں مُستعمل).

सोहे से संबंधित कहावतें

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सोहे

handsome, beautiful

सोहे की रीत नहीं की तौफ़ीक़ नहीं

बहुत ग़रीब है जब कोई शख़्स किसी तक़रीब के पूओरा करने की हैसियत ना रखता हो इस के मुताल्लिक़ कहते हैं. वज़ा का लिहाज़ मगर हैसियत के मुताबिक़ काम करने की इस्तिताअत नहीं

कड़का सोहे पाली को बारा सोहे माली को

हर चीज़ अपने मौक़ा पर अच्छी मालूम होती है (कड़का, गुडरियों का गाना, बारह पानी बारह पानी निकालने वालों का गाना

कड़का सोहे पाली ने बारा सोहे माली ने

हर वस्तु अपनी जगह पर अच्छी लगती है, कड़खा तो गड़रियों के मुँह से अच्छा लगता है और बिरहा मालियों के मुँह से

कड़का सोहे पाली ने, विरहा सोहे माली ने

हर वस्तु अपनी जगह पर अच्छी लगती है, कड़खा तो गड़रियों के मुँह से अच्छा लगता है और बिरहा मालियों के मुँह से

गीत सोहे भाट को और खेती सोहे जाट को

कविता भाट को शोभा देती है और खेती जाट को

गीत सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने

कविता भाट को शोभा देती है और खेती जाट को

कवित सोहे भाट ने, और खेती सोहे जाट ने

कविता भाट को शोभा देती है और खेती जाट को

जिस का काम उसी को सोहे

जिस ने जो काम सीखा है वही उसे अच्छी तरह कर सकता है दूसरे के बस का नहीं

रूख बिना ना नगरी सोहे बिन बरगन ना कड़ियाँ, पूत बिना ना माता सोहे लख सोने में जड़ियाँ

शहर बिना पेड़ों और कड़ियाँ बिना शहतीरों के अच्छी नहीं प्रतीत होतीं और ना माँ बिना बेटे के भली लगती है चाहे आभूषणों से लदी हो

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