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मुर्ग़ी तो जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

रुक : मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वालों को मज़ा ना आया

बकरी जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

एक व्यक्ति दूसरे के लिए कोशिश एवं परिश्रम करता मर गया परंतु उसने सम्मान नहीं दिया

मछ्ली अपनी जान से गई , खाने वालों को मज़ा न आया

रुक : मुर्ग़ी अपनी जान से गई, खाने वालों को मज़ा ना आया, जो ज़्यादा मुस्तामल है

मुर्ग़ी अपनी जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

छेली जान से गई , खाने वालों को स्वाद न आया

जब किसी की मेहनत की कोई दास ना दे तो कहते हैं, हमारी जान गई आप की अदा ठहरी

मुर्ग़ी अपनी जान से गई, खाने वालों को स्वाद न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

मुर्ग़ी जान से गई खाने वाले को मज़ा न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वाले को स्वाद न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वाले को मज़ा न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

जान से गई खाने वाले को मज़ा न आया

इस शख़्स के लिए मस्तसमल जो किसी की ख़िदमत में जान की बाज़ी लगा दे फिर भी इस की क़दर ना हो

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में मुर्ग़ी तो जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया के अर्थदेखिए

मुर्ग़ी तो जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

murGii to jaan se ga.ii, khaane vaalo.n ko mazaa na aayaaمُرغی تو جان سے گَئی، کھانے والوں کو مَزا نَہ آیا

कहावत

मुर्ग़ी तो जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया के हिंदी अर्थ

  • रुक : मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वालों को मज़ा ना आया

مُرغی تو جان سے گَئی، کھانے والوں کو مَزا نَہ آیا کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • رک : مرغی اپنی جان سے گئی کھانے والوں کو مزا نہ آیا ۔

Urdu meaning of murGii to jaan se ga.ii, khaane vaalo.n ko mazaa na aayaa

  • Roman
  • Urdu

  • ruk ha murGii apnii jaan se ga.ii khaane vaalo.n ko mazaa na aaya

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मुर्ग़ी तो जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

रुक : मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वालों को मज़ा ना आया

बकरी जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

एक व्यक्ति दूसरे के लिए कोशिश एवं परिश्रम करता मर गया परंतु उसने सम्मान नहीं दिया

मछ्ली अपनी जान से गई , खाने वालों को मज़ा न आया

रुक : मुर्ग़ी अपनी जान से गई, खाने वालों को मज़ा ना आया, जो ज़्यादा मुस्तामल है

मुर्ग़ी अपनी जान से गई, खाने वालों को मज़ा न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

छेली जान से गई , खाने वालों को स्वाद न आया

जब किसी की मेहनत की कोई दास ना दे तो कहते हैं, हमारी जान गई आप की अदा ठहरी

मुर्ग़ी अपनी जान से गई, खाने वालों को स्वाद न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

मुर्ग़ी जान से गई खाने वाले को मज़ा न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वाले को स्वाद न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

मुर्ग़ी अपनी जान से गई खाने वाले को मज़ा न आया

जब कोई किसी की तन-मन से सेवा करे और वो उसकी सेवा से संतुष्ट न हो तो कहते हैं

जान से गई खाने वाले को मज़ा न आया

इस शख़्स के लिए मस्तसमल जो किसी की ख़िदमत में जान की बाज़ी लगा दे फिर भी इस की क़दर ना हो

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