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सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
नाम-ए-ख़ुदा तुझ ऊपर इस आन अजब समाँ है
अब की होली में रहा बे-कार रंग
और ही लाया फ़िराक़-ए-यार रंग
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में
ग़ैर से खेली है होली यार ने
डाले मुझ पर दीदा-ए-ख़ूँ-बार रंग
Noun, Feminine, Singular
اسم، مؤنث، واحد
मीर तक़ी मीर के दुखी स्वभाव और लखनऊ से बेज़ारी के चर्चे तो सबने सुन रखे हैं लेकिन उस शहर की "होली" की रौनक़ों ने उनका दिल भी मोह लिया था। मीर जब दिल्ली से लखनऊ आए और उन्होंने उस वक्त के नवाब आसिफ़ उद्दौला को रंगों में शराबोर होली खेलते देखा तो उनकी तबियत भी रंगीन हो गई और उन्होंने एक पूरी मसनवी "दर बयान होली" लिखी: होली खेले आसिफ़ उद्दौला वज़ीर रंग सोहबत से अजब हैं ख़ुर्द ओ पीर एक और मसनवी "दर जश्न ए होली और कतख़ुदाई" आसिफ़ उद्दौला के शादी के मौके पर लिख डाली: आओ साक़ी बहार फिर आई, होली में कितनी शादियां लाई जश्न ए नौरोज़ हिंद होली है,राग रंग और बोली ठोली है लखनऊ दिल्ली से भी बेहतर है,कि कसो दिल की लाग इधर है। अवध के आखिरी नवाब और भारतीय संगीत, नृत्य और नाटक के रसिया और संरक्षक वाजिद अली शाह अख़्तर न सिर्फ़ होली खेलते थे बल्कि उनकी शायरी भी होली के रंगों को पेश करती है। उनका यह लोकगीत बहुत मशहूर है: मोरे कान्हा जो आए पलट के अब की होली मैं खेलूंगी डट के उनके पीछे मैं चुपके से जा के ये गुलाल अपने तन से लगा के रंग दूंगी उन्हें भी लिपट के 1996 में श्याम बेनेगल की फ़िल्म "सरदारी बेगम" में यह गीत आशा भोंसले ने गाया था। उर्दू में होली के प्रसंग में होली खेलना,गुलाल उड़ाना, लंगोटी में फाग खेलना, बसंत की ख़बर न होना जैसे मुहावरे और कहावतें बोल चाल का हिस्सा हैं।
लेखक: अज़रा नक़वी
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