उर्दू हरूफ़-ए-तहज्जी (तर्तीब अब तस) का सातवां या बिशमोल हाईआ ग्यारहवां, देवनागरी का आठवां, फ़ारसी का छटा और अरबी का पांचवां हर्फ़-ए-सहीह (मसम) तर्तीब अबजद में तीसरा जैम के नाम से मौसूम, वक्फ़ेह (ग़ैर हाईआ) मुज्हो रह है और हनक (= तालू) से अदा किए जाने की वजह से हनकेह कहलाता है, जदीद सूतियात की रो से मुस्तक़िल सौतिया है, सामी और आरयाई दोनों लिसानी ख़ानदानों में मिलता है, अबजद के हिसाब से इस के ३ अदद होते हैं, तक़वीम में इस से सहि शंबा (मंगल) मुराद लिया जाता है, इलम बैअत (फ़लकियात) में बुरज-ए-सर्तान की अलामत है, इलम-ए-हैयत की जदूलों में इस का सर (ह्) तन्हा नुक़्ते के बगै़र लिखा जाता है, अरबी क़मरी महीने जमादी अलाख़र का क़ाइम मक़ाम भी है, मंतिक़ और रिया ज़य्यात में ग़ैर मुतय्यन मिक़दार या नामालूम शख़्स के लिए और क़ुरआन शरीफ़ में वक़्फ़ जायज़ के लिए इस्तिमाल हुआ है, रियाज़ी-ओ-साईंस की तरकीमात में (ज = इसरा बोज्ह जाज़बह अर्ज़)