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आठ बार नौ त्योहार
सुख-सुविधा और आराम का शौक़ या लगन ऐसा बढ़ा हुआ है कि युग और समय उसको अल्प व्यय नहीं करने देता
चमनिस्तान
ऐसा बाग़ जहाँ फूल ही फूल हों, ऐसी जगह जहाँ दूर तक फूल ही फूल और हरा भरा नज़र आए, वाटिका, चमन, बाग़
दादरा
संगीत में एक प्रकार का चलता गाना (पक्के या शास्त्रीय गानों से भिन्न), एक प्रकार का गान, एक ताल
मज़दूर
शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका कमाने वाला कोई व्यक्ति, जैसे: इमारत बनाने, कल-कारख़ानों में काम करने वाला, श्रमिक, कर्मकार, भृतक, मजूर
दूध-शरीक बहन
ऐसी बालिका जो किसी ऐसी स्त्री का दूध पीकर पली हो जिसका दूध पीकर और कोई बालिका या बालक भी पला हो, धाय संतान, दूधबहिन, दूधबहन
"शायरी" टैग से संबंधित शब्द
"शायरी" से संबंधित उर्दू शब्द, परिभाषाओं, विवरणों, व्याख्याओं और वर्गीकरणों की सूची
इर्तिजाल
बिना सोचे तुरंत ही किसी विषय पर बोलने लगना, बिना सोचे तुरंत ही कविता करना किसी काम को तुरन्त ही कर देना, आशुभाषण, आशुकविता, आशुरचना
कुंडलिया
छ: चरणों का एक मात्रिक छंद, जिसके पहले दो चरण दोहे के और अन्तिम चार रोले के होते हैं, कुंडलिका
क़ाफ़िया
(छंद) कविता या पद्य में अंतिम चरणों में मिलाया जाने वाला अनुप्रास, एक ही अक्षर पर ख़त्म होने वाले शब्द, अंत्यानुप्रास, तुक, सज, तुकांत शब्द
छप्पा
(अदब-ओ-शेअर) एक सिनफ़ सुख़न यानी छः मिसरों का बंद जो मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में लिखा जाता है, कल मिसरे मुक़फ़्फ़ा या हर मिसरा का क़ाफ़िया अलग या दो मिसरे बाहम मुक़फ़्फ़ा और रदीफ़ भी इस्तिमाल कर लेते हैं
ज़मीन तरह करना
(कविता) तुकांत और रदीफ़ तथा छंद का निर्धारण या चयन करना, ग़ज़ल या तुकबंदी और रदीफ़ युक्त कविता कहने के लिए कोई पंक्ति तय करना
ज़मीन सुस्त होना
(शायरी) रदीफ़-ओ-क़ाफ़ीए और बहर का शगुफ़्ता ना होना, जिस की वजह से शेअर कहना दुश्वार हो
ज़मीन-ए-शे'र
ग़ज़ल या नज़म की रदीफ़, क़ाफ़िया और बहर का एक ख़ास पैमाना जिस में शेअर कहा जाये, कविता का एक पैमाना जिसको आधार बना कर कविता लिखी जाए
नज़्म-ए-आज़ाद
कविता का एक खुला रूप, आज़ाद नज़म, मुक्तछन्द, कविता का वह रूप जो किसी छन्दविशेष के अनुसार नहीं रची जाती न ही तुकान्त होती है, मुक्तछन्द की कविता सहज भाषण जैसी प्रतीत होती है
नज़्म-ए-मु'अर्रा
(शायरी) वो कलाम मौज़ूं जिस में क़ाफ़िया और रदीफ़ ना हो लेकिन बहर हो, नज़म की एक क़िस्म, नज़म आज़ाद, नज़म सफ़ैद, बे क़ाफ़िया नज़म, नज़म आरी (Blank Verse)
नज़्म-गो
ऐसा शाइर जो शाइरी की तमाम क़िस्मों में से केवल नज्म (ग़ज़ल-शैली के प्रतिकूल एक ही विषर पर की जानेवाली शाइरी) कहता हो
बैत-बाज़ी
विद्यार्थियों का एक विद्या संबंधी खेल (जिसका रूप ये होता है कि एक लड़का एक शेर पढ़ता है और दूसरा लड़का उस शेर के अंतिम अक्षर से प्रारम्भ होने वाला दूसरा शेर पढ़ता है या उसी विषय पर दूसरी उक्ति पढ़ता है), पद्य, श्लोक, शेर आदि के पाठ की प्रतियोगिता, अंताक्षरी
मख़ालिस
(शायरी) मुख़लिस की जमा, गुरेज़, कसीदे का वो हिस्सा जहां से शायर तशबीब से मदह की तरफ़ रुख़ करता है
मजमू'आ मुरत्तब करना
(साहित्य) कविता का संग्रह या संपूर्ण रचनाओं को एकत्रित करके व्यवस्थित करना जिससे कि प्रकाशित किया जा सके
मज़मून चुस्त बँधना
(कविता) बात छंदबद्ध करना या लिखना, वह निबंध लिखना जिसमें कोई विशेष बात मनमोहक ढंग से छंदबद्ध हो
मदह-ए-हाज़िर
(शायरी) वो तारीफ़-ओ-तौसीफ जो ममदूह के सामने या उस को मुख़ातब करके की जाये (उमूमन कसीदे में
मनक़बत
कविता के शब्द में, यह उस परिभाषा को संदर्भित करता है जो अहल-ए-बैत और साहाबा (पैग़म्बर मोहम्मद साहब) की महिमा में हो, महात्माओं का यशोगान
मुरद्दफ़ा
(शायरी) रदीफ़ वाला (क़ाफ़िया) हर्फ़ रवी के क़बल हुरूफ़ मिद्दा में से कोई हर्फ़ जो बगै़र किसी वास्ते के हो नीज़ हर्फ़ क़ैद जो रवी के साथ आए
मर्सिया-गो
(शायरी) मर्सिया कहने वाला, एैसी कविता कहने वाला जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु या शहादत या उसकी परेशानियों का उल्लेख हो
मा'मूलियात
रोज़मर्रा की बातें या चीज़ें, आम सतह की बातें, शायरी या नस्र में ऐसे ख्याला तुक्का इज़हार करना जो अवाम के फ़हम-ओ-शऊर से मुताबिक़त रखते हूँ
रि'आयत-ए-लफ़्ज़ी
वह शब्दालंकार जिसमें किसी शेर आदि में एक शब्द के अनुकूल और भी शब्द लाये जायें, जैसे—नदी के साथ, नाव, कर्णधार, पतवार आदि के शब्द
सन'अत-ए-तसहीफ़
(शायरी) शेअर में ऐसे अलफ़ाज़ लाना कि नक़ात के रद्दोबदल से दूसरे लफ़्ज़ बिन जाएं और अगर मदह हो तो हजव हो जाये
सन'अत-ए-तौशीह
(शायरी) ऐसे अशआर कहना जिन के हर मिसरा या हर शेअर के पहले हुरूफ़ को जमा करने से कोई नाम या इबारत बिन जाये, इसी तरह आख़िरी हुरूफ़ को जमा करने से नाम या इबारत बिन जाये
सन'अत-ए-तौसीम
(कविता) काफ़िये की बुनियाद ऐसे शब्द पर रखना कि जिसकी प्रशंसा की जाए उसका नाम उसमें आ जाए
सन्'अत-ए-मुबालग़ा
(शायरी) किसी अमर को शिद्दत-ओ-ज़ोफ़ में इस हद तक पहुंचा देना कि इस हद तक इस का पहुंचना मुहाल या बईद हो
सन'अत-ए-मा'नवी
(शायरी) वो सनअत जो शेअर में माअनवी ख़ूबीयों का इज़ाफ़ा करे, मसलन सनअत इबहाम, सुन्नात-ए-तज़ाद वग़ैरा
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