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आठ बार नौ त्योहार
सुख-सुविधा और आराम का शौक़ या लगन ऐसा बढ़ा हुआ है कि युग और समय उसको अल्प व्यय नहीं करने देता
चमनिस्तान
ऐसा बाग़ जहाँ फूल ही फूल हों, ऐसी जगह जहाँ दूर तक फूल ही फूल और हरा भरा नज़र आए, वाटिका, चमन, बाग़
दादरा
संगीत में एक प्रकार का चलता गाना (पक्के या शास्त्रीय गानों से भिन्न), एक प्रकार का गान, एक ताल
मज़दूर
शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका कमाने वाला कोई व्यक्ति, जैसे: इमारत बनाने, कल-कारख़ानों में काम करने वाला, श्रमिक, कर्मकार, भृतक, मजूर
दूध-शरीक बहन
ऐसी बालिका जो किसी ऐसी स्त्री का दूध पीकर पली हो जिसका दूध पीकर और कोई बालिका या बालक भी पला हो, धाय संतान, दूधबहिन, दूधबहन
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"धर्मशास्त्र" से संबंधित उर्दू शब्द, परिभाषाओं, विवरणों, व्याख्याओं और वर्गीकरणों की सूची
'अक़्द-ए-मुव्वालात
(न्यायशास्त्र) किसी अज्ञात कुल के व्यक्ति का दूसरे को अपना सरदार और उत्तराधिकारि बनाने की प्रतिज्ञा और वचन
अल-मबलग़
(धर्मशास्त्र) विरासत के बंटवारे में खिंची हुई रेखाओं के साथ लिखा गया जीवित व्यक्तियों के ऊपर या नीचे छोड़ी हुई संपत्ति की मात्रा के लिए बहुत कम खिंची हुई रेखा के साथ लिखा जाने वाला वाक्य, जिसके नीचे कुल छोड़ी पूँजी लिखी जाती है
अहवत
दो या दो से अधिक वस्तुओं में जो सावधानी के निकट हो, जिसमें त्रुटि से बचने की अधिक संभावना हो,अधिक विवेकपूर्ण क्रिया
आमीन-बिस्सिर्र
नमाज़ में इमाम के सूरा हम्द पढ़ने के बाद मुक़तदियों अर्थात दुसरे नमाज़ियों का आहिस्ता से आमीन कहना (जो इमाम अबू हनीफ़ा का पंथ या मस्लक है)
आ'लम
न्यायशास्त्र के न्यायवादी जो ज्ञान, न्याय, तप और धर्मनिष्ठता में अपने समय के अन्य न्यायवादियों से श्रेष्ठ है, सबसे बड़े न्यायवादी
इसाबत-ए-हक़
(लफ़ज़न) सही नतीजे पर पहुंचना, (दीनयात) इस अमर तक ज़हन की रसाई जो शरीयत के रो से हक़ हो (ख़ित्तए इजतिहादी के बिलमुक़ाबिल), मसले में इस नतीजे तक पहुंचना जो अहकाम अलहाई के मुताबिक़ हो, जैसे : फुक़हा में ये मुस्लिम है कि असाबत-ए-हक़ पर फ़कीह को दोहरा अज्र मिलता है
'उम्रा
(विधिशास्त्र) इस्लाम में कोई चीज़ किसी को पूरी उम्र के लिए दे देना इस शर्त पे कि मरने के बाद वापस ले लूँगा
एहराम
(सूफ़ीवाद) बड़ी चादर, (प्रायः केसरी रंग की) जो सूफी, संत एवंं फक़ीर आदि आधा लुंगी के तौर पर बाँधते है तथा आधा शरीर के उपरी भाग पर लपेट लेते हैं (प्रायः वारसी अनुयायी)
काफ़िर-ए-ज़िम्मी
(फ़िक़्ह) वो काफ़िर जो हुकूमत-ए-इस्लाम को जिज़्या अदा करे और इस बिना पर हुकूमत उस के जान-ओ-माल और आबरू की ज़िम्मेदार हो
काफ़िर-ए-हर्बी
(फ़िक़ह) वह काफ़िर जिसकी वजह से धर्म के मामलों में व्यवधान उत्पन्न हो और इस आधार पर उससे लड़ना अनिवार्य हो जाए
ख़ुल'
(इस्लाम) मुसलमान स्त्री का अपने पति से तलाक़ चाहना, वो तलाक़ जो स्त्री धन या संतान देकर और मह्र माफ़ करके प्राप्त करे
ख़ियार-उल-बुलूग़
वह विकल्प और अधिकार जो लड़की को बालिग़ और वयस्क होने पर हासिल होता है कि वह वयस्क होने से पहले की अपनी शादी को रद्द करे या बाक़ी रखे
ज़वात-ए-अम्साल
(फ़िक़्ह) वो चीज़ें जिन के तलफ़ कर देने से क़ीमत की अदायगी के बजाय वैसी ही चीज़ें वापिस करना लाज़िम हो
त'अव्वुज़
(लाक्षणीक) वो काग़ज़ जिस में ख़ाना-पुरी इश्वरीय नामों की हो या कोई मंत्र लिखा हो जिसको उद्देश्श्य प्राप्ति के लिए कभी नदी में बहाते कभी चलाते कभी कुँए में डालते कभी ज़मीन में दफ़न करते हैं
तलाक़-ए-अहसन
(धर्मशास्त्र) वह तलाक़ जिसमें मर्द अपनी औरत को एक तलाक़ पाकी की हालत में दे दे जिसमें उससे संबंध ना बनाए हों और यह एक तलाक़ देकर छोड़ दे तो इद्दत ख़त्म होने के साथ निकाह टूट जाता है
तलाक़-ए-खुल'
(फ़िक़्ह) तलाक़ जिस में औरत अपने शौहर से बोजोह राज़ी ना हो और महर माफ़ कर के या कुछ और माल दे के तलाक़ ले ले
तलाक़-ए-बत्ता
(फ़िक़्ह) बाक़ौल तिरमिज़ी इख़तिलाफ़ किया है अहल-ए-इलम ने तलाक़ बता में कि हज़रत अली से मर्वी है कि वो तीन तलाक़ हैं और हज़रत अमरओ से कि वो एक तलाक़ है जबकि हज़रत रुका ना की हदीस से ये बात बातफ़ाक़ साबित है कि हज़रत रुका ना की तलाक़ को हुज़ूर सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम ने एक उस वक़्त क़रार दिया जब कि उन्हों ने हलफ़ के साथ बयान दिया कि मेरी नीयत तीन तलाक़ की नहीं थी
तलाक़-ए-बिद'अत
(धर्मशास्त्र) इस तलाक़ की तीन दशाएँ हैं; (१) माहवारी के समय तलाक़ दी हो (२) ऐसे शुद्ध समय में तलाक़ दी हो जब मिलन हो चुका था (३) तीन तलाक़ें एक साथ दे दी हों
तलाक़-ए-हसन
(धर्मशास्त्र) औरत के तीन विभिन्न मासिक धर्मों के उपरांत अलग-अलग बार तीन तलाक़ें देना, इसे तलाक़-ए-सुन्नत भी कहते हैं
तलाक़-बिल-किनायात
(फ़िक़्ह) ये तलाक़ ऐसे लफ़्ज़ से होती है कि मौज़ू तलाक़ के लिए ना हो मगर तलाक़ का एहतिमाल रखता हो, वो तलाक़ जो साफ़ लफ़्ज़ों में ना हो
नजिस-उल-'ऐन
(फ़िक़्ह) वह चीज़ जो सिर से पाँव तक अपवित्र हो, जिसका छूना भी वर्जित हो, वो चीज़ जो कभी पवित्र न हो सके जिसका हर एक अंग अपवित्र हो, जैसे, शराब, मदिरा, सूअर, अपवित्र शरीर आदि
नफ़्ली
(फ़िक़्ह) नफ़ल (रुक) से मंसूब या मुताल्लिक़ , जो फ़र्ज़ या वाजिब ना हो, रज़ाकाराना (इबादत या काम वग़ैरा)
नवाही
‘नहुइ' का बहु., वे विषय जो धर्मानुसार निषिद्ध हैं, वो कर्म, धर्म ने जिन से मना किया है, नाजायज़ काम
नहि-'अनिल-मुंकर
(मुस्लिम धर्मशास्त्र) उन चीज़ों के करने से रोकना जिनकी धर्म के विधि या नियम के अनुसार मना किया गया हो
निजासत-ए-ख़फ़ीफ़ा
(फ़िक़्ह) नजासत इहक़ीक़ी की दो किस्मों में से एक, मसलन हलाल जानवरों का पेशाब और हराम जानवरों की बैट वग़ैरा, हल्की किस्म की नजासत, ऐसी नजासत जो ग़लीज़ा ना हो
निजासत-ए-ग़लीज़ा
(फ़िक़्ह) नजासत इहक़ीक़ी की दो किस्मों में से एक, वो नापाकी जो सख़्त हो , जैसे : ख़ून, आदमी का पेशाब, पाख़ाना, मनी , शराब , स्वर का गोश्त वग़ैरा, (नजासत ख़फ़ीफ़ा के मुक़ाबिल)
बै'-ए-सलिम
(फ़िक़्ह) नर्ख़ होने के बाद कल या जुज़ु क़ीमत पहले अदा कर देने और सामान बाद में लेने का अमल
बाइन
(लफ़्ज़ा) जुदा होने की वाला, (फ़िक़्ह) की तलाक़ की एक क़िस्म जिस के बाद फिर रुजू करने की इजाज़त नहीं
मु'अक़्क़िबात
(धर्मशास्त) वह तस्बीह जो नमाज़ के बाद दुआ पूरी होने के लिए पढ़ी जाएँ; तस्बीह जो एक के बाद एक पढ़ी जाएँ जैसे: सुब्हानल्लाह अलहम्दुलिल्लाह और अल्लाहुअकबर
मकरूह-ए-तंज़ीही
(फ़िक़्ह) वो नापसंदीदा फे़अल जिस से बचने में अज्र-ओ-सवाब तो है लेकिन जो शख़्स ना बच्चे वो गुनाहगार भी नहीं, ऐसा मकरूह फे़अल जो हलाल से क़रीब हो (मकरूह तहरीमी के मुक़ाबिल)
मकरूह-ए-तहरीम
(फ़िक़्ह) वो कलिमा / बात जिस से बचना हर मुस्लमान के लिए वाजिब है, वो मकरूह फे़अल जो हराम के क़रीब हो, निहायत नाजायज़ बात या अमल
मुख़म्मसा
(फ़िक़्ह) माँ, बहन या दादा के मुताल्लिक़ तक़सीम जायदाद का मसला जिस पर पाँच सहाबा हज़रत अलेऊ, हज़रत इसमाणुओ, हज़रत इबन मसावदओ, हज़रत ज़ेदओ और हज़रत इबन अब्बास ओ में इख़तिलाफ़ था
मुग़ल्लिज़ा
(फ़िक़्ह) तलाक़ की एक क़िस्म जिस में तीनों तलाक़ें वाक़्य हो जाएं और रुजू या निकाह की गुंजाइश ना रहे, औरत अपने साबिक़ा शौहर पर सिर्फ़ हलाला की सूरत में हलाल हो सके
मुज़दल्फ़ा
एक मुक़ाम का नाम जो मक्के के क़रीब अर्फ़ात और मिना के मध्य स्थित है जहां हाजी शैतान को मारने कंकरीयां चुनते हैं
मुज़ारबत
(फिक़्ह) किसी को व्यवसाय के लिए इस शर्त पर माल देना कि लाभ में साझा रहेगा, कारोबार में ऐसी साझेदारी कि माल एक का हो और मेहनत दूसरे की
मे'राज़
(फ़िक़्ह) एक बेपर का तीर जो निशाने पर अर्ज़ से जा कर लगे तो शिकार (फ़िक़्ह में हराम और अगर उस की नोक में तेज़ी हो और नोक की जानिब से लगे तो शिकार हलाल है)
मुराहिक़ा
(फ़िक़्ह) मुराहिक़ (रुक) की तानीस, ऐसी लड़की कि इस के मिसल और औरतों से जमा हुआ हो और वो सन बलूग़ में मसलन नौ बरस या ज़्यादा की हो लेकिन अलामात बलूग़ ज़ाहिर नहीं
मुस्तलज़्ज़ात
वांछित चीज़ें जिनसे स्वाद प्राप्त हो, फ़िक़्ह: वो चीज़ें जिनसे स्वाद प्राप्त कीया जाये, वांछित चीज़ या बातें, मज़ेदार चीज़ें
मुसाफ़िहात
(धर्म शास्त्र) व्यभिचारी स्त्रियाँ, अवैध संभोग करने वाली स्त्रियाँ, खुल्लम-खुल्ला अवैध संभोग करने वाली व्यभिचारी स्त्रियाँ औरतें
मुसालिह
(फ़िक़्ह) वो वारिस या शरीक जो दीन मुश्तर्क या तर्के में से किसी शैय मालूम को लेकर अलैहदा हो जाये और दूसरे वारिस या शरीक इस पर राज़ी हूँ, सुलह करने वाला
मूसिया
वसीयत (मृत्यु से पूर्व दिया गया निर्देश) लिखने वाली स्त्री, वसीयत करने वाली औरत, मृत्यु के समय ये कहने वाली महिला कि मेरी मृत्यु के बाद ऐसा किया जाए
माल-ए-मुज़ारबत
(फ़िक़्ह) वो सामान-ए-तिजारत जो एक शख़्स दूसरे को फ़रोख़त करने के लिए दे और इस के नफ़ा में शरीक हो
मो'तक़िद
धर्म विश्वास या एतिक़ाद रखने वाला, श्रद्धालु, श्रद्धावान, मानने वाला, दिल से भरोसा रखने वाला
वसायत
शाब्दिक: जो कुछ कि आज्ञा किया गया, वसीयत, फ़िक़्ह: वकालत, अवयस्क की अभिभावकता, अभिभावक होना (शी'आ), वसी (हज़रत अली) का पद
शिर्क-ए-महज़
(फ़िक़्ह) जो मुहब्बत ख़ुदा के वास्ते लाज़िम है वो वालदैन के हक़ में मरई रखना शिर्क महिज़ है
शिरकत-ए-मुफ़ावज़ा
(फ़िक़्ह) वो हिस्सादारी जिस में दोनों शरीक माल, उम्र, हैसियत और दीन में बराबर हूँ मसलन मुस्लमान और काफ़िर, आज़ाद और ग़ुलाम में शिरकत जायज़ नहीं
शिरकत-ए-मिल्क
(फ़िक़्ह) दो शख़्स विरासत की वजह या ख़रीदारी से एक चीज़ के मालिक हो जावें और इस शिरकत में हर एक अन्न में से अजनबी होता है यानी हर एक को दूसरे के हिस्से में तसव्वुफ़ जायज़ नहीं बगै़र उस की इजाज़त के
शिरकत-ए-वुजूह
(धर्मशास्त्र) वह हिस्सेदारी जिसमें दोनों साझेदार माल क़र्ज़ के तौर पर खरीदें और बेचें और नक़द कुछ नहीं लगाएं और असल क़ीमत मालिक के हवाले करके लाभ आपस में बाँट लें और इसमें हर एक दूसरे का वकील और कफ़ील होता है
शिरकत-ए-सनाइ'
(धर्मशास्त्र) एक साझेदारी जिसमें दो कारीगर इस शर्त पर साझेदार हों कि दोनों मिलकर काम किया करें और मज़दूरी जो कुछ मिले उसको दोनों विभाजित कर लिया करें या काम दोनों बराबर करें लेकिन मज़दूरी की राशि में से एक को अधिक मिले और दूसरे को कम
सद-ए-ज़राइ'
(उसूल-ए-फ़िक़्ह) ऐसी जायज़ बातों से रोकना जिन के ज़रीये किसी नाजायज़ काम के इर्तिकाब का ख़तरा हो
सनद-ए-मनादिला
(फ़िक्ह) फ़ज़ीलत की सनद जिस के साथ दस्तार बंदी होती है, उलूम-ए-हदीस-ओ-फ़िक़्ह के हामिल के एक अह्द, दस्तार-ए-फ़ज़ीलत
सुन्नत-ए-इब्राहीमी
बक़रा'ईद पर पैग़म्बर इब्राहीम की प्रथा के अनुसार जानवर की क़ुर्बानी अर्थात बाली देना
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