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सख़ी से भेट नहीं दलिद्दर से क्यों तोड़िए
अगर ज़्यादा फ़ायदा नहीं तो थोड़ा ही सही- बड़े से मुलाक़ात ना की छोटे ही से कर ली
सख़ी से राह नहीं दलिद्दर से क्यों तोड़िए
अगर ज़्यादा फ़ायदा नहीं तो थोड़ा ही सही- बड़े से मुलाक़ात ना की छोटे ही से कर ली
सख़ी दे और शर्माए बादल बरसे और गर्माए
फ़ी्याज़ आदमी, दे कर एहसान नहीं जताता मगर बादल बरसता है और गरजता भी है, सखी की सख़ावत एहसान रखने के लिए नहीं होती
सख़ी सूम साल भर में बराबर हो जाते हैं
फ़ी्याज़ और दरिया दिल आदमी का बख़शिश-ओ-सख़ावत के ज़रीये और बख़ील आदमी का बेजा सिर्फ़ के बाइस साल भर में हिसाब बराबर हो जाता है, फ़ी्याज़ आदमी का माल सही जगह सिर्फ़ होता है और बख़ील का ग़लत जगह
सख़ी सख़ावत से फलता है 'अदू 'अदावत से जलता है
उदार व्यक्ति सदैव सुखी रहता है और शत्रु हमेशा जलता रहता है
सख़ी से राह नहीं सूम से क्यूँ तोड़ियो
अगर अच्छे से मुलाक़ात नहीं तो बुरे से विरोध नहीं कुछ तो फ़ायदा हो ही रहेगा
सख़ी देवे और शर्मावे बादल बरसे और गर्मावे
फ़ी्याज़ आदमी, दे कर एहसान नहीं जताता मगर बादल बरसता है और गरजता भी है, सखी की सख़ावत एहसान रखने के लिए नहीं होती
सख़ी देवे और शरमावे बादल बरसे और गरमावे
उदार व्यक्ति अपनी उदारता प्रकट नहीं करता, जिस तरह बादल चुपके से बारिश बरसाता है
सख़ी का सर बुलंद, मूज़ी की गोर तंग
उदार व्यक्ति का हमेशा सम्मान होता है मूज़ी हमेशा दुख एवं तकलीफ़ में होता है
सख़ी के माल पर पड़े सूम की जान पर
दानशील एवं उदार व्यक्ति के माल का नुकसान होता है और सूम अर्थात कंजूस की जान का
सख़ी के माल पर पड़े और सूम की जान पर पड़े
दानशील एवं उदार व्यक्ति के माल का नुकसान होता है और सूम अर्थात कंजूस की जान का
मेरा बाप सख़ी था पराए बर्दे आज़ाद करता था
व्यंगात्मक तौर पर शेखी बघारने वाले के संबंध में बोलते हैं जो आप तो किसी योग्य न हो और बुज़ुर्गों की बातों पर घमंड करे
साल भर में सख़ी शूम बराबर होते हैं
उदार शीघ्र, कृपण देर से ख़र्च करता है, अंत में दोनों का ख़र्च बराबर हो जाता है या निकलता है
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