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नाक न हो तो गू खाएँ

महिलाओं की निंदा में प्रयुक्त, अर्थात अगर इज़्ज़त की परवाह न हो तो ख़राब से ख़राब बैठें

नाक न हो तो गुह खाएँ

आबरू की पर्वा ना करें (औरतों की बद अकली के इज़हार के लिए मुस्तामल)

'औरत की नाक न होती तो गू खाती

औरत आधी अक़्ल होती है

आँखों में शर्म न हो तो ढेले अच्छे

ढीट होने से अच्छा है कि अंधा हो (अश्लीलता को दोष देने के स्थान पर प्रयुक्त)

क़िब्ला हो तो मुँह न करूँ

कमाल-ए-बेज़ारी ज़ाहिर करने के मौक़ा पर कहते हैं

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

अपनी गाँठ न हो पैसा तो पराया आसरा कैसा

अपने भरोसे पर काम करना चाहिए

नाक हो तो नथिया सोभे

मूल हो तो शाख़ाएँ अच्छी लगती हैं अर्थात मूल वस्तु होनी चाहिए, छोटे छोटे भाग बाद में भी मिल सकते हैं

का'बा हो तो उस की तरफ़ मुँह न करूँ

किसी जगह से इस क़दर बेज़ार और तंग होना कि अगर वो जगह मुक़ाम मुक़द्दस और ख़ुदा का घर भी बिन जाये तो उधर का रुख़ ना करना ग़रज़ निहायत बेज़ार तंग और आजिज़ हो जाने के मौक़ा पर ये फ़िक़रा बोला जाता है

अपनी मुर्ग़ी बुरी न हो तो हमसाए में अंडा क्यों दे

नुक़्सान अपने ही हाथों होता है

रंडी के नाक न होती तो वो गूह खाती फिरती

औरत बहुत बेवक़ूफ़ होती है

आगे रोक पीछे ठोक, ससुरा सरके न जाए तो क्या हो

आगे जा नहीं सकता पीछे से डंडा पड़ता है, करे तो क्या करे, जहाँ किसी ओर रास्ता न मिले तो बिना-साहस हो जाता है

अपनी नाक कटी तो कटी पराई बद-शुगूनी तो हो गई

अपना नुक़्सान या रुसवाई हुई तो क्या, दुश्मन को तो तकलीफ़ पहुँच गई

क्यों गू खाते हो

जान बूओझ कर क्यों ग़लत काम करते हो, क्यों झूओट बोलते हो

खाएँ तो घी से नहीं तो जाएँ जी से

ज़िद्दी और हटीले आदमी के मुताल्लिक़ कहते हैं, हो तो अच्छा हो नहीं तो भूका मरना मंज़ूर

गू में कौड़ी गिरे तो दाँतों से उठाए

बहुत हरीस और बख़ील आदमी की निसबत कहते हैं, बहुत कंजूस है, फ़ायदे के लिए ज़लील काम करने पर भी तैय्यार है

नमाज़ नहीं रोज़ा नहीं सहरी भी न हो तो निरे काफ़िर बन जाएँगे

अगर बहुत सा असंभव हो तो थोड़ा सा सही, ऐसे अवसर पर उपयोगित जब किसी धार्मिक शिक्षा पर प्रक्रिया अपने पक्ष में हो

गू में कौड़ी गिरी तो दाँतों से उठा लूँगा

अपना हक़ ना छोड़ोंगा, कोड़ी कोड़ी वसूल करूंगा

गू में कौड़ी गिरे तो दाँतों से उठा ले

गू में कौड़ी गिरे तो दाँतों से उठाता है

बहुत हरीस और बख़ील आदमी की निसबत कहते हैं, बहुत कंजूस है, फ़ायदे के लिए ज़लील काम करने पर भी तैय्यार है

खाएँ तो घी से नहीं जाएँ जी से

न गू में ईंट डालो, न छीटें पड़ें

ना बुरुँ से मेल जोल रखू ना तुम पर हर्फ़ आए, ना बुरुँ के मुँह लगू ना बरी बातें सुनो

रोज़े रखें न नमाज़ पढ़ें, सहरी भी न खाएं तो काफ़िर हो जाएं

गू में ढेला डालें न छींटें पड़ें

न दुष्ट या कमीने आदमी से मुक़ाबला न ज़िल्लत उठाए

आँख न नाक बन्नो चाँद सी

उस बदसूरत या कुरूप के लिए व्यंगात्मक तौर पर प्रयुक्त होता है जो अपने को सुंदर जाने

हल्क़ न तालू खाएँ मियाँ लालू

बदतमीज़ आदमी बदतमीज़ी से खाए तो कहते हैं

अंडे होंगे तो बच्चे बहुत हो रहेंगे

अस्बाब मुहय्या हूँ तो नतीजा बरामद होना भी यक़ीनी है, जड़ बुनियाद होगी तो इस पर इमारत भी तामीर होजाएगी

चूल्हे के आगे गाऊँ चक्की के आगे गाऊँ पंचों में बैठूँ तो नाक कटाऊँ

घर में शान-ओ-शौकत और बाहर ज़िल्लत

पूरी से पूरी पड़े तो सब पूरी खाएँ

फुज़ूलखर्ची से गुज़ारा नहीं होता

इतने तो नहीं हो

इस क़दर ताक़त या मुक़द्दरत नहीं है

कहाँ हो कहाँ न हो

हज़ार रंडियाँ मरें तो ऐक आया हो

(अंग्रेज़ों की)आया बहुत चालाक और उमूमन बदचलन होती है

सोने में हाथ डालूँ तो मिट्टी हो

कमाल नहूसत, बहुत बड़ी बद बुख़ती, क़िस्मत की बुराई, अदबार

मिज़ाज-ए-'आली, न तो शक न निहाली

जब कोई शख़्स मुफ़लिसी-ओ-तही दस्ती में नाज़ुक मिज़ाजी दिखाता है तो इस की निसबत तंज़न बोलते हैं मिज़ाज तो अमीराना रखते हैं मगर बिछा ने के लिए तोशक या नहा लुच्चा तक मयस्सर नहीं, ग़रीबी में अमीराना मिज़ाज रखने वाले पर तंज़न बोला जाता है

नाक तो कटी पर वो ख़ूब ही में मरी

नाक कटवा ली मगर ज़िद न छोड़ी

करो तो सवाब नहीं, न करो तो 'अज़ाब नहीं

ऐसा काम जिसके करने या न करने से न कुछ भलाई हो न बुराई, व्यर्थ काम के संबंधित कहते हैं कि उसके न करने में कोई हानि या हरज नहीं होता

नाक-कटी बला से दुशमन की बद-शुगूनी तो हुई

(सफ़र पर जाते वक़्त नकटे का मिलना मनहूस समझा जाता है) अपना नुक़्सान हुआ तो क्या दूसरों का और भी ज़्यादा हुआ

हों तो ऐसे हों

किसी की तारीफ़ के मौके़ पर कहते हैं

खाए तो पछताए, न खाए तो पछताए

ऐसी वस्तु जो वास्तव में अच्छी न हो, पर उसे अच्छी समझकर सब पाने के लिए लालायित भी हों

पश्म-कंदा न हो सकना

कुछ ना बिगड़ सकना, ज़र्रा भर नुक़्सान ना पहुंचना, कुछ ना हो सकना

मुँह पर नाक न होना

प्रतीकात्मक: निर्लज होना, बेहया होना, लज्जा, अहम, सम्मान, ख्याति आदि का ख़्याल ना होना

खाए तो मुँह लाल , न खाए तो मुँह लाल

सोने में हाथ डालो तो मिट्टी हो

कमाल नहूसत, बहुत बड़ी बद बुख़ती, क़िस्मत की बुराई, अदबार

दिल को हो क़रार तो सूझें सब त्योहार

जिसे कोई परवाह न हो वही हर बात में आनंद ले सकता है, दिल को संतोष हो तभी किसी चीज़ का मज़ा लिया जा सकता है

मिट्टी को हाथ लगाएँ तो सोना हो जाए

रुक : मिट्टी में हाथ डाले तो सोना हो जाये

आँख में शर्म हो तो जहाज़ से भारी है

लज्जा से प्रतिष्ठा होती है

माँ डाएन हो तो क्या बच्चों ही को खाएगी

बुरा इंसान भी अपनों का लिहाज़ करता है, अपनों को कोई नक्साक् नहीं पहुंचाता चाहे ग़ैरों से कैसा सुलूक करे

घर घर पीत न कीजिए तो गाँव गाँव तो कीजिए

अगर बहुत लोगों से दोस्ती नहीं होसकती तो चंद आदमीयों से ही सही

खाए तो मुँह लाल, न खाए तो मुँह लाल

इस शख़्स की निसबत बोलते जो जुर्म करे या ना करे हर हालत में इल्ज़ाम उसी पर लगाया जाये, बदनाम शख़्स कोई क़सूर करे या ना करे इल्ज़ाम उसी पर आता है

मिट्टी में हाथ डाले तो सोना हो जाए

निहायत ख़ुशनसीब है, जो काम करता है इस से बेइंतिहा नफ़ा होता या बहुत पैसा कमाता है, ख़ुशनसीब को हर काम में फ़ायदा होता है

कहीं ऐसा न हो जाए

ख़िलाफ़-ए-तवक़्क़ो बात ना हो जाये उमूमन अंदेशे के मौक़ा पर बोलते हैं

चौबे मरें तो बंदर हों, बंदर मरें तो चौबे हों

चौबे मथुरा से बाहर नहीं निकलते और वहाँ बंदर भी बहुत हुए हैं

नाक न कान नथ बालियों का अरमान

बेवक़ूफ़ी की राह से बेमहल अरमान है

हाँसी में खाँसी न हो जाए

ख़ुशी में रंज ना हो जाये

मुँह पे नाक न होना

बेग़ैरत, बेशरम होना, नंग-ओ-नामूस का ख़्याल ना होना, बेइज़्ज़त होना

मुँह पर नाक न होना

बेग़ैरत, बेशरम होना, नंग-ओ-नामूस का ख़्याल ना होना, बेइज़्ज़त होना

कहूँ तो माँ मारी जाए , न कहूँ तो बाप कुत्ता खाए

ऐसी बात जिस के बयान करने में भी मुसीबत और ज़ाहिर ना करने में भी आफ़त हो, किसी तरह चीन या छुटकारा नहीं

शेर खाए तो मुँह लाल न खाए तो मुँह लाल

बदनाम आदमी पर सब इल्ज़ाम थुप जाते हैं, बदनाम करे तो बदनाम ना करे तो बदनाम

'आशिक़ी न कीजिए तो क्या घास खोदिये

जिस ने प्रेम नहीं किया वह घसियारे के समान है

हाथ न गले नाक में प्याज़ के डले

۔मिसल।(ओ) कमज़र्फ़ और ज़रा सी चीज़ पर इतराने वाली की निसबत बोलती हैं

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में नाक न हो तो गू खाएँ के अर्थदेखिए

नाक न हो तो गू खाएँ

naak na ho to guu khaa.e.nناک نَہ ہو تو گُو کھائیں

कहावत

नाक न हो तो गू खाएँ के हिंदी अर्थ

  • महिलाओं की निंदा में प्रयुक्त, अर्थात अगर इज़्ज़त की परवाह न हो तो ख़राब से ख़राब बैठें
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ناک نَہ ہو تو گُو کھائیں کے اردو معانی

  • عورتوں کی مذمت میں مستعمل، یعنی آبرو کی پروا نہ کریں تو بدترین فعل کر گزریں

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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