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थई की थई

ढेर सारी, ढेरी की ढेरी, चिट्टे का चट्टा

मुफ़्त की ठाएं ठाएं

बे कार झगड़ा, बेफ़ाइदा झगड़ा

रोना काहे का था

किसी बात का अफ़सोस ना होता, कोई फ़िक्र ना होती, कोई परेशानी ना होती

तक़दीर का बदा यूँ ही था

इसी तरह भाग्य में लिखा था, प्रारब्ध ऐसा ही था, कर्म रेखा यही थी, यह काम ऐसे ही होना था

सुब्ह किस का मुँह देखा था

what an inauspicious day!

सुब्ह किस का मुँह देखा था

जब कोई काम बिगड़ जाये या खिलाफ-ए-मर्ज़ी हो या कोई नागहानी सदमा पहुंचे तो ये फ़िक़रा कहते हैं, मतलब ये होता है कि सुबह जागने के बाद सब से पहले किस मनहूस के चेहरे पर नज़र पड़ी थी जिस की नहूसत का ये असर हुआ है

आज सुब्ह किस का मुँह देखा था

प्रातः काल को किस अशुभ का नाम मुँह से निकला था कि दिन भर भुखा रहना पड़ा

तक़दीर का लिक्खा यूँ ही था

भाग्य का लिखा यही था, यही होना था, इसी तरह होना था, भाग्य में इसी तरह होना था

आज सुब्ह किस कंजूस का मुँह देखा था

प्रातःकाल को प्रथम बार किस अभागे का नाम मुँह से निकला था कि दिन भर भूखा रहना पड़ा

कभी धोई तिल्ली का तेल भी सर में डाला था

(शेखी ख़ोरे पर तंज़) दाया बहुत कुछ, हक़ीक़त कुछ नहीं

गुरू जो कि था वो तो गुड़ हो गया वले उस का चेला शकर हो गया

जब शागिर्द अऔसताद से बढ़ जाये उस वक़्त बोला करते हैं

आज सुब्ह किस कंजूस का नाम लिया था

प्रातःकाल को प्रथम बार किस अभागे का नाम मुँह से निकला था कि दिन भर भूखा रहना पड़ा

जोबन था जब रूप था गाहक था सब कोई, जोबन रतन गँवाए के बात न पूछे कोई

जब सुंदरता और जवानी थी हर एक चाहने वाला था जब ये जाती रही तो कोई पूछता भी नहीं

शेरशाह की दाढ़ी बड़ी थी या सलीम शाह की

बेकार बहस अथवा तकरार के अवसर पर बोलते हैं

जवानी में क्या पत्थर पड़ते थे जो बुढ़ापे को रोऊँ

सदा से यही हाल है

ऊँट दाग़े जाते थे मक्कड़ ने टाँग फैलाई कि मुझे भी दाग़ो

आला को देख कर अदना भी इन की रेस करने लगे

शोर-ओ-ग़ुल ऐसा कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई न देती थी

बहुत ज़्यादा शोर दिखाने को कहते हैं

वो दिन गए कि ख़लील ख़ाँ फ़ाख़्ता उड़ाया करते थे

वह दिन निकल गए, जब ख़लील ख़ाँ मौज करते थे

घोड़ी के लगे थे ना'ल मेंडकी बोली मेरे भी जड़ दो

बड़े आदमी की रेस में छोटे या अदना लोग भी वैसी ही आरज़ू करने लगते हैं

न कोई आता था न कोई जाता था, न कोई गोद में ले कर मुझे सुलाता था

ऐसी बात कहना जिस से हर कोई अपनी इच्छानुसार मतलब निकाल सके

दस कमाते थे बीस खाते थे बरसात के बा'द घर आते थे

बहुत फ़ुज़ूल ख़र्च करते थे

न कोई आता था घर में न कोई जाता था, न कोई गोद में ले कर मुझे सुलाता था

ऐसी बात कहना जिस से हर कोई अपनी इच्छानुसार मतलब निकाल सके

जैसे थे घर के वैसे आए डोली चढ़ के

जैसे अपने थे वैसे ही बेगाने निकले

क्या क़यामत की घड़ी थी

बहुत परेशानी का समय था, अधिक मुसीबत का वक़्त था

इस से क्या हासिल कि शेरशाह की दाढ़ी बड़ी थी या सलीम शाह की

बेकार बहस अथवा तकरार के अवसर पर बोलते हैं

ज़ालिम की रस्सी दराज़ थी

जो अत्याचार करता है उसकी आयु अधिक होती है

सत मान के बकरा लाए , कान पकड़ सर काटा , पूजा थी सो मालन ले गई , मूरत को धर चाटा

जो भेंट की बुत पर चढ़ाते हैं वो कमीने लोग खा जाते हैं

नैना तोहे पटक दूँ दो टोक टोक हो जाए, पहले मुँह लगाए के पीछे अलग हो जाए

ए आँखों तुम्हें फेंक कर दो टुकड़े कुर्दों क्योंकि तुम पहले तो इशक़ पैदा करती हो फिर अलग हो जाती हो

गीदड़ उछ्ला उछ्ला जब अंगूर के ख़ोशे तक न पहुँचा तो कहा अख़ थू

बहुतेरी तदबीर की जब एक ना चली तो दूसरों ही का क़सूर बताया जब कोई तदबीर बिन नहीं पड़ती तो अपनी शर्मिंदगी मिटाने को दूसरों का क़सूर बताते हैं

हाथ उठा-उठा के दु'आ देना

बहुत ईमानदारी और जज़्बे के साथ आसमान की ओर हाथ उठाकर दुआ करना

ज़ुलैख़ा तो सारी पढ़ गए पर ये न जाना कि वो 'औरत थी या मर्द

किसी बात या घटना को प्रारंभ से अंत तक सुनना या पढ़ना किन्तु इस पर बिल्कुल ध्यान न देना

वो दिन गए कि ख़लील ख़ाँ फ़ाख़्ता मारा करते थे

भाग्यशाली का ज़माना गुज़र गया, वह दिन नही रहे, वह युग नही रहा

आई थी आग को रह गई रात को

बद चलन है, अनैतिकता के लिए ज़रा सा बहाना काफ़ी है

दरख़्त बोए थे आम के , हो गए बबूल

जब नफ़ाह की उम्मीद पर काम करने से नुक़्सान होजाए तो कहते हैं

मछ्ली का खाना हर निवाले थू

बह मजबूरी कोई नागवार काम करने के मौक़ा पर कहते हैं

वो दिन गुज़र गए कि पसीना गुलाब था

अर्थात हमारे वैभव का समय अब नहीं रहा, पहले हमारे पसीने को भी गुलाब समझा जाता था,अब वह बात कहाँ

इस से क्या हासिल कि शाह जहाँ की दाढ़ी बड़ी थी या 'आलम-गीर की

अत्यधिक वाद विवाद व्यर्थ होता है, अनावश्यक चर्चा से क्या लाभ

जिस टहनी पर बैठें उसी की जड़ काटें

जिस से फ़ायदा उठाएं उसी की बदख़वाही करें

आधे का तिहाई

(शाब्दिक) आधे का तीसरा भाग अर्थात पूर्ण का छटा भाग

आधे का तीहा होना

नष्ट हो जाना

आधे का तीहा

(शाब्दिक) आधे का तिहाई, छट्टा भाग

आधे का तिहाई करना

काटकर फांसी देना, टुकड़े टुकड़े करना, बर्बाद करना

इसी दिन को पाला था

अपने छोटे या बड़े बच्चों के आशा के विपरीत काम करने पर इस्तेमाल किया जाता है, समानार्थी: ऐसा करने के लिए, इस प्रकार के काम के लिए

मिट्टी की थूई

मूर्ख, बेवक़ूफ़, मंदबुद्धि, अल्पबुद्धि, कम-अक़्ल

आप को हप हप और को थू थू

यह किसी की आत्म-मुग्धता पर बोलते हैं

कभी तो हमारे भी कोई थे

पुराना संबंध भुला दिया

आई थी आग लेने बन गई घर की मालिक

اس عورت کے متعلق کہتے ہیں جو بہانہ سے کسی کے گھر میں داخلہ کر کے مالک سے شادی کر لے

आते का मुँह देखती थी जाते की पीठ

प्रतीक्षा की बेताबी ज़ाहिर करने के अवसर पर प्रयुक्त

नसीब के बलिया , पकाई थी खीर हो गया दलिया

किसी काम के बिगड़ जाने पर कहते हैं

सारी रामायण पढ़ गए सुन के पूछा सीता किस की जोरू थी

रुक : सारी ज़ुलेख़ा सुन ली और ना मालूम हुआ कि ज़ुलेख़ा औरत थी या मर्द

आँख में थी शर्म दिल की थी नर्म

महिलाएँ व्यंगात्मक तौर पर उस जगह कहती हैं जहाँ न मानने वाली बात कोई मुरव्वत और पास एवं लिहाज़ के कारण मान ले

तिहाई की डाट

(معماری) گول یعنی ادھے کی ڈاٹ کی قسم جس کی گولائی دائرے کی ایک تہائی قوس کے برابر ہو.

सुब्ह किस की शक्ल देखी थी

जब कोई काम बिगड़ जाये या खिलाफ-ए-मर्ज़ी हो या कोई नागहानी सदमा पहुंचे तो ये फ़िक़रा कहते हैं, मतलब ये होता है कि सुबह जागने के बाद सब से पहले किस मनहूस के चेहरे पर नज़र पड़ी थी जिस की नहूसत का ये असर हुआ है

काैवा हँत के चाल सीखता था अपनी चाल भी भूल गया

रुक : को्वा चला हंस की चाल अलख

जुलाहे को लगा था तीर ख़ुदा भली करे

ऐसे मौक़ा पर बोलते हैं जब कोई अमर बी्यन में इख़फ़ा करना चाहे

किस काम को निकला था

जब ग़फ़लत या भूल या बीख़ोदी के सबब अपने असल मक़सूद को भूल कर आदमी दूसरा काम कर बैठता है तो अफ़सोस के साथ ये कलिमा ज़बान पर लाता है

आप को हप हप और को आख़ थू

यह किसी की आत्म-मुग्धता पर बोलते हैं

मेरे उस के जो होना था सो हो गया

संभोग की सहमति हो गई

तुमहारी ओर को आँख लगी हूई थी

तुम से उम्मीद बंधी थी, तुम ही से आस लगी हुई थी

भरा कनाला छाने थी, फागुन को नहीं जाने थी

आरंभ में जो इतना व्यय किया ऐसे दिनों की आशा न थी

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में अलबत्ता के अर्थदेखिए

अलबत्ता

albattaاَلبَتَّہ

स्रोत: अरबी

वज़्न : 222

अलबत्ता के हिंदी अर्थ

क्रिया-विशेषण

समुच्चयबोधक

शे'र

English meaning of albatta

Adverb

Conjunction

اَلبَتَّہ کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

فعل متعلق

  • یقیناً، قطعی طور پر، بے شک، ضرور، یقین ہے کہ، لیکن، مگر، اتنا ضروری ہے

حرف عطف

  • لیکن، مگر، البتہ

Urdu meaning of albatta

  • Roman
  • Urdu

  • yaqiinan, qati.i taur par, beshak, zaruur, yaqiin hai ki, lekin, magar, itnaa zaruurii hai
  • lekin, magar, albatta

खोजे गए शब्द से संबंधित

थई की थई

ढेर सारी, ढेरी की ढेरी, चिट्टे का चट्टा

मुफ़्त की ठाएं ठाएं

बे कार झगड़ा, बेफ़ाइदा झगड़ा

रोना काहे का था

किसी बात का अफ़सोस ना होता, कोई फ़िक्र ना होती, कोई परेशानी ना होती

तक़दीर का बदा यूँ ही था

इसी तरह भाग्य में लिखा था, प्रारब्ध ऐसा ही था, कर्म रेखा यही थी, यह काम ऐसे ही होना था

सुब्ह किस का मुँह देखा था

what an inauspicious day!

सुब्ह किस का मुँह देखा था

जब कोई काम बिगड़ जाये या खिलाफ-ए-मर्ज़ी हो या कोई नागहानी सदमा पहुंचे तो ये फ़िक़रा कहते हैं, मतलब ये होता है कि सुबह जागने के बाद सब से पहले किस मनहूस के चेहरे पर नज़र पड़ी थी जिस की नहूसत का ये असर हुआ है

आज सुब्ह किस का मुँह देखा था

प्रातः काल को किस अशुभ का नाम मुँह से निकला था कि दिन भर भुखा रहना पड़ा

तक़दीर का लिक्खा यूँ ही था

भाग्य का लिखा यही था, यही होना था, इसी तरह होना था, भाग्य में इसी तरह होना था

आज सुब्ह किस कंजूस का मुँह देखा था

प्रातःकाल को प्रथम बार किस अभागे का नाम मुँह से निकला था कि दिन भर भूखा रहना पड़ा

कभी धोई तिल्ली का तेल भी सर में डाला था

(शेखी ख़ोरे पर तंज़) दाया बहुत कुछ, हक़ीक़त कुछ नहीं

गुरू जो कि था वो तो गुड़ हो गया वले उस का चेला शकर हो गया

जब शागिर्द अऔसताद से बढ़ जाये उस वक़्त बोला करते हैं

आज सुब्ह किस कंजूस का नाम लिया था

प्रातःकाल को प्रथम बार किस अभागे का नाम मुँह से निकला था कि दिन भर भूखा रहना पड़ा

जोबन था जब रूप था गाहक था सब कोई, जोबन रतन गँवाए के बात न पूछे कोई

जब सुंदरता और जवानी थी हर एक चाहने वाला था जब ये जाती रही तो कोई पूछता भी नहीं

शेरशाह की दाढ़ी बड़ी थी या सलीम शाह की

बेकार बहस अथवा तकरार के अवसर पर बोलते हैं

जवानी में क्या पत्थर पड़ते थे जो बुढ़ापे को रोऊँ

सदा से यही हाल है

ऊँट दाग़े जाते थे मक्कड़ ने टाँग फैलाई कि मुझे भी दाग़ो

आला को देख कर अदना भी इन की रेस करने लगे

शोर-ओ-ग़ुल ऐसा कि कान पड़ी आवाज़ सुनाई न देती थी

बहुत ज़्यादा शोर दिखाने को कहते हैं

वो दिन गए कि ख़लील ख़ाँ फ़ाख़्ता उड़ाया करते थे

वह दिन निकल गए, जब ख़लील ख़ाँ मौज करते थे

घोड़ी के लगे थे ना'ल मेंडकी बोली मेरे भी जड़ दो

बड़े आदमी की रेस में छोटे या अदना लोग भी वैसी ही आरज़ू करने लगते हैं

न कोई आता था न कोई जाता था, न कोई गोद में ले कर मुझे सुलाता था

ऐसी बात कहना जिस से हर कोई अपनी इच्छानुसार मतलब निकाल सके

दस कमाते थे बीस खाते थे बरसात के बा'द घर आते थे

बहुत फ़ुज़ूल ख़र्च करते थे

न कोई आता था घर में न कोई जाता था, न कोई गोद में ले कर मुझे सुलाता था

ऐसी बात कहना जिस से हर कोई अपनी इच्छानुसार मतलब निकाल सके

जैसे थे घर के वैसे आए डोली चढ़ के

जैसे अपने थे वैसे ही बेगाने निकले

क्या क़यामत की घड़ी थी

बहुत परेशानी का समय था, अधिक मुसीबत का वक़्त था

इस से क्या हासिल कि शेरशाह की दाढ़ी बड़ी थी या सलीम शाह की

बेकार बहस अथवा तकरार के अवसर पर बोलते हैं

ज़ालिम की रस्सी दराज़ थी

जो अत्याचार करता है उसकी आयु अधिक होती है

सत मान के बकरा लाए , कान पकड़ सर काटा , पूजा थी सो मालन ले गई , मूरत को धर चाटा

जो भेंट की बुत पर चढ़ाते हैं वो कमीने लोग खा जाते हैं

नैना तोहे पटक दूँ दो टोक टोक हो जाए, पहले मुँह लगाए के पीछे अलग हो जाए

ए आँखों तुम्हें फेंक कर दो टुकड़े कुर्दों क्योंकि तुम पहले तो इशक़ पैदा करती हो फिर अलग हो जाती हो

गीदड़ उछ्ला उछ्ला जब अंगूर के ख़ोशे तक न पहुँचा तो कहा अख़ थू

बहुतेरी तदबीर की जब एक ना चली तो दूसरों ही का क़सूर बताया जब कोई तदबीर बिन नहीं पड़ती तो अपनी शर्मिंदगी मिटाने को दूसरों का क़सूर बताते हैं

हाथ उठा-उठा के दु'आ देना

बहुत ईमानदारी और जज़्बे के साथ आसमान की ओर हाथ उठाकर दुआ करना

ज़ुलैख़ा तो सारी पढ़ गए पर ये न जाना कि वो 'औरत थी या मर्द

किसी बात या घटना को प्रारंभ से अंत तक सुनना या पढ़ना किन्तु इस पर बिल्कुल ध्यान न देना

वो दिन गए कि ख़लील ख़ाँ फ़ाख़्ता मारा करते थे

भाग्यशाली का ज़माना गुज़र गया, वह दिन नही रहे, वह युग नही रहा

आई थी आग को रह गई रात को

बद चलन है, अनैतिकता के लिए ज़रा सा बहाना काफ़ी है

दरख़्त बोए थे आम के , हो गए बबूल

जब नफ़ाह की उम्मीद पर काम करने से नुक़्सान होजाए तो कहते हैं

मछ्ली का खाना हर निवाले थू

बह मजबूरी कोई नागवार काम करने के मौक़ा पर कहते हैं

वो दिन गुज़र गए कि पसीना गुलाब था

अर्थात हमारे वैभव का समय अब नहीं रहा, पहले हमारे पसीने को भी गुलाब समझा जाता था,अब वह बात कहाँ

इस से क्या हासिल कि शाह जहाँ की दाढ़ी बड़ी थी या 'आलम-गीर की

अत्यधिक वाद विवाद व्यर्थ होता है, अनावश्यक चर्चा से क्या लाभ

जिस टहनी पर बैठें उसी की जड़ काटें

जिस से फ़ायदा उठाएं उसी की बदख़वाही करें

आधे का तिहाई

(शाब्दिक) आधे का तीसरा भाग अर्थात पूर्ण का छटा भाग

आधे का तीहा होना

नष्ट हो जाना

आधे का तीहा

(शाब्दिक) आधे का तिहाई, छट्टा भाग

आधे का तिहाई करना

काटकर फांसी देना, टुकड़े टुकड़े करना, बर्बाद करना

इसी दिन को पाला था

अपने छोटे या बड़े बच्चों के आशा के विपरीत काम करने पर इस्तेमाल किया जाता है, समानार्थी: ऐसा करने के लिए, इस प्रकार के काम के लिए

मिट्टी की थूई

मूर्ख, बेवक़ूफ़, मंदबुद्धि, अल्पबुद्धि, कम-अक़्ल

आप को हप हप और को थू थू

यह किसी की आत्म-मुग्धता पर बोलते हैं

कभी तो हमारे भी कोई थे

पुराना संबंध भुला दिया

आई थी आग लेने बन गई घर की मालिक

اس عورت کے متعلق کہتے ہیں جو بہانہ سے کسی کے گھر میں داخلہ کر کے مالک سے شادی کر لے

आते का मुँह देखती थी जाते की पीठ

प्रतीक्षा की बेताबी ज़ाहिर करने के अवसर पर प्रयुक्त

नसीब के बलिया , पकाई थी खीर हो गया दलिया

किसी काम के बिगड़ जाने पर कहते हैं

सारी रामायण पढ़ गए सुन के पूछा सीता किस की जोरू थी

रुक : सारी ज़ुलेख़ा सुन ली और ना मालूम हुआ कि ज़ुलेख़ा औरत थी या मर्द

आँख में थी शर्म दिल की थी नर्म

महिलाएँ व्यंगात्मक तौर पर उस जगह कहती हैं जहाँ न मानने वाली बात कोई मुरव्वत और पास एवं लिहाज़ के कारण मान ले

तिहाई की डाट

(معماری) گول یعنی ادھے کی ڈاٹ کی قسم جس کی گولائی دائرے کی ایک تہائی قوس کے برابر ہو.

सुब्ह किस की शक्ल देखी थी

जब कोई काम बिगड़ जाये या खिलाफ-ए-मर्ज़ी हो या कोई नागहानी सदमा पहुंचे तो ये फ़िक़रा कहते हैं, मतलब ये होता है कि सुबह जागने के बाद सब से पहले किस मनहूस के चेहरे पर नज़र पड़ी थी जिस की नहूसत का ये असर हुआ है

काैवा हँत के चाल सीखता था अपनी चाल भी भूल गया

रुक : को्वा चला हंस की चाल अलख

जुलाहे को लगा था तीर ख़ुदा भली करे

ऐसे मौक़ा पर बोलते हैं जब कोई अमर बी्यन में इख़फ़ा करना चाहे

किस काम को निकला था

जब ग़फ़लत या भूल या बीख़ोदी के सबब अपने असल मक़सूद को भूल कर आदमी दूसरा काम कर बैठता है तो अफ़सोस के साथ ये कलिमा ज़बान पर लाता है

आप को हप हप और को आख़ थू

यह किसी की आत्म-मुग्धता पर बोलते हैं

मेरे उस के जो होना था सो हो गया

संभोग की सहमति हो गई

तुमहारी ओर को आँख लगी हूई थी

तुम से उम्मीद बंधी थी, तुम ही से आस लगी हुई थी

भरा कनाला छाने थी, फागुन को नहीं जाने थी

आरंभ में जो इतना व्यय किया ऐसे दिनों की आशा न थी

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