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अफ़लातून के नाती बने फिरते हैं

अपनी बुद्धि पर बड़ा घमंड करते हैं, बड़े अहंकारी हैं

तीस-मार-ख़ान बने फिरते हैं

बड़ी बहादुरी दिखाते हैं, बेकार में अकड़े फिरते हैं

बने हुए हैं

मसखरे हैं

बारह बरस के बा'द घूरे के भी दिन फिरते हैं

सर से कफ़न बाँधे फिरते हैं

सौ बरस बा'द कूड़े घूरे के दिन भी बहोरते फिरते हैं

कोई शैय सदा एक हाल पर नहीं रहती, बुरे दिनों के बाद भले दिन भी आते हैं

रईस की दुम बने हैं

बड़े रईस बने हैं गुस्से के मौक़ा पर बोलते हैं

कभी घूरे के दिन भी फिरते हैं

ज़माना बदलता रहता है, कभी ग़रीबों और कमज़ोरों का ज़माना भी बदल जाता है, उन के भी अच्छे दिन आ जाते हैं, ग़रीब और कमज़ोर हमेशा ग़रीब कमज़ोर नहीं रहते, बारह बरस में घूरे के भी दिन फिर जाते हैं

बने बैठे हैं

शक्ल बनाए है, सूरत बनाए है

शेरों के शेर हैं

बहुत ज़्यादा बहादुर, बहुत जरी

तुम तो 'अक़्ल के पीछे लठ लिये फिरते हो

कोई बेवक़ूफ़ी या नुक़्सान का काम करे तो कहते हैं

पर कट गए दुम झड़ गई फिरते हैं लंडूरे

बिलकुल बे सर्व सामां हो जाने के मौक़ा पर बोलते हैं

जैसे बने तैसे

जैसे भी हो इसी तरह, जिस तरह बिन पड़े

साईं के खेल हैं

कुदरत के करिश्मे हैं

कहाँ के हैं

कौन सी सरज़मीन और कौन से मुल॒क के रहने वाले हैं, किस मख़फ़ी शहर के हैं, ऐसे कौन हैं

बारह बरस बा'द कूड़े के भी दिन फिरते हैं

रुक : बारह बरस के बाद ख़ोरे के भी दिन फिरते हैं

तमा' के तीन हर्फ़ हैं और तीनों ख़ाली हैं

लोभ में कुछ नहीं रखा

असल के असल होते हैं

भले आदमी की संतान भली होती है, अच्छे कुल में अच्छे ही पैदा होते हैं

ज़ाहिर के रंग ढंग हैं

रयाकारी और दिखावे की बातें हैं

कहाँ से रंगा के आए हैं

(तंज़न) आप में कौनसी ख़ूबी है

सूँठ बने बैठना

ख़ामोशी इख़तियार करना, लाताल्लुक़ रहना

सिपाह-गरी के तीस फ़न हैं

सैनिक बनना बहुत कठिन है

क्या आसमाँ के तारे हैं

कोई ऐसी दुनिया से निराली या नायाब चीज़ नहीं

कहाँ के तीस मार ख़ाँ हैं

कहाँ के ज़बरदस्त दिलावर हैं

काल के मुँह में सब हैं

सब को मौत आकर रहती है

जनम के साथी हैं कर्म के साथी नहीं

गो एक ही वक़्त पैदा होने हैं मगर क़िस्मत एक जैसी नहीं

क़ब्र का मुँह झाँक कर आए हैं, मर के बचे हैं

मौत के मुँह से बचकर आए हैं, मुश्किल से जान बची है

यहाँ फ़रिश्तों के पर जलते हैं

यानी यहां कोई नहीं आ सकता, उस जगह किसी की रसाई और पहुंच नहीं है, यहां परिंदा पर नहीं मार सकता , बड़े अदब का मुक़ाम है (जहां निहायत एहतियात या कमाल-ओ-जलाल हो वहां ये बोला जाता है

किस सटर-पटर में फिरते हो

किस फ़िक्र में चक्कर लगा रहे हो, किस सोच बिचार और फिक्रो तरद्दुद में हो

जैसे बने

जिस तरह भी संभव हो, जिस तरह भी मुम्किन हो, जैसे हो सके

जब च्यूँटी के मरने के दिन क़रीब आते हैं तो उस के पर निकलते हैं

आदमी ख़ुद अपनी मुसीबत को दावत देता है, ऐसा काम करने के मौक़ा पर बोलते हैं जिस का अंजाम ख़राबी हो

साँप के पाँव शिकम में होते हैं

शरीर कितना भोला नज़र आए, इस के दिल में शरारत होती है, बदज़ात की बदी ज़ाहिर नहीं होती

साँप के पाँव पेट में होते हैं

खिलंडरा व्यक्ति कितना भी भोला नज़र आए उस के दिल में खिलंडरापन अवश्य होता है, दुष्टाचारी व्यक्ति की दुष्टता उजागर नहीं होती

एक तरकश के तीर हैं

सब एक से हैं, एक घराने एवं परिवार के हैं

लाला के नौकर हैं भाँड के नौकर नहीं

आक़ा के कलाम की ताईद और फ़र्मांबरदारी मुक़द्दम है

उसके देने के हज़ारों हाथ हैं

रोज़ी का एक द्वार बंद हो तो ईश्वर सत्तर द्वार खोल देता है, वह किसी न किसी तरह मनुष्य को ज़रूर रोटी-रोज़ी पहुँचाता है

माँ बाप जनम के साथी हैं, कर्म के नहीं

माँ बाप ज़िंदगी में साथ देते हैं आख़िरत में कोई काम नहीं आता

दिवानों के क्या सर सींग होते हैं

बेवक़ूफ़ हो, यानी तुम्हारे सड़ी या सौदाई होने में कोई शक नहीं

झोंके नींद के सूली पर आते हैं

नेन् के वक़्त नेन् पर हाल में आती है

देने के हज़ारों हाथ हैं

पिटारी में बंद रखने के क़ाबिल हैं

(तंज़न) नादिर, अजीब, अजीब-ओ-ग़रीब

घी के से घूँट आते हैं

बहुत घी पड़ा हुआ है, घी की बोहतात व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त

चलते-फिरते

चलने-फिरने वाले, उठने-फिरने के काबिल, सेहतमंद, स्वस्थ

कहीं कव्वों के कोसे से ढोर मरते हैं

किसी के बुरा चाहने से बुरा नहीं होता

गंजिफ़े के तीनों खिलाड़ी रोते हैं

गंजिफ़े का हर एक खिलाड़ी नुक़्सान में रहता है, हर एक शिकायत करता है कि उस के पत्ते अच्छे नहीं

गोती नाती, क़लिया चपाती

क़िराबती मेहमान की तवाज़ो को कुल्लिया चपाती काफ़ी है तकल्लुफ़ की हाजत नहीं

यहाँ फ़रिश्ते के पर जलते हैं

यानी यहां कोई नहीं आ सकता, उस जगह किसी की रसाई और पहुंच नहीं है, यहां परिंदा पर नहीं मार सकता , बड़े अदब का मुक़ाम है (जहां निहायत एहतियात या कमाल-ओ-जलाल हो वहां ये बोला जाता है

कैसी बने

कैसा मामलाम सामना आए, कैसे मामला ठीक हो

सब अपनी गों के यार होते हैं

सब अपने मतलब के होते हैं

कूट कूट के ख़ूबियाँ भरी हैं

(व्यंगात्मक) बहुत ऐब हैं, हज्व, अधिक ख़राबी हैं, दिखावे की प्रशंसा

आग के आगे सब भसम हैं

आग के उगे जो चीज़ आ जाएगी जल कर रहेगी

चार पैसे के सारे खेल हैं

नमूद-ओ-नुमाइश ऐश-ओ-इशरत धूम धड़का माल-ओ-दौलत के बलबूते पर होता है

दिखाने के दाँत हैं

नुमाइशी बातें हैं

जहाँ तक बने

(ये फ़िक़रा थोड़े से रद्द-ओ-बदल के साथ भी मुस्तामल है जैसे : जहां तक बिन पड़े या बिन सके या बनेगा, और इसी तरह जहां तक हो सके या होगा) जितना मुम्किन होगा, जब तक मुम्किन हो, अपने मक़दूर तक

दीवानों के सर पर क्या सींग होते हैं

दीवाने भी दूसरे लोगों की तरह होते हैं

च्यूँटी के पर निकले हैं

जब कमज़र्फ़ आदमी बहुत शेखी मारता है तो उस वक़्त कहते हैं यानी शामत के दिन मौत का वक़्त क़रीब आगया है

वहाँ फ़रिश्तों के भी पर जलते हैं

इस जगह कोई नहीं जा सकता, उन का इतना रोब है कि वहां जाने की कोई जुर्रत नहीं करसकता

क़ुदरत के 'अजब खेल हैं

प्रकृति के चमत्कार देख कर आश्चर्य होता है, क़ुदरत के करिश्मे देख कर ताज्जुब होता है

सब दिन ख़ुदा के हैं

जब सौभाग्य और दुर्भाग्य को किसी विशेष दिन से निर्धारित करते हैं तब कहते हैं

सत्तर पूत बहत्तर नाती

बहुत ज़्यादा रिश्तेदार होने या भारी ईआलदारी के मौक़ा पर कहते हैं

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में अफ़लातून के नाती बने फिरते हैं के अर्थदेखिए

अफ़लातून के नाती बने फिरते हैं

aflaatuun ke naatii bane phirte hai.nافلاطون کے ناتی بنے پھرتے ہیں

अथवा - अफ़लातून के नाती

कहावत

अफ़लातून के नाती बने फिरते हैं के हिंदी अर्थ

  • अपनी बुद्धि पर बड़ा घमंड करते हैं, बड़े अहंकारी हैं
  • अपने को बड़ा बुद्धिमान समझते हैं

    विशेष - अफ़लातून या प्लेटो प्राचीन यूनान का प्रसिद्ध दार्शनिक हुआ है।

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افلاطون کے ناتی بنے پھرتے ہیں کے اردو معانی

  • اپنی عقل پر بڑا گھمنڈ کرتے ہیں، بڑے مغرور ہیں
  • اپنے کو بڑا عقلمند سمجھتے ہیں

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अफ़लातून के नाती बने फिरते हैं

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