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आँख सी भी कभी देखी है

ख़ैर! तुम इस चीज़ का महत्व क्या जानो! तुम्हें कभी उप्लब्ध भी हुई है?

साँप का सर भी कभी काम आता है

कोई चीज़ ज़ाए नहीं करनी चाहिए . कभी ना कभी काम आजाती है, दाश्ता आबिद बिकार, गरचा बूद सर मार

ये जूती भी देखी है

जूते से पिटाई होगी, धमकी के लिए बोला जाता है

क़ज़ा भी कभी टलती है

कभी घूरे के दिन भी फिरते हैं

ज़माना बदलता रहता है, कभी ग़रीबों और कमज़ोरों का ज़माना भी बदल जाता है, उन के भी अच्छे दिन आ जाते हैं, ग़रीब और कमज़ोर हमेशा ग़रीब कमज़ोर नहीं रहते, बारह बरस में घूरे के भी दिन फिर जाते हैं

तुम्हारे लड़के भी कभी पाँव चलेंगे

(ओ) तुम भी कभी सच्च बोलोगे और राह पर आवगे , तुम्हारा मिज़ाज भी कभी रास्ती पर आएगा

आँखें देखी हैं

संगत उठाई है, परवरिश पाई है

आँख न नाक बन्नो चाँद सी

उस बदसूरत या कुरूप के लिए व्यंगात्मक तौर पर प्रयुक्त होता है जो अपने को सुंदर जाने

नाम हीरा मल-दमक कंकर सी भी नहीं

नाम अच्छा है मगर गुण अच्छे नहीं हैं, नाम बड़ा और दर्शन छोटे

कभी धोई तिल्ली का तेल भी सर में डाला था

(शेखी ख़ोरे पर तंज़) दाया बहुत कुछ, हक़ीक़त कुछ नहीं

चार बरसातें ज़्यादा देखी हैं

उम्र में या तजुर्बे में ज़्यादा हूँ, किसी क़दर ज़्यादा तजरबाकार है, ज़्यादा जहां दीदा-ओ-सन रसीदा है

आँख फेरे तोते की सी, बात करै मैना की सी

बात करने में मीठा पर बेमुरव्वत

एक आँख मटर का बिया, वह भी आँख भवानी लिया

हानि पर हानि होना

यूँ भी है और यूँ भी

इस तरह भी है इस तरह भी (ज़ौ मानी बात कहने के मौक़ा पर मुस्तामल)

मैं ने चार बरसातें ज़्यादा देखी हैं

यानी में तुम से ज़्यादा उम्र रसीदा और ज़्यादा तजरबाकार हूँ

बिगड़ा बेटा , खोटा पैसा कभी न कभी काम आ ही जाता है

अपनी चीज़ कैसी ही ख़राब हूक़सी ना किसी वक़्त ज़रूरत में का दे जाती है

देखी हुई हैं

शनासा हैं, आज़मूदा हैं, जानी पहचानी हैं

तुम्हारे नोते कभी अघाते हैं

तुम्हारा वाअदा कभी पूरा नहीं होता

ब्याह नहीं किया बरात तो देखी है

ख़ुद किसी काम को नहीं किया, मगर दूसरों के हाँ होते तो देखा है जिस की बना पर इस का तजुर्बा है

बियाह नहीं किया बारात तो देखी है

कानों की सुनी कहते हैं आँखों की देखी कहते नहीं

सुनी सुनाई पर यक़ीन कर लेने और सुनी सुनाई बात को आगे बढ़ाने के अवसर पर बोलते हैं

आप से चार बर सातें मैं ने ज़्यादा देखी हैं

मैं आपसे ज़्यादा अनुभवी और परिपक्व हूँ, में आप से ज़्यादा उन चालों को समझता हूँ

जहाँ गुल है वहाँ ख़ार भी है

राहत के साथ तकलीफ़ और ख़ुशी के साथ रंज लगा हुआ है , दोस्त-ओ-दुश्मन हर जगह हुआ कुत्ते हैं

ब्याह नहीं किया बरात तो देखी हैं

ख़ुद किसी काम को नहीं किया, मगर दूसरों के हाँ होते तो देखा है जिस की बना पर इस का तजुर्बा है

कल किस ने देखी है

देर न करो, स्पष्ट नहीं कल क्या हो, कल क्या हो कौन जानता है, इसलिए जो करना है उसे आज ही कर डालो, भविष्य का ज्ञान नहीं है, इसलिए वर्तमान को ही सब कुछ समझो

कौन सी हदीस में आया है

किसी क़ाअदे और क़ानून से जायज़ है यानी ये बात दरुस्त नहीं

कहीं ओस से भी प्यास बुझी है

चीज़ ज़रूरत के मुताबिक़ होनी चाहिए, ज़्यादा की ज़रूरत को थोड़ी चीज़ पूरा नहीं करसकती

कहीं ओस से भी प्यास बुझती है

चीज़ ज़रूरत के मुताबिक़ होनी चाहिए, ज़्यादा की ज़रूरत को थोड़ी चीज़ पूरा नहीं करसकती

कहीं हथेली पर भी सरसों जमती है

कौन सी किशमिश है जिस में डंडी नहीं

कोई ऐब से ख़ाली नहीं, कोई ना कोई इल्लत हर एक के साथ लगी होती है, हर शख़्स में कोई ना कोई ख़ामी ज़रूर होती है

'आजिज़ी ख़ुदा को भी पसंद है

हमाहमी मुँह में भी ज़बान है

रुक : हमारे भी मुँह में ज़बान है , हम भी इस सवाल का जवाब दे सकते हैं, हम भी बात करने की क़ुदरत रखते हैं

हमारा मुँह में भी ज़बान है

हम भी इस सवाल का जवाब दे सकते हैं, हम भी बात करने की क़ुदरत रखते हैं

हमाहमी भी मुँह में ज़बान है

हमें भी जवाब देना आता है , रुक : हमारे मुँह में भी ज़बान है

कुछ बसंत की भी ख़बर है

दुनिया की स्थितियों से भी कुछ सूचित हैं, सावधान करने के लिए बोलते हैं

ये ज़ाहिद-ए-मक्कार इधर भी है उधर भी है

ज़ाहिर में इबादतगुज़ार लेकिन दरपर्दा मक्कार है

नींद सूली पर भी आती है

नींद एक फ़ित्री अमल है जो हर हालत में आ जाती है , आदत कभी नहीं रुकती

सूली पर भी नींद आती है

बुलबुलों की सी लड़ाई है

किसी लालच पर लड़ते हैं, बुलबुल गूंदनी पर लड़ते हैं

जुनून में भी लुत्फ़ है

हम भी हैं वो भी हैं

हमारा उन का मुक़ाबला है देखें कौन बढ़ता है

है हुवाए कुछ भी नहीं

बिलकुल नादार है, बिलकुल मुफ़लिस है

ये भी हो सकता है

यह भी संभव है, इस का भी संभावना है

यूँ भी होता है

यूँ भी है, ऐसे भी होता है, इस तरह भी होता है

नींद सूली पर भी आ जाती है

नींद एक फ़ित्री अमल है जो हर हालत में आ जाती है , आदत कभी नहीं रुकती

सूली पर भी नींद आ जाती है

ख़ुदा लगती कोई नहीं कहता , मुँह देखी सब कहते हैं

अभी सेर में से पौनी भी नहीं कती है

अभी काम का आरंभ है

वो कौन सी किश्मिश है जिस में तिनका नहीं

हर चीज़ में कोई ना कोई नुक़्स होता है, कोई चीज़ ऐब से ख़ाली नहीं

हजाम का उस्तुरा मेरे सर पर भी फिरता है , तुम्हारे सर पर भी

में और तुम एक जैसे हैं, सब लोग एक जैसे हैं, यकसाँ बरताओ के मौक़ा पर मुस्तामल

आँखों-देखी

आंखों देखा का स्त्रीलिंग, स्वयं अनुभव की हुई, अपनी आँखों से देखी हुई

मुँह देखी सब कहते हैं, ख़ुदा लगती कोई नहीं कहता

सब ख़ुशामद और तरफदारी की बात करते हैं सच्च और इंसाफ़ की कोई नहीं कहता

गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है

नक्टों में एक नाक वाला भी नाकू होता है

बहुत से बे हुनरों में एक हुनरवर भी अंगुश्तनुमा हो जाता है, बहुत से नुक़्स वालों में एक बेऐब भी गोया अयुबी ख़्याल किया जाता / बिन कर रह जाता है, अंधों में काना राजा

ये भी यारों की ऐक धज है

ख़िलाफ़-ए-वज़ा कोई बात सरज़द हो तो इस के लिए नाक़ाबिल-ए-क़बूल उज़्र तराशने के मौक़ा पर कहते हैं

खोटा पैसा कभी काम आता है

रुक : खोटा, पैसा बुरे वक़्त के काम आता है

जहाँ गुल होगा वहाँ ख़ार भी है

सुख के साथ दुख लगा है

ये भी ख़ुदाई है

यह भी ईश्वर की महिमा है, यह भी ईश्वर का करना है, ईश्वर के करने से ऐसा भी संभव हुआ है

आँख में मैल है और उस में मैल नहीं

आँख से भी अधिक पारदर्शी, बहुत ही स्वच्छ

कभी रंज, कभी गंज

कभी कष्ट है कभी सुख और चैन है, परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, जब जैसा समय आ जाए, भोगना ही पड़ता है

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में आँख सी भी कभी देखी है के अर्थदेखिए

आँख सी भी कभी देखी है

aa.nkh sii bhii kabhii dekhii haiآن٘کھ سی بھی کَبھی دیکھی ہے

आँख सी भी कभी देखी है के हिंदी अर्थ

  • ख़ैर! तुम इस चीज़ का महत्व क्या जानो! तुम्हें कभी उप्लब्ध भी हुई है?
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آن٘کھ سی بھی کَبھی دیکھی ہے کے اردو معانی

  • تم اس چیز کی قدر کیا جا نو! تمھیں کبھی میسر بھی آئی ہے؟

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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