मंतर
भारतीय वैदिक साहित्य में देवता से की जानेवाली वह प्रार्थना जिसमें उसकी स्तुति भी हो। विशेष वैदिक काल में मंत्र तीन प्रकार के होते थे। जो छंदोबद्ध या पद्य के रूप में होते थे और जिनका उच्चारण उच्च स्वर से किया जाता था, उन्हें ' ऋचा ' कहते थे। गद्य रूप में होनेवाले और मंद स्वर से कहे जानेवाले मंत्रों को ' यजु ' कहते थे, और पद्य रूप में गाये जानेवाले मंत्रों को ' साम ' कहते थे। इसके सिवा निरुक्त में मंत्रों के तीन और भेद बतलाये गये हैं। जिन मंत्रों में देवता को परोक्ष में मान कर प्रथम पुरुष में उनकी स्तुति की जाती है, वे परोक्ष-कृत ' कहलाते हैं। जिनमें देवताओं को प्रत्यक्ष मान कर मध्यम पुरुष में उनकी स्तति की जाती है. उन्हें ' प्रत्यक्षकृत ' कहते हैं। और जिन मंत्रों में स्वयं अपने आप में आरोप करके और उत्तम पुरुष में स्तुति की जाती है, वे ' आध्यात्मिक ' कहलाते हैं। वैदिक मंत्रों में प्रायःप्रार्थना और स्तुति के सिवा अभिशाप, आशीर्वाद, निंदा, शपथ आदि की भी बहुत सी बातें पाई जाती हैं। वैदिक काल में इसी प्रकार के मंत्रों के द्वारा यज्ञ-संबंधी सब कृत्य किये जाते थे।
मैं तेरे सद्क़े
(अविर) निहायत ख़ुशी या ख़ुशामद के मौके़ पर बोला जाता है, में तेरे बलिहारी, बिल जाऊं, क़ुर्बान हूँ, वारी जाऊं, सदक़े जाऊं
मंत्री
राजा का वह प्रधान अधिकारी जो उसे राजकार्यों के संबंध में परामर्श देता और राज-कार्यों का संचालन करता हो, अमात्य, वह जो मंत्रणा अर्थात् परामर्श या सलाह देता हो, शतरंज का वज़ीर नीज़ बारहवां नछत्तर, जादू करने वाला, जादूगर, उपदेशक, पीर मुर्शिद, रहबर