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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में कसीर-बरगी के अर्थदेखिए

कसीर-बरगी

kasiir-bargiiکَثیر بَرگی

वज़्न : 12122

मूल शब्द: कसीर

टैग्ज़: वनस्पतिविज्ञान

कसीर-बरगी के हिंदी अर्थ

फ़ारसी, अरबी - विशेषण

  • (वो पौदा) जिस की डंडी के सिरे पर तीन से ज़ाइद बरगचे पाए जाएं मसलन सुंबुल या रेशमी रवी

English meaning of kasiir-bargii

Persian, Arabic - Adjective

  • multifoliate, having many leaves

کَثیر بَرگی کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

فارسی، عربی - صفت

  • بہت زیادہ پتے دار
  • (وہ پودا) جس کی ڈنڈی کے سرے پر تین سے زائد برگچے پائے جائیں، مثلاً سنبل یا ریشمی روئی

Urdu meaning of kasiir-bargii

  • Roman
  • Urdu

  • bahut zyaadaa pattedaar
  • (vo paudaa) jis kii DanDii ke sire par tiin se zaa.id baragche pa.e jaa.en, masalan sumbul ya reshmii ravii

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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

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