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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में बहर-ए-ख़फ़ीफ़ के अर्थदेखिए

बहर-ए-ख़फ़ीफ़

bahr-e-KHafiifبَحْرِ خَفِیف

स्रोत: अरबी

वज़्न : 22121

टैग्ज़: काव्य शास्त्र छंदशास्त्र

बहर-ए-ख़फ़ीफ़ के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • इसकी शाखाएँ प्रचलित हैं, (सगु + जगु -सगु=॥5,5+ISI,5+॥s,s) शेर में दो बार।।

بَحْرِ خَفِیف کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

اسم، مؤنث

  • (عروض) کلام منظوم، یا شعر کا وہ آہن٘گ جس کا ہر مصرع، فاعِلاتُن مُسْ تَفْعِ لُن فاعِلاتُن، کے وزن پر ہو (زیادہ تر زحاف کے ساتھ مستعمل)

Urdu meaning of bahr-e-KHafiif

  • Roman
  • Urdu

  • (uruuz) kalaam manjuum, ya shear ka vo aahang jis ka har misraa, faa.ailaatun mus॒ taf॒i lun faa.ailaatun, ke vazan par ho (zyaadaa tar zahaaf ke saath mustaamal

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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

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