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सहरी

एक प्रकार की मछली, तीव्र सुगंध, सीम-माही

सहरी

निर्जल व्रत के दिन बहुत तड़के किया जाने वाला भोजन, रमज़ान के दिनों में कुछ रात रहे का खाना, जिसे खाकर रोज़ा रखा जाता है, सहरगही

सहरी के गीत

रोज़ेदार को उठाने के लिए गाया जाने वाला गीत, जो उठाने वाला गाता है

सहरी भी न खाऊँ तो काफ़िर न हो जाऊँ

ایک ماما سحری کھا لیتی تھی روزہ نہ رکھتی تھی ، ایک دن مالک نے پوچھا تو یہ جواب دیا ، یعنی دین کی مطلب کی بات مان لی اور تکلیف کی بات چھوڑ دی.

सहरी खाए सो रोज़ा रखे

एक शख़्स की सहरी कुत्ता खा गया, इस ने उसे सारा दिन भूओका बांध रखा कि इस ने सहरी खाई है वही रोज़ा रखेगा यानी जो फ़ायदा उठाए वही काम करे

सहरिया

वनस्पति की एक संकर प्रजाति का प्रकार जो पीला और हरा होता है

सितारा-ए-सहरी

प्रातः का तारा

नूर-ए-सहरी

glow of morning

नज्म-ए-सहरी

morning star

सुबात-ए-सहरी

fainting, deep sleep, a kind of disease

शम'-ए-सहरी

सवेरे का चिराग़ जो बुझने को होता है

सुपीदा-ए-सहरी

رک : سپیدۂ سحر

त'आम-ए-सहरी

वह भोजन जो किसी दिन निर्जल व्रत करने के पहले बहुत तड़के या कुछ रात रहे ही किया जाता है, सहरी

चराग़-ए-सहरी

चराग़ जो सुबह को बुझने के निकट हो

नमाज़-ए-सहरी

दो रकात नमाज़ जो सुर्योदय से पहले अर्थात भोर में पढ़ी जाती है, प्रातःकाल की नमाज़, फ़ज्र की नमाज़

नसीम-ए-सहरी

morning breeze

नौबत-ए-सहरी

सुबह का नक़्क़ारा अथवा ढोल, सुबह के समय बजाने का बड़ा नकारा

सलात-ए-सहरी

सुबह की नमाज़, फ़ज्र की नमाज़

बाद-ए-सहरी

प्रातःकाल की समीर

सितारा-ए-सहरी चमकना

दिन निकलने के क़रीब होना

मैं तो चराग़ सहरी हूँ

बहुत बुढ्ढा हूँ, मौत के क़रीब हूँ

जो सहरी खाए वही रोज़ा रखे

एक व्यक्ति की सहरी कुत्ता खा गया, उसने उसे सारा दिन भूका बाँध रखा कि उसने सहरी खाई है वही रोज़ा रखेगा अर्थात जो लाभ उठाए वही काम करे, ये लोकोक्ति ऐसे अवसर पर बोलते हैं जब ये दिखाना हो कि जो व्यक्ति लाभांवित वही काम करने में मेहनत और तकलीफ़ उठाए

जो सहरी खाए सो रोज़ा रखे

he must suffer pain who stands to gain

नमाज़ नहीं रोज़ा नहीं सहरी भी न हो तो निरे काफ़िर बन जाएँगे

अगर बहुत सा असंभव हो तो थोड़ा सा सही, ऐसे अवसर पर उपयोगित जब किसी धार्मिक शिक्षा पर प्रक्रिया अपने पक्ष में हो

रोज़े रखें न नमाज़ पढ़ें, सहरी भी न खाएं तो काफ़िर हो जाएं

نفس پرورں کا مقولہ ہے.

रोज़ा रखे न नमाज़ पढ़े सहरी भी न खाए तो महज़ काफ़िर हो जाए

ये कहावत उन लोगों की है जो इंद्रियों के वश में रहते हैं, रोज़ा नमाज़ न सही मगर सहरी ज़रूर खानी चाहिए

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