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ढोर

(लाक्षणिक) ढेर

ढोर-डंगर

गाय, बैल, भैंस, बकरी आदि

ढोर-मरे

कोसना, बद्दुआ, श्राप, बदगोई

ढोर-डांगर

ढोरा

मिट्टी का टीला जो किसी नाली के किनारे पर बनाते हैं, वो पुरानी और सूखी नहर जिसमें पानी नहीं आता हो ,

ढोरी

किसी ओर प्रवृत्त होने अथवा किसी पर अनुरक्त होने की अवस्था या भाव

ढोरना

पानी या और कोई द्रव पदार्थ गिराकर बहाना, ढालना, ढरकाना

ढोर मरे न कव्वा खाए

फ़ुज़ूल उम्मीद के मौक़ा पर कहते हैं

ढोरों के घर कव्वे मेहमान

बुरों में अच्छों का शम्मिलित होना

चोर-ढोर

चोर के साथ चोरी की हुई संपत्ति

चोर ढोर दोनों हाज़िर हैं

चोर और चौपाए पकड़ लाए हैं, अर्थात साक्ष्य पूरा है

चमारों के कोसे ढोर नहीं मरते

श्राप देने से किसी की हानि नहीं होती

चमार के कोसे ढोर नहीं मरते

श्राप देने से किसी को हानि नहीं होती, कोई आदमी अगर अपने स्वार्थवश दूसरे का बुरा चाहे, तो उससे कुछ होता-हवाता नहीं

कौओं के कोसे से ढोर नहीं मरते

किसी के बुरा चाहने से किसी को नुक़्सान नहीं पहुंचता

कहीं कव्वों के कोसे से ढोर मरते हैं

किसी के बुरा चाहने से बुरा नहीं होता

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में क़रीब-नज़री के अर्थदेखिए

क़रीब-नज़री

qariib-nazariiقَرِیب نَظَری

स्रोत: अरबी

क़रीब-नज़री के हिंदी अर्थ

संज्ञा, स्त्रीलिंग

  • निकट दृष्टि दोष, लघु दृष्टि दोष, चुँधियापन

English meaning of qariib-nazarii

Noun, Feminine

  • myopia

Roman

قَرِیب نَظَری کے اردو معانی

اسم، مؤنث

  • قریب البصری، چندھیا پن

Urdu meaning of qariib-nazarii

  • qariib alabasrii, chindhyaa pan

क़रीब-नज़री के पर्यायवाची शब्द

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ढोर

(लाक्षणिक) ढेर

ढोर-डंगर

गाय, बैल, भैंस, बकरी आदि

ढोर-मरे

कोसना, बद्दुआ, श्राप, बदगोई

ढोर-डांगर

ढोरा

मिट्टी का टीला जो किसी नाली के किनारे पर बनाते हैं, वो पुरानी और सूखी नहर जिसमें पानी नहीं आता हो ,

ढोरी

किसी ओर प्रवृत्त होने अथवा किसी पर अनुरक्त होने की अवस्था या भाव

ढोरना

पानी या और कोई द्रव पदार्थ गिराकर बहाना, ढालना, ढरकाना

ढोर मरे न कव्वा खाए

फ़ुज़ूल उम्मीद के मौक़ा पर कहते हैं

ढोरों के घर कव्वे मेहमान

बुरों में अच्छों का शम्मिलित होना

चोर-ढोर

चोर के साथ चोरी की हुई संपत्ति

चोर ढोर दोनों हाज़िर हैं

चोर और चौपाए पकड़ लाए हैं, अर्थात साक्ष्य पूरा है

चमारों के कोसे ढोर नहीं मरते

श्राप देने से किसी की हानि नहीं होती

चमार के कोसे ढोर नहीं मरते

श्राप देने से किसी को हानि नहीं होती, कोई आदमी अगर अपने स्वार्थवश दूसरे का बुरा चाहे, तो उससे कुछ होता-हवाता नहीं

कौओं के कोसे से ढोर नहीं मरते

किसी के बुरा चाहने से किसी को नुक़्सान नहीं पहुंचता

कहीं कव्वों के कोसे से ढोर मरते हैं

किसी के बुरा चाहने से बुरा नहीं होता

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