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ऊजड़

वीरान; निर्जन; उजड़ा हुआ।

ऊजड़ नगरी सूना देस

उस स्थान के बारे में बोलते हैं जो निर्जन और उजाड़ हो, तबाह और बर्बाद देश या शहर आदि

या बसे गूजर या रहे ऊजड़

ऐसे मौके़ पर बोलने लगे कि हम अपने सिवा किसी को नहीं बसने देंगे यानी या तो हमें रहे वर्ना दूसरे को भी रहना नसीब नहीं होसकता, यानी अपने सिवा किसी को बसने ना देंगे, जब कोई शख़्स अपनी ही आबादी चाहे और दूसरे की आबादी ना देख सके, इस बस्ती में या गुजर बसेंगे या उजड़ी रहेगी, हम अपने सिवा किसी को बसने ना देंगे

बसे तो गूजर , नहीं तो ऊजड़

वो बस्ती जो वीरान पड़ी रहे या निचले तबक़े के लोगों से आबाद होजाए (निज़ाम उद्दीन औलिया की बददुआ जो उन्हों ने फ़िरोज़ तुग़ल्लुक़ से नाराज़ होकर इस के क़िले को दी थी अब ज़रब-उल-मसल

गूजर से ऊजड़ भली ऊजड़ से भली उजाड़, जहाँ गूजर को देखिए वहीं दीजे मार

गुजर से वीरानी बेहतर है, जहां गुजर मिले उसे मार देना चाहिए, गुजरों की मज़म्मत में कहते हैं

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में ना-क़ाबिल-ए-फ़हम के अर्थदेखिए

ना-क़ाबिल-ए-फ़हम

naa-qaabil-e-fahmنا قابِلِ فَہْم

वज़्न : 221221

ना-क़ाबिल-ए-फ़हम के हिंदी अर्थ

फ़ारसी, अरबी - विशेषण

  • जो समझा न जा सके, जो समझ में ना आए, समझ से परे, गद्य कविता की रचना समझ से बाहर है

English meaning of naa-qaabil-e-fahm

Persian, Arabic - Adjective

  • unintelligible, weird

Roman

نا قابِلِ فَہْم کے اردو معانی

فارسی، عربی - صفت

  • جو سمجھ میں نہ آئے، جو سمجھ سے بالاتر ہو، نثری نظم کی ترکیب ناقابل فہم ہے

Urdu meaning of naa-qaabil-e-fahm

  • jo samajh me.n na aa.e, jo samajh se baalaatar ho, nasrii nazam kii tarkiib naaqaabil fahm hai

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ऊजड़

वीरान; निर्जन; उजड़ा हुआ।

ऊजड़ नगरी सूना देस

उस स्थान के बारे में बोलते हैं जो निर्जन और उजाड़ हो, तबाह और बर्बाद देश या शहर आदि

या बसे गूजर या रहे ऊजड़

ऐसे मौके़ पर बोलने लगे कि हम अपने सिवा किसी को नहीं बसने देंगे यानी या तो हमें रहे वर्ना दूसरे को भी रहना नसीब नहीं होसकता, यानी अपने सिवा किसी को बसने ना देंगे, जब कोई शख़्स अपनी ही आबादी चाहे और दूसरे की आबादी ना देख सके, इस बस्ती में या गुजर बसेंगे या उजड़ी रहेगी, हम अपने सिवा किसी को बसने ना देंगे

बसे तो गूजर , नहीं तो ऊजड़

वो बस्ती जो वीरान पड़ी रहे या निचले तबक़े के लोगों से आबाद होजाए (निज़ाम उद्दीन औलिया की बददुआ जो उन्हों ने फ़िरोज़ तुग़ल्लुक़ से नाराज़ होकर इस के क़िले को दी थी अब ज़रब-उल-मसल

गूजर से ऊजड़ भली ऊजड़ से भली उजाड़, जहाँ गूजर को देखिए वहीं दीजे मार

गुजर से वीरानी बेहतर है, जहां गुजर मिले उसे मार देना चाहिए, गुजरों की मज़म्मत में कहते हैं

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