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मिल्की

= मिलकी

मिल्की क्या जाने पराए दिल की

ज़मींदार स्वार्थी होते हैं किसी और की परवाह नहीं करते

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाती है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाता है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की न कहे दिल की

ज़मींदार अपना भेद किसी को नहीं देता

मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की

अमीर आदमी किसी पर अपने दिल का भेद प्रकट नहीं करता

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की के अर्थदेखिए

मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की

milkii na kahe dil kii, palTe.n darvaaze nikle.n khi.Dkiiمِلْکی نَہ کَہے دِل کی، پَلٹیں دَروازے نِکلیں کِھڑکی

अथवा : मिल्की न कहे दिल की, पैठें दरवाज़े निकलें खिड़की

कहावत

मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की के हिंदी अर्थ

  • अमीर आदमी किसी पर अपने दिल का भेद प्रकट नहीं करता
  • धनी पुरुष कब कौन सा काम किस तरह करते हैं कोई जान नहीं सकता

مِلْکی نَہ کَہے دِل کی، پَلٹیں دَروازے نِکلیں کِھڑکی کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • امیر آدمی کسی پر اپنے دل کا راز ظاہر نہیں کرتا
  • امیر آدمی کب کون سا کام کس طرح کرتے ہیں کوئی جان نہیں سکتا

Urdu meaning of milkii na kahe dil kii, palTe.n darvaaze nikle.n khi.Dkii

  • Roman
  • Urdu

  • amiir aadamii kisii par apne dil ka raaz zaahir nahii.n kartaa
  • amiir aadamii kab kaun saa kaam kis tarah karte hai.n ko.ii jaan nahii.n saktaa

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मिल्की

= मिलकी

मिल्की क्या जाने पराए दिल की

ज़मींदार स्वार्थी होते हैं किसी और की परवाह नहीं करते

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाती है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाता है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की न कहे दिल की

ज़मींदार अपना भेद किसी को नहीं देता

मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की

अमीर आदमी किसी पर अपने दिल का भेद प्रकट नहीं करता

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