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मिल्की

= मिलकी

मिल्की क्या जाने पराए दिल की

ज़मींदार स्वार्थी होते हैं किसी और की परवाह नहीं करते

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाती है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाता है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की न कहे दिल की

ज़मींदार अपना भेद किसी को नहीं देता

मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की

अमीर आदमी किसी पर अपने दिल का भेद प्रकट नहीं करता

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में मिल्की क्या जाने पराए दिल की के अर्थदेखिए

मिल्की क्या जाने पराए दिल की

milkii kyaa jaane paraa.e dil kiiمِلْکی کیا جانے پَرائے دِل کی

कहावत

मिल्की क्या जाने पराए दिल की के हिंदी अर्थ

  • ज़मींदार स्वार्थी होते हैं किसी और की परवाह नहीं करते
  • धनवानों को क्या मा'लूम कि ग़रीबों की गुज़र कैसे होती है
  • कौन आदमी किस प्रकार जीवन बिता रहा है यह धनी पुरुष नहीं जान सकता

مِلْکی کیا جانے پَرائے دِل کی کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • زمیندار خود غرض ہوتے ہیں کسی اور کی پروا نہیں کرتے
  • امیروں کو کیا معلوم کہ غریبوں کی گزر کیوں کر ہوتی ہے
  • کون شخص کیسے زندگی گزار رہا ہے یہ دولتمند کبھی نہیں جان سکتا

Urdu meaning of milkii kyaa jaane paraa.e dil kii

  • Roman
  • Urdu

  • zamiindaar KhudaGraz hote hai.n kisii aur kii parva nahii.n karte
  • amiiro.n ko kyaa maaluum ki Gariibo.n kii guzar kyo.n kar hotii hai
  • kaun shaKhs kaise zindgii guzaar rahaa hai ye daulatmand kabhii nahii.n jaan saktaa

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मिल्की

= मिलकी

मिल्की क्या जाने पराए दिल की

ज़मींदार स्वार्थी होते हैं किसी और की परवाह नहीं करते

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाती है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की चौथी पुश्त में कंगाल हो जाता है

अमीरी हमेशा नहीं रहती, उमूमन चौथी पुश्त मुफ़लिस हो जाती है , बहसाब अबजद आदाद मुल्की के हुरूफ़ से ज़ाहिर है कि हर साल दस दस अदद कम होते जाते हैं (म = ४० = ल ३०, क = २०, य = १०

मिल्की न कहे दिल की

ज़मींदार अपना भेद किसी को नहीं देता

मिल्की न कहे दिल की, पलटें दरवाज़े निकलें खिड़की

अमीर आदमी किसी पर अपने दिल का भेद प्रकट नहीं करता

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