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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हुनर ज़ादा बे हुनर चूँ बुवद, पिदर टर्रा बाशद पिसर टूँ बुवद के अर्थदेखिए

हुनर ज़ादा बे हुनर चूँ बुवद, पिदर टर्रा बाशद पिसर टूँ बुवद

hunar zaada be hunar chuu.n buvad, pidar Tarra baashad pisar Tuu.n buvadہُنَر زادہ بے ہُنَر چُوں بُوَد، پِدَر ٹَرَّہ باشَد پِسَر ٹُوں بُوَد

कहावत

हुनर ज़ादा बे हुनर चूँ बुवद, पिदर टर्रा बाशद पिसर टूँ बुवद के हिंदी अर्थ

  • (फ़ारसी कहावत) बाप दादा का असर कुछ ना कुछ औलाद में ज़रूर आता है

ہُنَر زادہ بے ہُنَر چُوں بُوَد، پِدَر ٹَرَّہ باشَد پِسَر ٹُوں بُوَد کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • (فارسی کہاوت) باپ دادا کا اثر کچھ نہ کچھ اولاد میں ضرور آتا ہے

Urdu meaning of hunar zaada be hunar chuu.n buvad, pidar Tarra baashad pisar Tuu.n buvad

  • Roman
  • Urdu

  • (faarsii kahaavat) baap daada ka asar kuchh na kuchh aulaad me.n zaruur aataa hai

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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

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