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क्रोध

गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में ज़ख़्म-ए-हुनर के अर्थदेखिए

ज़ख़्म-ए-हुनर

zaKHm-e-hunarزَخْمِ ہُنَر

स्रोत: फ़ारसी

वज़्न : 2212

ज़ख़्म-ए-हुनर के हिंदी अर्थ

संज्ञा, पुल्लिंग

  • वो दुःख या तालीफ़ जो कुशलता और कार्य शैली और हुनर के कारण मिला हो, सौंदर्यीकरण या अविष्कार की दी होई चोट या तकलीफ

शे'र

English meaning of zaKHm-e-hunar

Noun, Masculine

  • wound of skill, the wound or sorrow occurred due to performing skills and style, the wound given by the innovation or beautification

زَخْمِ ہُنَر کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu

اسم، مذکر

  • وہ غم یا زخم جو تخلیق فن، فنکاری، تخلیقی عمل اور ہنر کے سبب ملا ہو، حسن کاری یا تخلیق کی دی ہوئی تکلیف

Urdu meaning of zaKHm-e-hunar

  • Roman
  • Urdu

  • vo Gam ya zaKham jo taKhliiq fan, fankaarii, taKhliiqii amal aur hunar ke sabab mila ho, husn kaarii ya taKhliiq kii dii hu.ii takliif

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गुस्सा, कोप, रोष, तीक्ष्ण मनोविकार

क्रोधी

जिसे बहुत जल्दी अथवा बिना विशेष बात के गुस्सा आ जाता हो, जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो, गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला, गुस्से वाला, ग़ज़बनाक, नाराज़

जित-किरोध

وہ جس نے اپنے غصے پر قابو پا لیا ہو، جو غصے میں نہ آ ئے

काम-किरोध

भावना की प्रबलता, बैर और आदतें, कामुक इच्छाएँ और गु़स्सा

साधू वही जो साधन करे , करोध लोभ और मोह को मारे

फ़क़ीर वही है जो नफ़स मारे और लालच और शहवत को क़ाबू में रखे

काम क्रोध, मध, लोभ की जब मन में होवे खान, का पंडित का मूर्खा दोऊ एक समान

काम वासना, क्रोध, घमंड और लोभ अर्थात लालच अगर दिल में हों तो ज्ञानी एवं अनपढ़ दोनों बराबर हैं

जब तू न्याय की गद्दी पर बैठे तो अपने मन से तरफ़-दारी लालच और क्रोध को दूर कर

शासक को पक्षपात लालच और क्रोध नहीं करना चाहिए

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