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तीन दिन गोरू में भी भारी हैं

तीन दिन क़ब्र में भी भारी होते हैं

मरने के बाद तीन दिन तक क़ब्र में फ़रिश्ते हिसाब लेते हैं, अर्थात यह है कि दुनिया के बखेड़े बहुत हैं, मनुष्य को ईश्वर की याद हर समय करनी चाहिए, मरने के बाद भी आदमी का परेशानियों से पीछा नहीं छूटता

क़ब्र में तीन दिन भारी होते हैं

क़ब्र में तीन दिन तक मुर्दे का हिसाब किताब होता है (जो बहुत कठिन माना जाता है), हर काम के शुरू में परेशानी आती है

लहद में तीन दिन भारी

रुक : क़ब्र में तीन दिन भारी, क़ब्र में तीन दिन तक हिसाब किताब होता रहता है

दिन के तीन सो साठ दिन हैं

आज बदला न ले सके तो उम्र पड़ी है कभी न कभी बदला लेने का अवसर मिल ही जाएगा, आज नहीं, तो फिर देखा जाएगा, हम बदला लेकर रहेंगे

मूए पर तीन दिन भारी

कहा जाता है कि मरुदे की रूह पर तीन दिन तकलीफ़ रहती है, मर्दे से तीन दिन तक आमाल की पुर्सिश होती रहती है

हम भी हैं पाँचवें सवारों में

शेखी ख़ोरे की निसबत कहते हैं जिस की कुछ हक़ीक़त ना हो और वो ख़ुद को ख़्वामख़्वाह बड़े लोगों में शामिल करे

जुवे में बैल भी हारे हैं

जुवे में कुछ पास नहीं रहता सब कुछ हार जाते हैं

एक दिन के तीन सौ साठ दिन

बदला लेने के लिए बहुत समय है

आप में भी कूट कूट के ख़ूबियाँ भरी हैं

बड़े दुष्ट हो, बड़े कमीने हो

ज़रूरत में गधे को भी साला करते हैं

तीन दिन

कुछ दिन, थोड़ी अवधि

तीन तीन दिन साफ़ गुज़रना

शदीद फ़ाक़ों की नौबत आजाना, (मजाज़न) इंतिहाई मुफ़लिसी का आलम होना

बारह बरस के बा'द घूरे के भी दिन फिरते हैं

बारह बरस के बा'द घूरे के भी दिन फिरे हैं

तंगदस्ती या परेशांहाली हमेशा नहीं रहती

हम भी हैं वो भी हैं

हमारा उन का मुक़ाबला है देखें कौन बढ़ता है

कुसुम का रंग तीन दिन फिर बद-रंग

कुसुम का रंग जल्दी ख़राब हो जाता है, चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात, किसी भी वस्तु का सौंदर्य स्थायी नहीं होता

ज़िंदगी के दिन भारी होना

ज़िंदगी का कष्टदायक होना, दुख दर्द से भरी ज़िंदगी होना

तमा' के तीन हर्फ़ हैं और तीनों ख़ाली हैं

लोभ में कुछ नहीं रखा

ये भी किसी ने नहीं पूछा कि तेरी मुँह में कितने दाँत हैं

जहां किसी की कोई पूछगिछ और ख़ातिर तवाज़ो ना हो वहां ये मुहावरा बोलते हैं

जब भी तीन और अब भी तीन, जब पाए तब तीन ही तीन

बहुत भाग्यहीन हैं, हर समय तीन काने हैं

ये भी किसी ने न पूछा कि तेरी मुँह में कितने दाँत हैं

जहां किसी की कोई पूछगिछ और ख़ातिर तवाज़ो ना हो वहां ये मुहावरा बोलते हैं

ज़रूरत में गधे को भी बाप बना लेते हैं

सौ बरस बा'द कूड़े घूरे के दिन भी बहोरते फिरते हैं

कोई शैय सदा एक हाल पर नहीं रहती, बुरे दिनों के बाद भले दिन भी आते हैं

तीन दिन का छोकरा हमें सिखाता है

जब कोई कमउमर मश्वरा दे तो उम्र रसीदा कहते हैं

बिपत संगाती हैं तीन जोरू बेटा आप

मुसीबत में वही लोग साथ देते हैं जिस से बहुत ज़्यादा क़रीबी संबंध हों

तीन दिन का छोकरा हमें सिखावत बात

जब कोई कमउमर मश्वरा दे तो उम्र रसीदा कहते हैं

जहाँ चार बर्तन होते हैं खटकते भी हैं

जहाँ कुछ लोग एक जगह जमा होते हैं तो वहाँ वादविवाद भी हो ही जाती है, जहाँ भीड़ होती है वहाँ वादविवाद भी होती है

हथिया बरसे तीन होत हैं शकर, शाली, माश

तेरहवीं नकशतरे के दौरान में बारिश हो तो क़िमाद, धान और माश बहुत होते हैं लेकिन तली, कूदों और कपास मर जाते हैं

हथिया बरसे तीन जात हैं तिल्ली, कोदों, कपास

तेरहवीं नकशतरे के दौरान में बारिश हो तो क़िमाद, धान और माश बहुत होते हैं लेकिन तली, कूदों और कपास मर जाते हैं

कभी घूरे के दिन भी फिरते हैं

ज़माना बदलता रहता है, कभी ग़रीबों और कमज़ोरों का ज़माना भी बदल जाता है, उन के भी अच्छे दिन आ जाते हैं, ग़रीब और कमज़ोर हमेशा ग़रीब कमज़ोर नहीं रहते, बारह बरस में घूरे के भी दिन फिर जाते हैं

दिन अछे होते हैं तो कंकर जवाहर बन जाते हैं

जब भाग्य अच्छा होता है तो नेक काम स्वयं बन जाता है

चार बासन होते हैं तो खड़कते भी हैं

रुक : जहां चार बर्तन अलख, जहां चार आदमी जमा होते हैं तकरार भी हो जाती है

तीन में न तेरह में

मूल्यहीन, कोई हैसियत नहीं, कोई महत्व नहीं, कोई वास्ता नहीं, किसी गिनती में नहीं, भला क्या संबंध

निकले दाँत भी कहीं पैठे हैं

मिसल मशहूर है जो भेद खुल जाये वो फिर नहीं छुपता (रुक : निकले हुए दाँत अलख)

कहीं डूबे भी तिरे हैं

बिगड़ी हुई चीज़ नहीं सँवरती, बिगड़ी हुई चीज़ों का सँवरना कठिन है

तीन में, न तेरह में

कहीं हाथों की लकीरें भी मिटी हैं

कहीं हाथों की लकीरें भी मिटती हैं

कहीं तक़दीर भी ख़ता करती है, कहीं रिश्ते भी छूओटते हैं, अपनों का अपनों को छोड़ना मुम्किन नहीं, अपनों का छूओटना और रिश्ता टूटना दुशवार है

कहीं हाथों की लकीरें भी टलती हैं

कहीं तक़दीर भी ख़ता करती है, कहीं रिश्ते भी छूओटते हैं, अपनों का अपनों को छोड़ना मुम्किन नहीं, अपनों का छूओटना और रिश्ता टूटना दुशवार है

कहीं थूक से भी सत्तू सनते हैं

ज़रूरी सामान के बगै़र काम नहीं हो सकता, छोटी पूंजी से बड़ा काम नहीं हो सकता

कहीं मुर्दे भी ज़िंदा होते हैं

हम भी ज़बाँ रखते हैं

हम भी बोल सकते हैं, हम भी मुँह में ज़बान रखते हैं

गोरू-बाड़ा

जानवरों के बाँधने की जगह, बाड़ा, गाव ख़ाना

तीन में न तेरह में, नौ में न बाईस में

निकम्मा, बेवुक़त, जो किसी शुमार में ना हो

मेरा मुर्दा अब भी तेरे ज़िंदे पर भारी है

मैं मजबूरी में भी तुझ पर भारी हूँ, मैं इस गई गुज़री हालत में भी तुझ पर भारी हूँ, तुझ से बेहतर हूँ

आप भी 'अजब ज़ात-ए-शरीफ़ हैं

रुक : आप बहुत दूर हैं

न तीन में, न तेरा में

किसी गिनती या शुमार में नहीं (किसी को बेवुक़त या लाताल्लुक़ ज़ाहिर करने के मौके़ पर कहते हैं

सब दिन ख़ुदा के हैं

जब सौभाग्य और दुर्भाग्य को किसी विशेष दिन से निर्धारित करते हैं तब कहते हैं

कहीं सूखे दरख़्त भी हरे होते हैं

असंभव बात कभी संभव नहीं होती, जो एक बार बर्बाद या नष्ट हो जाए फिर उसकी उन्नति नहीं होती, काम बिगड़ जाए तो ठीक नहीं होता, बिल्कुल बिगड़ी हुई हालत नहीं सुधरती

सारे दिन पीसा , चपनी भर भी उठाया

बहुत मेहनत की और काम थोड़ा हुआ

उस नर के भी एक दिन, पड़े गले में फाँद, जिस ने चोरी लूट पर ली कमर बाँध

चोर एक न एक दिन पकड़ा जाएगा, चोरी और लूट करने वाला आदमी बहुत दिनों तक स्वतंत्र नहीं घूम सकता

ये भी कुछ हैं

इन की भी कोई हैसियत है, ये भी इज़्ज़त और मर्तबा रखते हैं

दिन पड़े हैं

वहाँ फ़रिश्तों के भी पर जलते हैं

इस जगह कोई नहीं जा सकता, उन का इतना रोब है कि वहां जाने की कोई जुर्रत नहीं करसकता

न तीन में न तेरा में, सुतली की गिरह में

रुक : ना तीन में ना तेराह में

आप भी तुर्फ़ा मा'जून हैं

रुक : आप भी ऐसी ही बातों से अलख

तीन गुनाह ख़ुदा भी बख़्शता है

तीन में न तारह में, न सुत्ली की गिरह में

रुक : तीन में ना तेराह में

कोई मोल में भारी, कोई तौल में

किसी में कोई गुणवत्ता होती है किसी में कोई

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में तीन दिन गोरू में भी भारी हैं के अर्थदेखिए

तीन दिन गोरू में भी भारी हैं

tiin din gor me.n bhii bhaarii hai.nتین دن گور میں بھی بھاری ہیں

تین دن گور میں بھی بھاری ہیں کے اردو معانی

  • ۔یعنی مرکر بھی تین روزکر قبر کے حساب کتاب میں جان بیکل رہتی ہے۔ غرض یہ ہے کہ دُنیا قبر تک بھی ستانے کے لیے ساتھ جاتی ہے۔ ؎

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